– डॉ बीआर अंबेडकर के आर्थिक एवं सामाजिक चिंतन पर संगोष्ठी
– राजस्थान ह्युमन रिसोर्स डेवलमेंट फॉउण्डेशन
अजमेर। दुनिया में बिरले ही लोग होते हैं, जो इतिहास बनाते हैं, उन्हीं में से एक डॉ. भीमराव अंबेडकर रहे। देश के आर्थिक और सामाजिक पक्ष को बारीकी से आगे बढाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। यह कहना उचित होगा कि बाबा साहब का जीवन साधना की तरह रहा। यह विचार महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर के कुलगुरू प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने व्यक्त किए। वे शनिवार को डॉ. अम्बेडकर के निर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में राजस्थान ह्युमन रिसोर्स डेवलपमेंट फॉउण्डेशन की ओर से स्वामी कॉम्पलेक्स के सभागार में डॉ. बी.आर. अंबेडकर के आर्थिक एवं सामाजिक चिंतन पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे।
प्रो. अग्रवाल ने कहां कि डॉ. अम्बेडकर न केवल संविधान निर्माता थे, बल्कि एक प्रमुख अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और विद्वान भी थे। उनके आर्थिक योगदान, जाति व्यवस्था के आर्थिक बंधन, तथा आधुनिक भारत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रही।
पुस्तक प्रेम एवं ज्ञान साधना
प्रो. अग्रवाल ने कहा कि डॉ. अंबेडकर को पुस्तकों का अत्यधिक शौक था, उनकी व्यक्तिगत लाइब्रेरी में करीब 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, जिनमें प्रवेश किसी को भी बिना अनुमति नहीं था। तीन पुस्तकों लाइफ ऑफ टॉलस्टॉय, लेस मिजरेबल्स (विक्टर ह्यूगो) तथा फार फ्रॉम द मेडिंग क्राउड (थॉमस हार्डी) ने उनके जीवन को गहराई से प्रभावित किया। डॉ. अंबेडकर ने दो पीएचडी प्राप्त कीं, पहली कोलंबिया विश्वविद्यालय से (एडमिनिस्ट्रेशन एंड फाइनेंस ऑफ ईस्ट इंडिया कंपनी) तथा दूसरी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से (प्रोविंशियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इंडिया)।
जाति, समाज सुधार एवं आर्थिक बंधन
प्रो. अग्रवाल ने कहां कि अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था को सामाजिक बुराई नहीं, अपितु आर्थिक प्रतिबंध बताया, जिसे ’अनहिलेशन ऑफ कास्ट’ में समूचे समाज की नैतिक जिम्मेदारी माना। दलित शोषण के मूल में आर्थिक एवं जातिगत आधार देखा तथा विकास अवसरों के अवरोध पर जोर दिया। दादाभाई नौरोजी के वेल्थ ड्रेन सिद्धांत को उन्होंने व्यवस्थित रूप प्रदान किया, जो ब्रेन ड्रेन एवं आंतरिक भेदभाव पर केंद्रित था।
डॉ. अम्बेडकर की-इंडस्ट्रीज पर राज्य नियंत्रण, निजीकरण विरोध एवं विकेंद्रीकरण के पक्षधर रहे, ताकि अंतिम व्यक्ति को लाभ पहुंचे। जल-विद्युत आयोग, दामोदर घाटी, पावर ग्रिड अवधारणा एवं मातृत्व अवकाश जैसे विचारों से आधुनिक संस्थाओं का आधार तैयार किया।
अम्बेडकर देश विभाजन के प्रबल विरोध रहे : बहरवाल
सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय अजमेर के प्राचार्य एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ. मनोज कुमार बहरवाल ने डॉ. अम्बेडकर के जीवन से जुड़े अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहां कि अम्बेडकर देश विभाजन के प्रबल विरोध रहे, उन्होंने नेहरू के समाजवाद की धारणा को कभी स्वीकार नहीं किया। डॉ. अम्बेडकर केवल दलित नेता नहीं थे बल्कि राष्ट्रवादी चिंतक थे और उनके विचार हमारे संविधान में बहुत स्पष्ट नजर आते हैं।
इससे पहले आरएचआरडीएफ राजस्थान क्षेत्र सचिव खाजूलाल चौहान ने संस्था का परिचय देते हुए अब तक किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों की जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. उमेश दत्त ने किया। आगंतुक अतिथियों व श्रोताओं ने
कार्यक्रम के अन्त में डॉ. अम्बेडकर चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की। इस अवसर पर डॉ. सुभाष चंद्र, स्वतंत्र कुमार, डॉ. संत कुमार, डॉ. पवन चंचल डॉ. बृजकिशोर, डॉ. पंकज गौर, विनय कुमार, दिनेश बघेल, ममता सोनगरा, जितेंद्र बहरवाल रजनी बघेल, डॉ. अनूप कुमार, डॉ. मनोज अवस्थी, डॉ. गेब्रियल खान, और डॉ. विमल महावर आदि मौजूद रहे।





