लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने 60 से अधिक जिला प्रचारकों के पदों में फेरबदल करते हुए बड़े संगठनात्मक बदलाव किए हैं। अगले साल होने वाले पंचायत चुनावों और 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारियों के लिहाज से इस बदलाव को काफी अहम माना जा रहा है।
संघ के सूत्रों की मानें तो जमीनी स्तर पर बेहतर और अधिक कुशल समन्वय सुनिश्चित करते हुए संगठनात्मक तंत्र में नई जान फूंकने के लिए ही ये बदलाव किए गए हैं। जिला प्रचारक कार्यकर्ताओं को संगठित करने और जमीनी स्तर पर वैचारिक पहुंच को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आरएसएस सूत्रों ने बताया कि हर प्रांत में कम से कम 10 से 15 प्रचारकों के कार्यक्षेत्र बदले गए हैं। संघ के अनुसार यूपी में छह प्रांत हैं जिसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड सहित), ब्रज, अवध, गोरक्ष, काशी और बुंदेलखंड शामिल है। आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि ये बदलाव एक नियमित प्रक्रिया का हिस्सा हैं जो संघ अपने पदाधिकारियों की दक्षता बढ़ाने के लिए करता है। इस वर्ष, संघ के शताब्दी वर्ष समारोह के मद्देनजर यह महत्वपूर्ण है।
उन्होंने इस संभावना से इंकार नहीं किया कि इसका उत्तर प्रदेश में आगामी चुनावी मुकाबलों से संबंध हो सकता है। आरएसएस पदाधिकारी ने कहा कि आरएसएस और भाजपा का वैचारिक तालमेल किसी भी चुनावी मुकाबले से पहले होता है।
दूसरी ओर आरएसएस में हुए इस बदलाव को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक कुमार पंकज का कहना है कि आरएसएस और भाजपा उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। यूपी में सबसे ज्यादा लोकसभा की 80 सीटें हैं और जो पार्टियों की चुनावी महत्वाकांक्षाओं में अहम स्थान रखता है।
उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद उत्तर प्रदेश में आरएसएस की संगठनात्मक गतिविधियां महत्वपूर्ण हो गई हैं, जहां भाजपा को 2019 के 62 से गिरकर 33 सीटों पर आ जाने से झटका लगा था। संघ भाजपा की चुनावी गतिविधियों पर कड़ी नज़र रखना चाहता है लेकिन जरूरत पड़ने पर पर्याप्त समर्थन भी देता है।