इस चुनाव ने सिरोही भाजपा को दिया नया स्थानीय विकल्प!

सिरोही विधानसभा में भाजपा के जीतने के बाद ओटाराम देवासी के साथ कैलाशनगर सरपंच बिशनसिंह।

सिरोही। बूथ दर बूथ संयम लोढ़ा की एकमात्र वजह जो सामने निकलकर आ रही है वो है कथित रूप से अपने ही कार्यकर्ताओं के साथ उनका दुर्व्यवहार और जीतने के बाद उन्हें पूरी तरह से दरकिनार कर दिया जाना।

इसी कथित एकाधिकार और दुव्र्यवहार ने सिरोही भाजपा को संगठन में भावी जिलाध्यक्ष के दावेदार के रूप में नया स्थानीय विकल्प दिया। पंचायत समिति चुनाव के बाद विधानसभा चुनावों में सिरोही विधानसभा में भी शिवगंज तहसील में पहली बार भाजपा को आगे रखने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है कैलाशनगर के पूर्व सरपंच बिशनसिंह की। जुबलीगंज से लेकर मणादर, कैलाशनगर तक के बूथ के आंकड़े इसी गवाही देे रहे हैं।

बाहरी नेताओं पर भारी

सिरोही विधानसभा में शिवगंज क्षेत्र में ओटाराम देवासी के रहते हुए भी भाजपा कई बार पीछे ही रही। लेकिन, इस बार दो दशकों को मिथक टूटा। यूं जिलाध्यक्ष की दौड़ में शामिल निकाय और पंचायत चुनाव हार चुके कई बाहरी और स्थानीय नेता ये दावा करते आ रहे हैं कि उन्होंने इस बार शिवगंज क्षेत्र में भाजपा को बढ़त दिलवाई। जबकि ये लोग दो दशकों से सिरोही विधानसभा में भाजपा के लिए काम कर रहे हैं।

इसी कारण वर्तमान मुख्यमंत्री और तत्कालीन जोधपुर संभाग के प्रभारी रहे भजनलाल शर्मा ने ही ऐसे नेताओं को सिरोही से बाहर रखने में ही गनीमत समझी थी। शिवगंज पंचायत समिति में भाजपा की कमान संभाले कैलाशनगर के सरपंच बिशनसिंह की परफॉर्मेंस ने सिरोही में भाजपा को राजपूत समाज में ही एक नया स्थानीय विकल्प दे दिया है। ऐसे में बाहरी और स्थानीय को लेकर विवाद में पड़े भाजपा के जिलाध्यक्ष पद के लिए स्थानीय राजपूत समाज से ही भाजपा को एक नया विकल्प मिल गया है।

ये था टर्निंग प्वाइंट

इस चुनाव में भाजपा को शिवगंज विधानसभा में राजपूत समाज के दो विकल्प मिले। एक बिशनसिंह दूसरा कुलदीपसिंह। बिशनसिंह और कुलदीपसिंह दोनों ही एक दशक पहले संयम लोढ़ा के करीबियों में से थे। लेकिन, लोढ़ा के कथित व्यवहार से व्यथित होकर इन लोगों ने अपनी अलग राह पकड़ ली।

बिशनसिंह लगातार दो-तीन बार कैलाशनगर के सरपंच रहे। लेकिन, बीच में ये सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई। इस पर वो अपनी पत्नी को लड़वाने के इच्छुक थे, तो संयम लोढ़ा अपने दूसरे करीबियों को। इसी मुददे पर दोनों में मनमुटाव हुआ तो विधायक बनने के बाद संयम लोढ़ा ने पंचायत समिति में निर्र्माण के मामले करीब सात लाख की रिकवरी निकलवा दी। रिकवरी की राशि भरकर बिशनसिंह ने भाजपा ज्वाइन की।

इसके बाद पहली बार पंचायत समिति चुनावों में संयम लोढ़ा के गढ़ में ही कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ और बिशनसिंह की पत्नी दो दशक बाद शिवगंज पंचायत समिति से भाजपा की प्रधान बनी। पंचायत समिति प्रभावी हस्तक्षेप के कारण हर ग्राम पंचायत में बिशनसिंह की पकड़ और हर ग्राम पंचायत में ग्राम सचिवों के कार्यों तक संयम लोढ़ा के हस्तक्षेप को सिरोही विधानसभा के शिवगंज पंचायत समिति क्षेत्र में दूसरी बार कांग्रेस का वर्चस्व तोडऩे का काम किया।

देवासी से भीतरघात करने वाले श्रेय में आगे

पिछले चुनावों में ओटाराम देवासी से भीतरघात करने वाले भाजपा के कई नेता इस बार सिरोही शहर के होते हुए भी शिवगंज पंचायत समिति में चुनाव जिताने का श्रेय लेने में जुटे हैं। जिलाध्यक्ष की दौड़ में भी ये लोग आगे बताए जा रहे हैं। ये बात अलग है कि ओटाराम देवासी को हरवाने की कीमत के रूप में ये लोग कांग्रेस के पिछले शासन में संयम लोढ़ा से कई तरह से उपकृत होते रहे हैं। लेकिन, अब शिवगंज पंचायत समिति में भाजपा को बढ़त मिलने का श्रेय खुद ओढ़ते फिर रहे हैं। जबकि इनकी पुरानी हरकतों की वजह से भाजपा के संभाग के ही नेताओं ने इन्हें सिरोही की चुनाव प्रक्रिया में कोई दायित्व तक देना उचित नहीं समझा था।

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