सामाजिक समानता मिलने तक आरक्षण जारी रहे : मोहन भागवत

बेंगलूरु। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को इस बात पर ज़ोर दिया कि शिक्षा में आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक सच्ची सामाजिक समानता हासिल न हो जाए।

भागवत ने संघ की 100 वर्ष की यात्रा पर व्याख्यान शृंखला में कहा कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक असमानता, भेदभाव और अस्पृश्यता पूरी तरह खत्म नहीं हो जाए। एक बार जब समाज के सभी वर्गों को वास्तव में समान अवसर मिलने लगेंगे, तो योग्यता स्वाभाविक रूप से फलेगी-फूलेगी। आरक्षण और योग्यता एक-दूसरे के विपरीत नहीं हैं, बल्कि ये निष्पक्षता और संतुलन सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करते हैं।

उन्होंने कहा कि प्रतिभा समाज के सभी वर्गों में मौजूद है, जिसमें पिछड़े वर्ग और अन्य हाशिए पर पड़े समुदाय भी शामिल हैं, और यह मानना गलत है कि योग्यता केवल आरक्षण प्रणाली के बाहर ही है।

भागवत ने अवसर की समानता के मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि हज़ारों सालों से, समाज के वंचित वर्ग समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ रहे हैं। हमें सभी समुदायों को अवसर, प्रेम और सम्मान के मामले में समान स्तर पर लाना होगा। तभी योग्यता का निष्पक्ष रूप से संरक्षण हो सकता है।

उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि गुप्त और प्रत्यक्ष अस्पृश्यता अभी भी बनी हुई है और कई सामाजिक बाधाएं अभी भी मौजूद हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि आरक्षण को समय से पहले समाप्त करने से उन्हीं लोगों को नुकसान होगा जिन्हें अभी भी सहायता की आवश्यकता है।

भागवत ने कहा कि कुछ प्रगति हुई है जो एक सकारात्मक बदलाव है। पिछड़ा वर्ग के कुछ समुदाय अब दाता के रूप में काम करने और योग्य लोगों का समर्थन करने में आत्मविश्वास महसूस कर रहे हैं।

जबरन धर्म परिवर्तन पर भागवत ने कहा कि धर्म परिवर्तन को रोकने की कुंजी प्रेम, सम्मान और सेवा के माध्यम से सामुदायिक पहचान को मजबूत करना है। उन्होंने कहा कि धर्म परिवर्तन को बलपूर्वक या कानूनी उपायों से नहीं, बल्कि अपनी परंपरा के प्रति अपनेपन और गर्व की भावना पैदा करके हतोत्साहित किया जा सकता है। जब लोग अपने समाज में सम्मान, देखभाल और अवसरों का अनुभव करते हैं, तो धर्म परिवर्तन का आकर्षण स्वाभाविक रूप से कम हो जाता है।

भागवत ने भाषा, जाति और धर्म के पार समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक एकीकरण के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि परिवारों और दोस्तों को आपस में मिलना-जुलना चाहिए, त्योहार साथ मिलकर मनाने चाहिए और एक-दूसरे का समर्थन करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्रत्येक हिंदू को जाति, भाषा या क्षेत्र से परे एक समरूप समाज का हिस्सा माना जाना चाहिए। इससे स्वाभाविक रूप से विकास में संतुलन आता है। समाधान भारतीय समाज में ही मौजूद हैं, हमें पश्चिमी मॉडलों का अनुकरण करने की आवश्यकता नहीं है।

भागवत ने राजनेताओं द्वारा जाति और मनुस्मृति जैसे ग्रंथों के दुरुपयोग पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सामाजिक जागरूकता सबसे प्रभावी प्रतिक्रिया है।
उन्होंने कहा, “राजनीतिक शरारतें तभी पनपती हैं जब वे स्वार्थ सिद्ध करती हैं। जब समाज सामूहिक रूप से विभाजनकारी विचारों को स्वीकार करने से इनकार करता है और समानता पर ज़ोर देता है, तो ऐसे प्रयास बेकार हो जाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि एकीकरण, सम्मान और एकता को सबसे पहले सामुदायिक स्तर पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

भागवत की टिप्पणी संघ के इस विश्वास को उजागर करती है कि सामाजिक एकता, सशक्तीकरण और सभी समुदायों के प्रति सम्मान विभाजन, धर्मांतरण और भेदभाव के विरुद्ध सबसे प्रभावी हथियार हैं।