सिरोही विधानसभा : धर्म बनाम डवलपमेंट बनाम स्थानीय, मतदाता तय करेंगे नसीब

सिरोही विधानसभा
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सबगुरु न्युज- सिरोही (परीक्षित मिश्रा)। सिरोही में 25 नवम्बर को विधानसभा चुनावों के लिए मतदान होगा। सिरोही विधानसभा में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच में है, लेकिन भाजपा के बागी हेमंत पुरोहित दोनों के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं।

हेमंत पुरोहित पर हमले के बाद तो यहां की स्थिति में और बदलाव आने की संभावना जताई जा रही है। वो जिन मतदाता वर्ग में अपनी पकड़ मानते हैं उनमें कांग्रेस और भाजपा दोनों शामिल हैं। लेकिन, महिला मतदाताओं में उनकी पकड़ कुछ ज्यादा ही है। वहां आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी के कांग्रेस के जीत मूल वोट बैंक में सेंधमारी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
पिछले विधानसभा चुनाव में सिरोही से संयम लोढ़ा निर्दलीय जीते थे। इस बार वो कांग्रेस के सिम्बल से लड़ रहे हैं। उनके प्रतिद्वंद्वी चौथी बार भी ओटाराम देवासी हैं, इस बार भी वो भाजपा के उम्मीदवार हैं। संयम लोढ़ा को पिछले विधानसभा चुनावों में अधिकांश बूथों पर बढोतरी मिली थी। 2013 की उनकी हार और 2018 की उनकी जीत के वोटों को अंतर करीब 35 हजार का है। यानि पिछले विधानसभा चुनावों में वो 2013 में मिले वोटों की तुलना में इतने वोट ज्यादा हासिल किए। इनमें भाजपा के वोट भी थे जिन्होंने ओटाराम देवासी के लगातार दस साल विधायक रहने के बाद भी विधानसभा में कुछ खास विकास नहीं करवा पाने के मुद्दे पर अपना गुस्सा निकाला था। लेकिन, पांच साल विधायक रहने के बाद अब संयम लोढ़ा के खिलाफ भी एंटी इंकम्बेंसी देखने को मिल रही है।
सिरोही शहर में नगर परिषद में उनके हस्तक्षेप के कारण नगर परिषद की कार्यप्रणाली को लेकर लोगों में गुस्सा है। उन्होंने अपरिपक्व मैनेजरों के हाथ में अपने पुराने कार्यकर्ता छोड़ दिए। जिन्होंने नए कार्यकर्ताओं को जोडऩे के चक्कर में पुरानों को न सिर्फ दरकिनार किया बल्कि कॉलेज के लडक़ों अधीनस्थ शहरी और गांव के वरिष्ट कार्यकर्ताओं को कर दिया जिसकी भी जबरदस्त नाराजगी शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के कार्यकर्ताओं में देखने को मिल रही है। इसका असर उनकी संतोषी माता मंदिर चौक की सभा देखने को मिला।
ओटाराम देवासी के प्रति भाजपा के अंदर की नाराजगी का सबसे बड़ा प्रमाण हेमंत पुरोहित है। वो इसलिए बागी हुए कि ये बाहर का होकर भी जातिगत आधार पर सिरोही के स्थानीय नेताओं का नम्बर नहीं आने दे रहे हैं। पुराने नाराज मतदाता अब भी उनके पास लौटेंगे ये कहना मुश्किल है। उनके लिए हेमंत पुरोहित के रूप में नया विकल्प तैयार है।

उन्होंने अपने पिछले दस सालों की एंटी इंकम्बेंसी के अलावा खुदके खिलाफ खुदकी पार्टी में ही फैली एंटी इंकम्बेंसी से जूझना है। संयम लोढ़ा की तरह वो खुद चुनाव मैनेजर नहीं है ये उनकी सबसे बड़ी खामी है। वसुंधरा राजे के सामने बालाजी भवन में हुई बैठक में उनकी बूथ रिव्यू बैठक के जवाब से यही प्रतीत हो रहा है कि वो अपनी जीत आरएसएस के भरोसे छोड़ दिए हैं। ऐसे में भाजपा कार्यकर्ताओं को भी बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी जा रही है। ओटाराम देवासी भाजपा से ही टिकिट के दावेदारों को यह कहकर मनाने के प्रयास में हैं कि वो अब यहां से टिकिट नहीं मांगेंगे।
लेकिन, भाजपा के बागी हेमंत पुरोहित के मंचों से किए जा रहे दावों के अनुसार माताजी के मंदिर में कसम खाकर ये ही बात वो पिछली बार भी बोले थे। ऐसे में उन पर कौन कितना विश्वास कर रहा है। यूं पिछली बार निर्दलीय खड़े होने पर संयम लोढ़ा की तरफ मुड़े मतदाताओं की कुछ संख्या के फिर से इनकी तरफ लौटने की संभावना है, लेकिन, पूरे मतदाता इनकी ओर लौटेंगे ये कहा नहीं जा सकता। लोढ़ा ने अंतिम क्षणों में आदर्श घोटाले का पैसा वापस दिलवाने का वायदा करके एक मास्टर स्ट्रोक खेला है जो शायद उन्हें कुछ लाभ की स्थिति में ला दे क्योंकि आदर्श घोटाले में सबसे ज्यादा प्रभावित लोग आरएसएस और भाजपा के कहीं ना कहीं संबद्ध हैं।
भाजपा के बागी हेमंत पुरोहित को ओटाराम देवासी और उनके समर्थक कमजोर मान रहे हैं। उनको पुरोहित समाज में देवासी समाज की तरह की एकजुटता नहीं होने का पूरा विश्वास है। ऐसे में वो मान रहे हैं कि वो चार डिजिट में भी नहीं पहुंच पाएंगे। ओटाराम देवासी के साक्षात्कारों और उनके समर्थकों के अति आत्मविश्वास को देखकर ये लग रहा है कि वो हेमंत पुरोहित के फेक्टर को कम आंककर चल रहे हैं।

कालन्द्री से लेकर सिलदर तक बैल्ट से ओटाराम देवासी लीड लेते हुए आते हैं। इसी बैल्ट में हेमंत पुरोहित पर हमला हुआ। ये पूरा पुरोहित बहुल इलाका है। ऐसे में यदि इस हमसे का प्रभाव पड़ा तो भाजपा के भरोसे की भैंस पाडे नहीं ला दे। लेकिन, ओटाराम देवासी को बड़ा फायदा जीवाराम आर्य को मिले उन आठ हजार वोटों को भी है जो जातिय कारणों से एकमुश्त खिसक कर संयम लोढ़ा की तरफ छिटक गए थे।
कांग्रेस प्रत्याशी संयम लोढ़ा के लिए आजाद समाज पार्टी के मातीलाल को एक चुनौति माना जा रहा है। कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक के उसके पास जाने की आशंका है। वैसे आजाद समाज पार्टी कांशीराम से वो खड़े हुए हैं वो भीम आर्मी से संबद्ध माना जाता है। ऐसे में अनुसूचित जाति में भी उन्हें कितना सहयोग मिलेगा ये अभी देखना बाकी है। यूं भाजपा का पूर्व पदाधिकारी भैराराम बरार भी निर्दलीय के रूप में खड़े हुए हैं। वो कांग्रेस के मेघवाल वोट बैंक पर सेंधमारी को मोहरा माना जा रहे हैं लेकिन, उन्हें पिछले चुनावों में मिले वोट ये बता रहे हैं कि वो कुछ ज्यादा असर नहीं डाल पाएंगे। इस विधानसभा में जीत उसके सिर बंधेगी जो दूसरे के वोट बैंक में जितनी ज्यादा सेंधमारी कर देगा।