सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही जिले में पिछले एक पखवाडे से जंगल से जुडे दो मामलों में जनआदोलन की स्थिति बनी। एक सप्ताह में ही इन दोनों का निस्तारण हो गया। पिछले सप्ताह सिरोही और शिवगंज तहसील में विस्तृत वाडाखेडा कंजर्वेशन रिजर्व में सिरोही वन मंडल ने मवेशियों को चरने पर रोक लगा दी थी। वहीं माउण्ट आबू के उपवन संरक्षक ने माउण्ट आबू के नगर पालिका क्षेत्र में ईको सेंसेटिव जोन में मरम्मत, निर्माण और पुनर्निर्माण की पत्रावलियां उनकी अनुमति के लिए मंगवा ली थी। दोनों ही मामलों में लोगों में आक्रोश फैला। इनके निराकरण तो निकले लेकिन, जंगलों से जुड़े मामलों के अन्य स्थानों घटनाक्रम बता रहे हैं कि ये विवाद और टकराव अंतिम नहीं हैं।
-एक जगह साथ भाजपा-कांग्रेस, दूसरी जगह आमने सामने
इन दोनों ही मामलों में पिसना आम जनता को था। मुद्दा बहुत बडे जनमानस के के भविष्य से जुडा हुआ था तो राजनीति होनी थी। लेकिन, माउण्ट आबू और वाडाखेडा में राजनीति के दो रूप दिखे। माउण्ट आबू में जनता की मांग के लिए कांग्रेस और भाजपा एकसाथ खडी नजर आई। वहीं वाडाखेडा को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने सामने। कांग्रेस नेता संयम लोढा और भाजपा के मंत्री ओटाराम देवासी के बीच एक दूसरे को घेरने की कोशिश जारी है।
– ये हुआ निराकरण
सिरोही शिवगंज की सीमा पर राजस्थान की सबसे बडी घासवीड फैली हुई है। नाम है वाडाखेडा। इसे अशोक गहलोत सरकार ने कंजर्वेशन रिजर्व घोषित कर दिया था। कंजर्वेशन रिजर्व घोषित होने से पहले इसमें सिरोही और शिवगंज तहसील की दस पंचायत समितियों के मवेशी चरते थे। सत्ता बदली तो वन विभाग ने चराई पर रोक लगा दी। लम्बे विरोध के बाद एक अगस्त को सिरोही जिला मुख्यालय पर बडा प्रदर्शन हुआ। इसमें जिला कलेक्टर और सिरोही डीएफओ ने लोगों को बताया कि कंजर्वेशन रिजर्व को दो हिस्सों में बांट दिया गया है। एक हिस्सा मवेशियों के चराने के लिए खुला रहेगा। वहीं दूसरा हिस्सा कृष्णमृग के लिए संरक्षित रहेगा। इससे लोगों को राहत मिली।
माउण्ट आबू में पिछले करीब 40 सालों से लोगों को नए मकानों के निर्माण, जर्जर हो चुके भवनों के पुनर्निर्माण और मरम्मत को लेकर पाबंदियां थीं। माउण्ट आबू नगर पालिका सीमा और इसके बाहर के सात गांवों को ईको सेंसेटिव जोन घोषित करने 16 साल बाद जनवरी 2025 में हाईकोर्ट के दबाव में जोनल मास्टर प्लान लागू हुआ। इसके बाद मास्टर प्लान और बिल्डिंग बायलाॅज के तहत यहां पर नए भवन निर्माण, जर्जर भवनों के पुनर्निर्माण और मरम्मत की अनुमति जारी होनी शुरू हो गई। इस बीच माउण्ट आबू डीएफओ के द्वारा नगर पालिका के द्वारा कोई भी निर्माण और मरम्मत उसकी अनुमति के बिना नहीं दिए जाने का आदेश पारित हुआ। इसे लेकर ही सबमें आक्रोश फैल गया। ज्ञापन दिए। धरने की चेतावनी दी। अंततः सोमवार को ज्ञापन के दौरान उपखण्ड अधिकारी अंशु वशिष्ट ने बताया कि वन सीमा के पचास मीटर के दायरे में आने वाली पत्रावलियों को ही वन विभाग को भेजे जाने का निर्णय हुआ है। प्रदेश में सभी जगह और यहां तक कि यूआईटी आबूरोड में भी वन विभाग की सीमा से पचास मीटर की परिधि वाले इलाके को ही फाॅरेस्ट की एनओसी के लिए वन विभाग के पास भेजा जा रहा है। ये फाइलें माउण्ट आबू डीएफओ के पास भी जा रही हैं। लेकिन, उनके द्वारा नगर पालिका सीमा की हर पत्रावली का उनके माध्यम से अनुमति देने के पत्र ने विवाद खडा कर दिया था।
-सुकून देने वाली दो तस्वीरें
इन दोनों विवादों में सिरोही और माउण्ट आबू से दो तस्वीरें सामने आई। ये तस्वीरें लोकतंत्र में जनता के सम्मान का प्रतीक हैं। अधिकारियों द्वारा जनता और जनप्रतिनिधियों की नहीं सुनने की शिकायत के बीच भजनलाल सरकार के लिए ये तस्वीरें राहत देने वाली हो सकती हैं। आमतौर पर सिरोही जिला कलेक्टर कार्यालय और माउण्ट आबू उपखण्ड अधिकारी कार्यालय में इस तरह का नजारा दिखता नहीं है। वाडाखेडा के आंदोलन के दौरान जिला कलक्टर अल्पा चैधरी कार्यालय से निकलकर पशुपालकों के बीच में ज्ञापन लेने और सुनवाई के लिए पहुंची। वहीं माउण्ट आबू में उपखण्ड अधिकारी अंशु वशिष्ट भी ज्ञापन देने आने वाले शहरवासियों को सुनने के लिए कार्यालय के बाहर आई।
इन दोनों अधिकारियों के इस गेश्चर ने एक संदेश लोगों में पहुंचाया वो ये कि वो समस्या के निराकरण के लिए पूरी तरह से पारदर्शी और ईमानदार हैं। इसके उलट हालात तो जिले के नगर निकायों के हैं। जहां के अधिशासी अधिकारियो के ठाठ कलेक्टर और उपखण्ड अधिकारियों से ज्यादा हैं। अधिकांश जगहों पर इनके कार्यालय और कार्यालय के बाहर नहीं मिलने के आरोप लगते रहे हैं। इस पर लाटसाहबगिरी ये कि कार्यालय आने वाले शहरवासियों की एंट्रियां भी शुरू करवा रखी हैं।