संतोष खाचरियावास
मकानों से ऊंची सड़कें…अजमेर के किसी भी इलाके में चले जाइए, हर जगह पुरानी सड़क को हटाए बिना रातों रात उसी सड़क पर नई सड़क बना दी जाती है। बरसों से ऐसा ही हो रहा है। लोगों के मकानों में सड़क का पानी भरे तो भरे…! सरकार कहती है कि डामर सड़क की ऊपरी परत हटाकर ही नई परत बिछाई जाए, लेकिन इस आदेश-निर्देश की पालना केवल हाईवे को छोड़कर कहीं नहीं हो रही है। पीडब्ल्यूडी, नगर निगम और एडीए ने शहर में जितनी भी सड़कें अब तक बनवाई हैं, कहीं भी पुराने मलबे को हटाकर नहीं बनवाई गईं। इसी का नतीजा है कि सड़कें ऊंची होती गईं और किनारों पर फुटपाथ और लोगों के मकान दुकान नीचे होते गए। कुछ अपवादों को छोड़कर किसी माई के लाल ने इसका विरोध नहीं किया। लोग यह सोचकर ही खुश होते रहे कि… चलो, सड़क बन तो रही है।
कुछ महीनों पहले मार्टिण्डल ब्रिज के नीचे दुकानदारों ने यह कहकर सड़क निर्माण का काम रुकवा दिया था कि पुरानी सड़क खोदे बिना नई नहीं बनने देंगे। सड़क पर सड़क बनने से उनकी दुकानों में पानी भरेगा। दुकानदारों की समझ पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों और ठेकेदार की समझदारी पर भारी पड़ी। आखिरकार ठेकेदार को बैकफुट पर आना पड़ा। पुराना मलबा खोदकर हटाया। तब जाकर दुकानदारों ने वहां नई सीसी रोड बनाने दी।
इस बार शहर में पहली दफा मिलिंग मशीन आई है। यह मशीन डामरीकृत सड़क की ऊपरी लेयर को समान रूप से हटाने का काम करती है। ज्यादातर इसका इस्तेमाल हाईवे की सड़कों की मेंटिनेंस के लिए किया जाता है। अजमेर शहर में पहली बार कोई ठेकेदार यह मशीन किराए पर लेकर आया है। जिसे देखना हो, वह कुन्दननगर रोड पर जाकर देख सकता है। वहां बस स्टैंड से लेकर सीआरपीएफ ब्रिज तक सड़क निर्माण में इसकी मदद ली जा रही है।
सवाल यह है कि इस बार ऐसी क्या नौबत आई कि ठेकेदार को मिलिंग मशीन मंगवानी पड़ी। जबकि पिछले सालों में स्टेशन रोड, जीसीए से रामगंज होते हुए ब्यावर रोड, पृथ्वीराज मार्ग, कचहरी रोड, पुष्कर रोड, जयपुर रोड, वैशाली नगर रोड…जैसे सभी मार्गों पर कई बार नई सड़कें बनीं। एडीए की कॉलोनियों और नगर निगम के वार्डो में भी कई-कई बार सड़कें बनीं लेकिन हर बार डामर पर डामर चढ़ा दिया गया और अफसर-इंजीनियर आंखें मूंदे रहे। मिलिंग मशीन कभी भी काम में नहीं ली गई। ब्यावर रोड पर तो पुरानी सड़क पर जेसीबी के दांतों से केवल आड़ी तिरछी लकीरें ऊपर नई लेयर चढ़ा दी गई थी।
सवाल यह भी है कि सरकार के निर्देश के बावजूद बरसों से शहर में सड़क पर सड़क कैसे बनती आई हैं? कुछ समय पहले जीसीए से डीएवी कॉलेज तक बनी सड़क को लेकर सम्पर्क पोर्टल पर शिकायत हुई कि ठेकेदार ने बिना पुरानी परत हटाए पेवर की छह इंच मोटी नई परत चढ़ा दी। तब पीडब्ल्यूडी के अभियंताओं ने अपने बचाव में इस मोटी परत को महज 12 एमएम की बताकर पल्ला झाड़ लिया था। आमतौर पर ठेकेदार कम माल लगाकर ज्यादा बताता है लेकिन उस मामले में उल्टा हुआ। सड़क पर माल ज्यादा चढ़ाया गया लेकिन जब आफत गले पड़ी तो इसे ‘कारपेटिंग’ कहकर माल कम चढ़ाना बताया गया। (अभियंताओं के इस झूठ के सबूत इस सड़क के किनारों पर अब भी देखे जा सकते हैं)।
उधर, शहर में जिन लोगों के मकान या दुकान सड़क के लेवल तक आ गए, उनके मकान-दुकान में सड़क पर बहने वाला बरसाती पानी घुस जाता है। उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ती है। अपने मकान-दुकान का फर्श ऊंचा कराना पड़ता है। लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। प्रॉपर्टी की वैल्यू कम होती है सो अलग।
ये सड़कें हमारे होनहार सरकारी इंजीनियर्स की बुद्धि का मजाक उड़ा रही हैं। सरकार केवल कहती रहती है… इंजीनियर, अफसर और ठेकेदार करते अपने मन की है। तीनों तबके मिलकर सड़क निर्माण के बहाने सिर्फ और सिर्फ अपने हित साध रहे हैं। सम्बंधित जनप्रतिनिधि को उसका तय कमीशन देने के बाद इन तिलंगों को किसी का डर नहीं रहता। ना जनता का, ना मीडिया का.. और न कलेक्टर का। जनता तो नियम जानती नहीं ..। मीडिया नियम जानता है लेकिन इन तिलंगों से बैर कौन मोल ले? आखिर थैली तो एक ही है… चट्टों बट्टों के नाम अलग हैं!




