सुप्रीमकोर्ट ने केजरीवाल को दी अंतरिम जमानत, मुख्यमंत्री कार्यालय जाने पर रोक

नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने आबकारी नीति कथित घोटाले से संबंधित धनशोधन के एक मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री कार्यालय जाने पर पाबंदी समेत कई अन्य शर्तों पर शुक्रवार को एक जून तक के लिए अंतरिम जमानत दी और अपनी गिरफ्तारी के 50 दिन (39 दिन न्यायिक हिरासत और 11 दिन ईडी की हिरासत) के बाद तिहाड़ जेल से उन्हें रिहा कर दिया गया1

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दिपांकर दत्ता की पीठ ने याचिकाकर्ता श्री केजरीवाल और उन्हें (मुख्यमंत्री) गिरफ्तार करने वाली केन्द्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की दलीलें कई दिनों तक विस्तारपूर्वक सुनने के यह आदेश पारित करते हुए दो जून को संबंधित जेल प्रशासन के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।

पीठ ने लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान के बीच मुख्यमंत्री केजरीवाल को राहत देते कहा कि अंतरिम जमानत देने की शक्ति का प्रयोग आमतौर पर कई मामलों में किया जाता है। प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर अंतरिम जमानत दी जाती है। यह मामला अपवाद नहीं है।

आप के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल को दिल्ली की आबकारी नीति 2021-22 (जो विवाद के बाद रद्द कर दी गई थी) कथित घोटाला मामले में 21 मार्च 2024 को गिरफ्तार किया गया था। ईडी की ओर से गिरफ्तार किए जाने की वैधता को उन्होंने चुनौती दी, लेकिन अभी तक कोई जमानत याचिका दायर नहीं की है।

शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान ईडी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू के उस जोरदार विरोध को खारिज कर दिया कि शीर्ष अदालत अंतरिम जमानत के आदेश के परिणामस्वरूप राजनेताओं को विशेषाधिकार या विशेष दर्जा मिल जाएगा। केजरीवाल का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने रखा।

पीठ ने अपने आठ पन्नों के जमानती आदेश में कहा कि अपीलकर्ता अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री और एक राष्ट्रीय दल के नेता हैं। निस्संदेह उन पर गंभीर आरोप लगाए गए, लेकिन उन्हें अभी दोषी नहीं ठहराया गया है। उनका कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं है। वह समाज के लिए कोई खतरा नहीं हैं। वर्तमान मामले में (केजरीवाल के खिलाफ) जांच अगस्त 2022 से लंबित है।

न्यायमूर्ति खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने ईडी की ओर से 9 मई को दायर एक हलफनामे के तथ्यों का जिक्र करते हुए कहा कि तथ्यात्मक स्थिति की तुलना फसलों की कटाई या व्यावसायिक मामलों की देखभाल की याचिका से नहीं की जा सकती है‌। पीठ ने आगे कहा कि जब मामला विचाराधीन और गिरफ्तारी की वैधता से संबंधित प्रश्न विचाराधीन हैं तो 18वीं लोकसभा के आम चुनाव के मद्देनजर अधिक समग्र और उदारवादी दृष्टिकोण उचित है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश (जिसमें गिरफ्तारी के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी गई) को चुनौती देने वाली मुख्यमंत्री केजरीवाल की याचिका पर या तो दलीलें पूरी करना या अंततः फैसला सुनाना तत्काल संभव नहीं है। शीर्ष अदालत ने केजरीवाल पर अंतरिम जमानत की जो शर्तें लगाई उनमें, 50,000 रुपए की जमानत और इतनी ही राशि का मुचलका जमा का आदेश शामिल है।

पीठ ने अपने आदेश में शर्तें लागते हुए कहा कि वह (केजरीवाल) अपनी ओर से दिए गए बयान (अदालत में) का पालन करने को बाध्य होंगे। वह आधिकारिक (मुख्यमंत्री कार्यालय की) फाइलों पर तब तक हस्ताक्षर नहीं करेंगे, जब तक कि यह आवश्यक न हो और दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी/अनुमोदन प्राप्त करने के लिए आवश्यक न हो।

वह इस मामले में अपनी भूमिका के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। मामले में किसी भी गवाह से बातचीत नहीं करेंगे और/या मामले से जुड़ी किसी भी आधिकारिक फाइल तक उनकी पहुंच नहीं होगी। राऊज एवेन्यू स्थित काबेरी बाबेजा की विशेष अदालत ने सात मई को उनकी न्यायिक हिरासत अवधि 20 मई तक बढ़ाने का आदेश पारित किया था।

उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय से अपनी याचिका खारिज होने के बाद 10 अप्रैल को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की एकल पीठ ने (नौ अप्रैल को) मुख्यमंत्री केजरीवाल को गिरफ्तार करने और उस केंद्रीय जांच एजेंसी को उन्हें हिरासत में देने के एक विशेष अदालत के फैसले को उचित ठहराते हुए उनकी याचिका (मुख्यमंत्री केजरीवाल की) खारिज कर दी थी।

एकल पीठ ने मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी और हिरासत के मामले में हस्तक्षेप करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया था। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा था कि ईडी की ओर से अदालत के समक्ष पेश दस्तावेजों से प्रथम दृष्ट्या पता चलता है कि आरोपी केजरीवाल उक्त आबकारी नीति को तैयार करने की साजिश शामिल थे।

उन्होंने (आरोपी) उस अपराध से प्राप्त आय का इस्तेमाल किया। एकल पीठ ने यह भी कहा था कि वह (केजरीवाल) व्यक्तिगत तौर पर उस नीति को बनाने और रिश्वत मांगने में भी कथित तौर पर शामिल थे।

केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव का हवाला देते हुए केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गई अपनी गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि यह (उनकी गिरफ्तारी) लोकतंत्र, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और समान अवसर सहित संविधान की मूल संरचना का ‘उल्लंघन’ करता है। इसलिए उनकी गिरफ्तारी और हिरासत को अवैध घोषित किया जाना चाहिए।

ईडी ने अरविंद केजरीवाल पर दिल्ली आबकारी नीति के माध्यम से गलत तरीके से करोड़ों रुपए हासिल करने और इसमें मुख्य भूमिका निभाने वाला साजिशकर्ता होने का आरोप लगाया है।

केंंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 17 अगस्त 2022 को आबकारी नीति बनाने और उसके कार्यान्वयन में की गई कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए एक आपराधिक मुकदमा दर्ज किया था। इसी आधार पर ईडी ने 22 अगस्त 2022 को धनशोधन का मामला दर्ज किया था।

ईडी का दावा है कि आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया, राज्य सभा सांसद संजय सिंह सहित अन्य ने अवैध कमाई के लिए साजिश रची थी।

गौरतलब है कि इस मामले में ‘आप’ सांसद सिंह को उच्चतम न्यायालय ने दो अप्रैल को राहत दी। शीर्ष अदालत ने उन्हें जमानत की अनुमति के साथ ही संबंधित विशेष अदालत को जमानत की शर्ते तय करने का भी निर्देश दिया था। शीर्ष अदालत के इस आदेश के मद्देनजर राऊज एवेन्यू स्थित काबेरी बाबेजा की विशेष अदालत ने तीन अप्रैल को उन्हें सशर्त तिहाड़ जेल से रिहा करने का निर्देश दिया था।