NCISM अध्यक्ष की नियुक्ति रद्द करने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चिकित्सा पद्धति राष्ट्रीय आयोग (एनसीआईएसएमसी) के अध्यक्ष की नियुक्ति रद्द करने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर मंगलवार को रोक लगा दी, जिसमें उन्हें पद के लिए अयोग्य ठहराया गया था।

न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की अंशकालीन कार्य दिवस पीठ ने यह कहते हुए एनसीआईएसएमसी और अन्य को नोटिस जारी किया कि वह इस मसले पर विचार करेगी कि क्या पीएचडी डिग्री को कुछ पदों के लिए निर्धारित स्नातकोत्तर योग्यता माना जाएगा।

पीठ ने देवपुजारी के मंगलवार को पद छोड़ने और उन्हें पेंशन तथा अन्य लाभों से वंचित न किए जाने पर गौर करने के बाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई। कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने नौ जून, 2021 को एक परिपत्र जारी कर देवपुजारी को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था।

देवपुजारी ने दिल्ली उच्च न्यायालय के छह जून के आदेश को चुनौती दी, जिसमें एनसीआईएसएमसी के अध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति के खिलाफ दो याचिकाएं स्वीकार की गई थीं। आयोग के वकील ने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि अध्यक्ष के चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है, जिसके बाद उसने प्रक्रिया को शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया।

उच्च न्यायालय में याचिकाएं तत्कालीन केंद्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद के पूर्व अध्यक्ष वेद प्रकाश त्यागी और डॉ. रघुनंदन शर्मा ने दायर की थीं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि देवपुजारी को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनके पास राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग अधिनियम, 2020 (एनसीआईएसएम अधिनियम) के तहत अनिवार्य स्नातकोत्तर डिग्री नहीं है।

उच्च न्यायालय ने माना कि देवपुजारी के पास पीएचडी की डिग्री है, जबकि अपेक्षित डिग्री भारतीय चिकित्सा पद्धति के किसी भी विषय में एमडी या कोई अन्य समकक्ष स्नातकोत्तर डिग्री थी। पुणे विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें प्रदान की गई पीएचडी डिग्री के लिए निम्न योग्यता (आयुर्वेद में स्नातकोत्तर डिग्री) प्राप्त करना आवश्यक नहीं था।

उच्च न्यायालय ने कहा कि हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि एनसीआईएसएम अधिनियम, 2020 की धारा 4(2) में प्रयुक्त स्नातकोत्तर डिग्री का अर्थ भारतीय चिकित्सा पद्धति के किसी भी विषय में स्नातकोत्तर डिग्री (एमडी) है, जो प्रतिवादी के पास नहीं है और इसलिए, उसके पास संबंधित पद पर नियुक्ति के लिए अपेक्षित योग्यता नहीं है।

हाईकोर्ट ने कहा कि देवपुजारी को आयुर्वेद (बीएएमएस) में स्नातक करने के तुरंत बाद स्नातकोत्तर डिग्री कोर्स किए बिना पीएचडी कोर्स में प्रवेश दिया गया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि स्नातक के बाद विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रत्येक डिग्री को स्नातकोत्तर योग्यता नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि हमारे देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिग्री ने एक विशेष अर्थ और महत्व प्राप्त कर लिया है और स्नातकोत्तर डिग्री का अर्थ एमए, एमएससी, एमडी, एलएलएम या एमएड जैसी स्नातकोत्तर डिग्री है।