माउंट आबू-गुलाबगंज मार्ग पर सांसद की असली अग्नि परीक्षा अब शुरू होगी

प्रस्तावित माउंट आबू गुलाबगंज मार्ग का अवलोकन करते सांसद लुंबाराम चौधरी।

परीक्षित मिश्रा

सबगुरु न्यूज-सिरोही/माउण्ट आबू। केंद्र सरकार ने सेंट्रल रोड एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (CRIF, क्रिफ) से सिरोही जिले के माउंट आबू -गुलाबगंज मार्ग के लिए करीब 205 करोड़ रुपए की प्रशासनिक स्वीकृति दी है। इस प्रोजेक्ट को सार्वजनिक निर्माण विभाग ने सिरोही से बनाकर भेजा था। राज्य सरकार की सहमति के बाद केंद्र के सड़क परिवहन मंत्रालय ने इसकी प्रशासनिक स्वीकृति जारी कर दी है।

इसके लिए सांसद लुंबाराम चौधरी का जगह जगह माला पहनाकर अभिनंदन किया जा रहा है। सिरोही विधायक संयम लोढ़ा ने भी इसके लिए सांसद लुंबाराम चौधरी के प्रयासों को सराहा है। सांसद ने मंगलवार को माउंट आबू के डीएफओ शुभम् जैन और सार्वजनिक निर्माण विभाग के एसई आरसी बराड़ा के साथ माउंट आबू में इस मार्ग का अवलोकन किया।

आम तौर पर किसी प्रोजेक्ट की प्रशासनिक स्वीकृति मिल जाने को वित्तीय स्वीकृति की राह माना जाता है। लेकिन, जो काम प्रोटेक्टेड एरिया में होते हैं उनके लिए प्रशासनिक स्वीकृति ही प्रोजेक्ट के भविष्य में पूरा होने की गारंटी नहीं है। माउंट आबू के ही अनादरा से माउंट आबू 33 केवी इलेक्ट्रिक लाइन, सालगांव बांध परियोजना और पूर्व सांसद के कार्यकाल का भारतमाला प्रोजेक्ट इसके जीता जागता उदाहरण है। सालगांव बांध का तो टेंडर होकर वर्क ऑर्डर निकलने के बाद भी काम शुरू नहीं हो पाया। भारतमाला के कई सर्वे हो गए कुछ नहीं हुआ।

– दो सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव पार करना बाकी

माउंट आबू-गुलाबगंज मार्ग के निर्माण और चौड़ीकरण का प्रोजेक्ट सिरोही पीडब्ल्यूडी विभाग से बनाकर भेजा गया था। सामान्य निर्माण करने पर इसकी लागत करीब 50 करोड़ के आसपास आती। लेकिन, इसका एस्टीमेट करीब 205 करोड़ रुपए का आया है। ये क्रिफ ने पास कर दिया है। वर्ष 2019 में सिरोही विधायक संयम लोढ़ा ने भी इसका प्रस्ताव भिजवाने का लिखा था। उस दौरान पीडब्ल्यूडी ने जो फेक्ट रिपोर्ट दी थी उसमें लिखा था कि इस प्रोजेक्ट को वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने ड्रॉप किया हुआ है। वहां से स्वीकृति करवानी होगी। ये ही हर्डल अभी भी है।

इस प्रोजेक्ट का काफी बड़ा हिस्सा माउंट आबू वन्यजीव अभ्यारण्य में आता है। ऐसे में स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड और यहां से स्वीकृति मिलने पर इसे नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड में पास करवाना होगा। एक के अध्यक्ष प्रधामंत्री दूसरे के मुख्यमंत्री हैं। इनकी सब कमेटी की साल में दो बैठकें होती हैं। राज्य में इस सब कमेटी के अध्यक्ष चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन हैं।

नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड द्वारा प्रोजेक्ट की एनओसी जारी हो जाएगी तब जीरो से फिर से दूसरा चरण शुरू होगा। ये होगा डायवर्सन का। जितनी जमीन वन विभाग की सड़क में उपयोग में आएगी उसके लिए पीडब्ल्यूडी को डाइवर्जन मांगना होगा। इसे सामान्य भाषा में जमाबंदी समझिए। इसकी अनुमति के लिए फिर से माउंट आबू वन विभाग, फिर राजस्थान वन मंत्रालय फिर केंदीय वन मंत्रालय तक फाइल दौड़ानी पड़ेगी। इसमें अनादरा माउंट आबू विद्युत लाइन को 13 साल लगा गए।उसके बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की एनओसी मिलेगी तब वित्तीय स्वरकृति मिलने पर प्रोजेक्ट के टेंडर होंगे।

वाइल्डलाइफ बोर्ड की स्वीकृति मिलने के बाद भी सेंच्युरी में नया निर्माण करवाने के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से डाइवर्जन लेना कितना मुश्किल है ये माउंट आबू-अनादरा के बीच डाली जाने वाली 33 केवी विद्युत लाइन के प्रोजेक्ट से ही पता लग सकता है। इस प्रोजेक्ट को नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड की सब कमेटी ने 10 मई 2011 की मीटिंग के प्रस्ताव संख्या 3 से स्वीकृत कर दिया था। 13 साल बाद दिसंबर 2024 को इसके लिए 4.87 हेक्टेयर भूमि का डायवर्सन की अनुमति मिली है जिसकी 90 लाख की डिमांड भरने की जानकारी सांसद लुंबाराम चौधरी मंगलवार को दे रहे थे। इस 33 केवी लाइन के बिना माउंट आबू में जीएसएस स्थापित नहीं हो पा रहा था। भारजा की आर्मी फायरिंग रेंज की जमीन के रिन्यूअल के लिए 2019 को शुरू किया पत्राचार के बाद 1365 हेक्टेयर भूमि के डायवर्जन का रिन्यूअल 2023 में हो पाया।

राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ बोर्ड द्वारा 2011 में माउंट आबू अनादरा 33 केवी लाइन डाला के लिए पास किया गया प्रस्ताव जिसका डाइवर्जन 13 साल बाद अब हुआ है।

– क्या हैं पेंचीदगियां?

सेंच्युरी में नई सड़क निर्माण की पेचीदगियां कितनी जबरदस्त हैं ये इस बात से जान सकते हैं कि भारत चीन बॉर्डर पर सड़क निर्माण के लिए रक्षा आवश्यकता होने के बावजूद गुलमर्ग सेंच्युरी, काराकोरम वाइल्डलाइफ सेंच्युरी समेत चार सेंच्युरी से पास होने वाली पांच सड़कों के निर्माण की अनुमति मिलने में समय लग गया।

केंद्र सरकार की पब्लिक रिलेशन संस्थान पीआईबी ने 9 फरवरी 2022 को केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के राज्यसभा में दिए बयान के आधार पर एक प्रेस नोट जारी किया है। वही मंत्री जिन्होंने माउंट आबू – गुलाबगंज मार्ग के लिए प्रशासनिक स्वीकृति जारी की है। इस प्रेस नोट के अनुसार नितिन गडकरी ने राज्यसभा में कहा था कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने देश की सभी निर्माण एजेंसियों को ये निर्देश दिया है कि सड़क निर्माण करते समय सेंच्युरी और प्रोटेक्टेड एरिया को अवॉइड करें।

यदि सड़क बनना इतना जरूरी ही है तो सेंच्युरी को बायपास करते हुए निकालें। इस प्रेस नोट के अनुसार गडकरी ने सड़कों के निर्माण के लिए वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972, फॉरेस्ट कंसर्वेशन एक्ट 1980 और एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के तहत सभी अनापत्तियां लानी जरूरी होगी।

दरअसल सेंच्युरी क्षेत्र और इसके आसपास रहने वाले लोगों के जीवन में आफत की शुरुआत हुई 4 अक्टूबर 2002 के केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और मुख्य अभियंताओं को जारी किए पत्र से। जब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने वाइल्डलाइफ बोर्ड के 2002- 2016 का वाइल्डलाइफ एक्शन प्लान जारी करते हुए सेंच्युरी में सड़कें बनाने को अवॉइड करने या बायपास करने के निर्देश जारी किया। माउण्ट आबू में माउण्ट आबू-गुलाबगंज मार्ग का बायपास आबूरोड-माउण्ट आबू मार्ग पहले से ही है। वो भी फॉरेस्ट से होकर निकलता है। इसलिए माउंट आबू टोल नाके पर एकत्रित की जाने वाली राशि का एक शेयर होल्डर माउंट आबू वन विभाग भी है। माउंट आबू नगर पालिका द्वारा इसी राशि को नहीं देने पर फॉरेस्ट ने सनसेट प्वाइंट पर भी टोल नाका लगा दिया है।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 22 दिसंबर 2014 को भारत के सभी फॉरेस्ट सेक्रेट्री को पत्र जारी किया। इसमें 22 अगस्त 2014 को नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड की स्टैंडिंग कमिटी के में जारी की गई गाइडलाइन के बारे में निर्देश जारी किए। इसके अनुसार सेंच्युरी और प्रोटेक्टेड क्षेत्र में नई सड़कों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यदि सेंचुरी में सड़कों की चौड़ाई बढ़ाए बिना इसका सिर्फ डामरीकरण करना हो तो किसी तरह की एनओसी की जरूरत नहीं होगी लेकिन अगर पुरानी सड़कों को चौड़ा करना होगा तो इसके लिए भी नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड की स्टैंडिंग कमिटी से अनुमति लेनी होगी।

ये अनुमति भी तब मिलेगी जब उस जगह को जोड़ने के लिए कोई और व्यवस्था नहीं हो। पूर्व में स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड ने माउंट आबू जाने के लिए इसे पहले से ही अन्य मार्ग होने के कारण इस प्रोजेक्ट को अनुमति नहीं दी थी, हाल में माउंट आबू का रिवाइज्ड मास्टर प्लान के जारी करने से पहले एनजीटी द्वारा बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी ने भी इस मार्ग को अनुमति को लेकर भी बहस हुई थी। आबूरोड तलहटी से गुरुशिखर तो एग्जिस्टिंग रोड है, लेकिन इसे चौड़ा करने के लिए भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत तमाम सर्वे के बाद भी अब तक अनुमति नहीं मिली है। सडक का वर्कऑर्डर होने के लिए अब सांसद को एनओसी के बाद डाइवर्जन तक सभी हर्डल पार करवाने होंगे।

– 22 साल में हुई सिर्फ 7 बैठकें

नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड की फूल बॉडी मीटिंग हाल में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में अप्रैल में हुई थी। ये सातवीं बैठक थी। इससे पहले फुल बॉडी मीटिंग 2012 में हुई थी। इस बीच सब कमेटी की मीटिंग होती रहती हैं। जिसमें सेंच्युरी क्षेत्र में नॉन फॉरेस्ट प्रोजेक्ट के प्रस्ताव लिए जाते हैं। बाजपेई सरकार ने 2003 में केंद्रीय वन अधिनियम 1972 में संशोधन करके केंद्र नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड और राज्यों में राज्य वाइल्डलाइफ बोर्ड का गठन किया था। इसमें वन अधिकारियों के अलावा वनों के जानकार सदस्य होते है। इसकी पहली बैठक 2003 में हुई थी और सातवीं बैठक 2025 में। ऐसे में इसके कम की रफ्तार का अंदाजा लगाया जा सकता है।

– इतना क्षेत्र सघन वन में

माउंट आबू – गुलाबगंज मार्ग करीब 23 किलोमीटर लंबा है। इसमें से 14 किलोमीटर क्षेत्र माउंट आबू वाइल्ड लाइफ सेंच्युरी के सघन वनों से गुजरता है। इनमें 3 किलोमीटर का एलिवेटेड मार्ग और करीब 38 अंडरपास बनाने का प्रावधान किया है। जिसके नीचे से वन्यजीव निकल सकें। इसी 14 किलोमीटर मार्ग के लिए वन विभाग की एनओसी की जरूरत पड़ेगी। जो अकेले स्थानीय डीएफओ या राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इसके लिए वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत बने नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की सहमति लगेगी।

इनका कहना है…

माउंट आबू- गुलाबगंज मार्ग का प्रोजेक्ट हमने यहां से भेजा था। राज्य सरकार की स्वीकृति के बाद केंद्र सरकार ने इसकी प्रशासनिक स्वीकृति प्रदान कर दी है। अब राज्य और नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड की अनुमति लेनी होगी। इसके बाद वित्तीय स्वीकृति मिलने पर सरकार टेंडर करेगी।

आरसी बराडा

एसई, सार्वजनिक निर्माण विभाग, सिरोही।