नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ़ डिजिटल साइंसेज, इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) सुधांशु धूलिया की ओर से पेश की गयी रिपोर्ट पर कार्रवाई में देरी करने के लिए शुक्रवार को केरल के राज्यपाल को कड़ी फटकार लगाई।
न्यायाधीश जेबी पारदीवाला और न्यायाधीश केवी विश्वनाथन की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं और उनसे उम्मीद की जाती है कि वह समिति की सिफारिशों पर बिना किसी और देरी के फैसला लेंगे। राज्यपाल मामले को अनिश्चित काल तक लंबित नहीं रख सकते। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी न्यायाधीश धूलिया की रिपोर्ट की स्थिति की समीक्षा के दौरान की।
गौरतलब है कि न्यायाधीश धूलिया को उप कुलपतियों की नियुक्तियों की कानूनी मान्यता और औचित्य की जांच करने का काम सौंपा गया था। पीठ ने कहा कि मामले का समय पर समाधान होना चाहिए, खासकर इसलिए क्योंकि लंबे समय तक अनिश्चितता विश्वविद्यालय के कामकाज पर असर डालती है।
सितंबर में अटॉर्नी जनरल ने न्यायालय को केरल के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर की एक अर्जी के बारे में जानकारी दी थी, जिसमें दोनों विश्वविद्यालय में नियमित कुलपति नियुक्त करने के लिए बनी तलाश सह चयन समिति से मुख्यमंत्री को हटाने की मांग की गई थी। इस दौरान उन्होंने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के मामले में एक बाद के आदेश की ओर इशारा किया था, जिसमें राज्यपाल के अधिकार को नियुक्त करने वाले अधिकारी के तौर पर बहाल किया गया था और कहा कि केरल में स्थिति स्पष्ट नहीं है कि कुलपतियों को चुनने की प्रक्रिया में आखिरी फैसला किसका होगा। राज्यपाल ने नियुक्ति प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले शीर्ष अदालत के 18 अगस्त के आदेश में बदलाव की भी मांग की थी।
याचिका में उन्होंने कुलपतियों का चयन करने वाली समिति से मुख्यमंत्री को बाहर रखने, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नॉमिनी को शामिल करने और शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के अल्फाबेटिकल पैनल में से चुनने के लिए कुलाधिपति की मर्ज़ी को बनाए रखने की मांग की थी। उन्होंने तर्क दिया था कि पश्चिम बंगाल राज्य बनाम सनत कुमार घोष पर उच्चतम न्यायालय का पहले का भरोसा गलत था क्योंकि केरल के कानून, पश्चिम बंगाल के कानूनों के उलट कुलपति की नियुक्ति में राज्य सरकार या मुख्यमंत्री को कोई भूमिका नहीं देते हैं। इस दौरान राज्यपाल ने प्रो. डॉ. श्रीजीत बनाम डॉ. राजश्री (2023) के मामले का भी उल्लेख किया था।
इसके बाद शीर्ष अदालत ने 18 अगस्त को, राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव को खत्म करने के लिए न्यायाधीश धूलिया को तलाश एवं चयन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया था। न्यायालय ने कहा था कि प्रसासनिक और राजनीतिक मतभेदों के कारण विद्यार्थियों को परेशानी नहीं होनी चाहिए। समिति में पाँच सदस्य थे। इस में कुलाधिपति और राज्य सरकार राज्य दोनों से दो-दो नॉमिनी और एक अध्यक्ष शामिल थे।
न्यायाधीश धूलिया को दोनों विश्वविद्यालय के लिए एक संयुक्त समिति या अलग-अलग समिति बनाने का अधिकार दिया गया था। इससे पहले, 13 अगस्त को न्यायालय ने कहा था कि अगर राज्य सरकार और कुलाधिपति के बीच असहमति बनी रही तो वह खुद तलाश समिति गठित करेगा। केरल के राज्यपाल की याचिका में 14 जुलाई 2025 के केरल उच्च न्यायालय के फैसले को भी चुनौती दी गयी थी, जिसमें अस्थायी कुलपति नियुक्त किये जाने को सही ठहराने के लिए राज्य सरकार के अनुच्छेद 13(7) पर भरोसे को सही ठहराया गया था। राज्यपाल के अनुसार, ऐसे सेवा विस्तार यूजीसी के नियमों का उल्लंघन करते हैं। यूजीसी अस्थायी कुलपति की नियुक्ति की अवधारणा को मान्यता नहीं देता है।
शीर्ष अदालत ने 30 जुलाई को राज्यपाल को छह महीने की कानूनी सीमा के अंदर अस्थायी कुलपति नियुक्त करने की इजाज़त दी थी। साथ ही राज्यपाल और राज्य सरकार को इस मुद्दे पर राजनीति करने से बचने और स्थायी नियुक्त को अतिम रूप देने तक विद्यार्थियों के हितों को प्राथमिकता देने के लिए कहा था।



