मई दिवस हमारा नहीं : भारतीय मजदूर संघ

जयपुर। एक मई को भारत सहित कई देशों में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रुप में मनाया जाता है और इसकी घोषणा 1886 में द्वितीय इंटरनेशनल द्वारा की गई थी जो समाजवादियों और कम्युनिस्टों का एक वैश्विक संगठन था लेकिन आज कई देश उनके देश में मजदूर क्षेत्र में हुई महत्वपूर्ण घटनाओं, कार्यों आदि को ध्यान में रखते हुए उस दिवस को मजदूर दिवस के रूप में मनाते हैं।

भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के क्षेत्र संगठन मंत्री (पश्चिम एवं उत्तर पश्चिम क्षेत्र) सीवी राजेश ने मजदूर दिवस पर कहा कि यह दिवस हमारा नहीं हैं और भारतीय मजदूर क्षेत्र का नेतृत्व, करने वाली महान विभूतियां जिनका व्यक्तित्त्व हिमालय पर्वत के समान है, जिसमें महात्मा अय्यंकाली एवं नारायण गुरुदेव, नारायण मेघाजी लोखंडे, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर और बाल गंगाधर जैसी राष्ट्रवादी महान विभूतियों में से किसी ने भी कभी भी मई दिवस को मजदूर दिवस के रूप में स्वीकार नहीं किया।

उन्होंने कहा कि ट्रेड यूनियने औद्योगिक क्रांति का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। आधुनिक ट्रेड यूनियन आंदोलन की शुरुआत इंग्लैंड में हुई जहां औद्योगिक क्रांति शुरू हुई लेकिन भारत में मजदूरों के अधिकारों के संरक्षण के लिए संघर्षों के साथ-साथ पुनर्जागरण, सामाजिक सुधार, सेवा, सामाजिक न्याय और कार्यस्थल पर एकजुटता भी थी और इसके साथ ही स्वतंत्रता संग्राम भी जोर पकड़ रहा था। भारत में राष्ट्रवादियों द्वारा किये गए ऐसे कई श्रमिक संघर्ष हैं जिन्हें जेएनयू के कम्युनिस्ट इतिहासकारों और कम्युनिस्ट शासन द्वारा इतिहास के पन्नों से छिपा दिया गया है और मिटा दिया गया है।

भारत में प्रारंभिक श्रमिक आंदोलनों का नेतृत्व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किया था। पूंजीवादी व्यवस्था के प्रति उनके दार्शनिक विरोध से अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि श्रमिकों की दयनीय जीवन स्थितियां उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित करती थीं।

भारत में श्रमिक संगठनों में एआईटीयूसी का गठन 31 अक्टूबर 1920 को हुआ था। बाद में कम्युनिस्ट पार्टी ने यूनियन का अपहरण कर लिया। इंटक का गठन तीन मई 1947 को सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों एवं प्रेरणा से कांग्रेस के नेता गुलजारी लाल नंदा ने की।

24 दिसंबर 1948 की हिन्द मजदूर पंचायत की स्थापना हुई जो बाद में हिन्द मजदूर सभा बनी। 30 अप्रैल 1949 को यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना चरमपंथी साम्यवादी नेता मरणालकान्त ने की। 1964 में कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन के बाद कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सिस्ट) के नेतृत्व में सीआईटीयू का गठन किया गया। अन्य राजनीतिक दलों जैसे एटक, यूटीयूसी, एसटीयू, पीटीयूसी आदि के श्रमिक संगठनों के अलावा आज भारत में कुछ स्वतंत्र ट्रेड यूनियनें भी कार्यरत हैं।

बीएमएस जो कम्युनिस्ट मजदूर वर्ग की क्रांति के बजाय श्रम ही आराधना की घोषणा करके अस्तित्व में आया और आज दुनिया का सबसे बड़ा संगठित श्रमिक संगठन है। 23 जुलाई 1955 को भोपाल में संघ प्रचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी के नेतृत्व में शुरू हुआ भारतीय मजदूर संघ सात हजार से अधिक यूनियनों और 50 से अधिक महासंघों के साथ भारत के हर जिले में काम करता है। बीएमएस ने पिछले वर्ष आयोजित लेबर-20 की अध्यक्षता भी संभाली थी।

राजेश ने कहा कि विश्वकर्मा दिवस जो मई दिवस से अधिक मानवता का दर्शन है, 17 सितम्बर को विश्वकर्मा दिवस और राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में भारत के पांच लाख 60 हजार गांवों में लगभग दो करोड़ विश्वकर्मा और राष्ट्रीय श्रमिक जन द्वारा मनाया जाता है। बीएमएस इस दिन को राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाता है।

बड़ी मशीनों की मदद के बिना, भारत में आम लोग मिट्टी, लकड़ी, कपास और रेशम से विश्व स्तरीय उत्पाद बनाते हैं तथा बढ़ईगीरी, मूर्तिकला, धातुकर्म और अन्य शिल्पों में विश्व स्तरीय कौशल को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करते हैं। भारत के ग्रामीण श्रमिक विश्वकर्मा को अपना गुरु मानते हुए उनकी पूजा करते थे और मानते थे कि वे उनके वंशज और शिष्य हैं।

आधुनिक मशीनों और औद्योगिक क्रांतियों के पीछे सामान्य लोगों की मान्यताओं और बुद्धिमत्ता से विकसित एक व्यावहारिक दर्शन छिपा है। भारतीय मजदूर संघ ने ऐसे लाखों ग्रामीण श्रमिकों तथा उनकी आस्था के सम्मान में, जिसने उन्हें सदियों से समाज सेवा के लिए प्रेरित किया है, विश्वकर्मा जयंती को राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया है। समय -समय पर हुई घटनाओं ने सिद्ध कर दिया है कि कम्युनिज्म अत्यंत खतरनाक है एवं उनके द्वारा प्रस्तावित मई दिवस एक खतरनाक और विनाशकारी युग की याद दिलाता है।

उन्होंने कहा कि जिस कम्युनिस्ट पार्टी ने मजदूरों समेत आधी भारतीय आबादी की हत्या करके दुनिया भर में लाल झंडा फहराया, उसने सदैव ही मजदूर वर्ग को झूठ बोलकर धोखा दिया था। वास्तविकता यह है कि केरल में उच्च जाति के कम्युनिस्ट नेताओं ने पुन्नपरा, वायलार और ओंचियम के गरीब मजदूरों का खून बहाकर सड़कों को लाल कर दिया।

मई दिवस की प्रासंगिकता को समझने के लिए, जिसका निर्णय समाजवादियों और कम्युनिस्टों के वैश्विक समुदाय द्वारा किया गया था, हमें केवल कॉमरेड लेनिन और ट्रॉट्स्की के बीच हुई बातचीत को याद करने की जरूरत है। एक समय ऐसा था कि दुनिया में सबसे अधिक दिखाई देने वाला श्रमिक संगठन भारत के मुंबई का लाल झंडा वाला यूनियन था लेकिन इतिहास साक्षी है कि सदैव सत्य, समाज एवं राष्ट्र के जीवन मूल्यों की ही विजय होती है। आज भारतीय मजदूर आंदोलन के झंडे को एक आरएसएस प्रचारक द्वारा लाल झंडे से भगवा झंडे में बदल दिया गया है।