सेना पर अपमानजनक बयान देने की आज़ादी नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

लखनऊ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने करीब तीन साल पहले सेना से जुड़े एक बयान पर दाखिल कथित मानहानि के मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद राहुल गांधी के खिलाए अहम टिप्पणी की है।

न्यायालय ने कहा कि संविधान के तहत अभिव्यक्ति की आज़ादी में भारतीय सेना या किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ अपमानजनक बयान देने की आज़ादी शामिल नहीं है। कोर्ट ने कहा कि राहुल गांधी द्वारा दिया गया कथित बयान निःसंदेह स्वाद में अच्छा नहीं है। सार्वजनिक जीवन वाले व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह जनता में भाषण देते समय संयम का स्तर बनाए रखे।

इस टिप्पणी के साथ जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने राहुल गांधी की याचिका खारिज कर दी। याचिका में राहुल ने लखनऊ की एक एमपी-एमएलए कोर्ट द्वारा मानहानि मामले में फरवरी 2025 में जारी समन आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निश्चित रूप से दी गई है, लेकिन यह तर्कसंगत प्रतिबंधों के अधीन है। इसमें किसी व्यक्ति या भारतीय सेना के ख़िलाफ़ अपमानजनक बयान देने की स्वतंत्रता शामिल नहीं है।

यह मानहानि की शिकायत बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) के पूर्व निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव ने दायर की थी। यह मामला फ़िलहाल लखनऊ की एक अदालत में लंबित है। शिकायत में दावा किया गया कि राहुल गांधी ने 16 दिसंबर 2022 को अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भारतीय सेना के ख़िलाफ़ अपमानजनक टिप्पणी की थी।

यह टिप्पणी 9 दिसंबर 2022 को भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुई झड़प से जुड़ी थी। शिकायत के अनुसार राहुल ने बार-बार अपमानजनक तरीक़े से कहा था कि चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों को पीट रही है और भारतीय प्रेस इस संबंध में कोई सवाल नहीं पूछेगा।

लखनऊ की विचारण अदालत ने पहली नजर में माना था कि राहुल के बयान से भारतीय सेना और उससे जुड़े लोगों और उनके परिवारों का मनोबल कम हुआ है। इस मामले में अदालत ने राहुल को पेश होने के लिए तलबी आदेश जारी किया था। इस आदेश को चुनौती देकर राहुल गांधी ने हाईकोर्ट की शरण ली थी।