आप सांसद राघव चढ्ढा निलंबित, संजय सिंह का निलंबन बढ़ा

नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी के सदस्य राघव चढ्ढा को राज्यसभा की कार्यवाही के नियमों के उल्लंघन के आरोपों में विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट मिलने तक के लिए आज सदन से निलंबित कर दिया गया जबकि आप के निलंबित सदस्य संजय सिंह के निलंबन को भी विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट मिलने तक बढ़ा दिया गया।

सदन के नेता पीयूष गोयल ने भोजनावकाश के बाद कार्यवाही शुरू होने और मणिपुर मामले पर विपक्षी सदस्यों के वाकआउट करने के बाद चढ्ढा को निलंबित करने और सिंह के निलंबन को बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया। उन्होंने कहा कि चढ्ढा ने दिल्ली सेवा विधेयक को प्रवर समिति को भेजने के लिए जो प्रस्ताव दिया था उसमें भारतीय जनता पार्टी, अन्नाद्रमुक और बीजू जनता दल के सदस्यों की अनुमति के बगैर कथित तौर पर उनके फर्जी हस्ताक्षर किए गए थे जो सदन की कार्यवाही के नियमों के साथ ही सदस्यों के विशेषाधिकार के हनन का मामला है।

उन्होंने कहा कि चढ्ढा ने बीजू जनता दल के सस्मित पात्रा, अन्नाद्रमुक के सदस्य एवं पूर्व लोकसभा के उपाध्यक्ष एम थंबीदुरई के साथ ही भाजपा के नरहरि अमीन, सुधांशु त्रिवेदी और नगालैंड से भाजपा सदस्य एवं पीठासीन उप सभापति फांगनोन कोन्याक के फर्जी हस्ताक्षर कर विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का प्रस्ताव पेश किया था।

उल्लेखनीय है कि इन पांचों सदस्यों ने दावा किया था कि दिल्ली सेवा विधेयक को उनकी सहमति के बगैर ही प्रवर समिति को भेजने के प्रस्ताव पर उनके नाम का उल्लेख कर दिया गया था। यह प्रस्ताव चढ्ढा ने सदन में पेश किया था। गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी जांच की मांग की थी। सिंह को गत 24 जुलाई को सदन में अमर्यादित व्यवहार करने के आरोप में निलंबित किया गया था।

गोयल ने कहा कि चढ्ढा को फर्जी हस्ताक्षर के मामले में सदस्यों के विशेषाधिकार हनन के अारोपों को लेकर विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक निलंबित कर दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सिंह को अमर्यादित व्यवहार के लिए गत 24 जुलाई को निलंबित किया गया था लेकिन उसके बाद से ही वह विभिन्न माध्यमों से लगातार सदन के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। इसके साथ ही चढ्ढा के मामले में भी उनके पक्ष में प्रति दिन बयान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि सिंह का यह कार्य सदन के नियमों के साथ ही सदस्यों के विशेषाधिकार के हनन का भी मामला है। इसलिए उनके निलंबन को भी विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक बढ़ा दिया जाना चाहिए।

इसके बाद सभापति ने इन दोनों सदस्यों को समिति की रिपोर्ट आने तक निलंबित किए जाने का मामला सदन में रखा जिसे विपक्षी सदस्यों की अनुपस्थिति में ध्वनिमत से स्वीकार कर लिया गया।