Home Goa 100 करोड हिन्दुआें का स्वयं का एक भी राष्ट्र क्यों नहीं है?

100 करोड हिन्दुआें का स्वयं का एक भी राष्ट्र क्यों नहीं है?

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100 करोड हिन्दुआें का स्वयं का एक भी राष्ट्र क्यों नहीं है?
6th akhil bharatiya hindu adhiveshan starting from 14th june at goa
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हिन्दू राष्ट्र! वीर सावरकरजी को प्रतीत होने वाला यह एक दृढ सत्य था, परंतु स्वतंत्रता के पश्‍चात यह शब्द विस्मृति में चला गया! स्वतंत्रताप्राप्ति के पश्‍चात जो भारतवर्ष एक स्वयंभू हिन्दू राष्ट्र था, वह ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्र बन गया। एक आंकडे के अनुसार संसार में ईसाइयों के 157, मुसलमानों के 52, बौद्धों के 12 तथा ज्यू अर्थात यहूदियों का 1 राष्ट्र है, परंतु 100 करोड की जनसंख्या वाले हिन्दुआें का स्वयं का एक भी राष्ट्र नहीं है।

स्वतंत्रता से पूर्व प्रस्तुत की गई हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा स्वतंत्रता के पश्‍चात कांग्रेस की विधर्मी राज्यप्रणाली में खो गई। क्योंकि कांग्रेस ने एकत्रित मतों की राजनीति करने के लिए अल्पसंख्यकों की चापलूसी करना और हिन्दू धर्म और संस्कृति का समूल उच्चाटन करने का एकसूत्री कार्यक्रम हाथ में लिया। इस कारण हिन्दू धर्म एवं धर्मियों की स्थिति दिन-प्रतिदिन विकट होती जा रही है, इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता।

ऐसे प्रारंभ हुआ हिन्दू अधिवेशन

इस प्रतिकूल परिस्थिति का मूल से अभ्यास कर सनातन संस्था ने दो-अढाई दशक पूर्व ‘ईश्‍वरीय राज्य की स्थापना’ (अर्थात रामराज्य की स्थापना अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना) यह अवधारणा प्रस्तुत की। देशभर के हिन्दुआें में धर्म और राष्ट्र के प्रति प्रेम उत्पन्न करने के लिए सनातन ने हिन्दू जनजागृति समिति की सहायता से उत्साहपूर्वक कार्य प्रारंभ किया। देखते-देखते अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों में भी ‘हिन्दू राष्ट्र’ का आकर्षण निर्माण हो गया।

इसके लिए आपस में मिलकर विचारमंथन करना आवश्यक हो गया तथा उसी प्रेरणा से वर्ष 2012 में हिन्दू जनजागृति समिति नेे ‘राष्ट्रीय हिन्दू अधिवेशन’ की रूपरेखा प्रस्तुत की तथा उसे मूर्त रूप में साकार भी किया। एक ध्येय से प्रेरित हुए विविध हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों का ‘हिन्दू अधिवेशन’ प्रतिवर्ष गोवा में होने लगा। इस अधिवेशन का यह छंटा वर्ष है। भारत के 25 राज्य तथा नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका इत्यादि राष्ट्रों में सक्रिय छोटे-बडे 250 हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के प्रतिनिधि इस वर्ष जून गोवा में आयोजित किए जानेवाले अधिवेशन में उपस्थित रहने वाले हैं।

ध्यान देने योग्य महत्त्वपूर्ण सूत्र यह है कि, इन अधिवेशनों का परिणाम पूरे देश में हो रहा है। हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के अथक प्रयासों तथा अधिवेशनों में चर्चा की जाने वाली समान कार्ययोजना को कार्यान्वित करने के फलस्वरूप हो रहा देशव्यापी हिन्दू संगठन देश में हिन्दुत्व की स्वाभाविक विचारधारा को प्रबल कर रहा है। आजतक जात-पात, समुदाय अथवा विविध वैचारिक गुटों में अटके हुए संकुचित हिन्दुआें का इस प्रकार एक होना अपने आप में ही एक अदभुत चमत्कार है, यह विशेषरूप से विश्‍व को बताना आवश्यक है।

हिन्दू राष्ट्र स्थापना की आवश्यकता

अब इस अधिवेशन के आयोजन के उद्देश्य का विचार करेंगे। गत 5 साल से लगातार चल रहे अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशनों का उद्देश्य राम-कृष्ण के इस भरतवर्ष में लोककल्याणकारी एवं आदर्श ऐसे हिन्दू राष्ट्र अर्थात रामराज्य की स्थापना करना है। संसार के सबसे बडे लोकतंत्र में हिन्दू राष्ट्र क्यों चाहिए, यह प्रश्‍न पडना स्वाभाविक है। हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के अनेक कारण हैं। उनमें से कुछ कारण समझ लेते हैं।

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना आवश्यक है, क्योंकि भारत में गत 69 वर्षों के तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी शासनतंत्र में किसी भी पक्ष ने हिन्दुआें की समस्याएं सुलझाना तो दूर, परंतु उनकी ओर देखा भी नहीं है। इस देश में हिन्दू बहुसंख्यक होते हुए भी उन्हें निरंतर धर्मांधों के आक्रमणों का सामना करना पडता है। वर्तमान कानून और नीतियों का पालन करने हेतु शासनकर्ताआें मेें इच्छाशक्ति का अभाव है। इसलिए इस विधर्मी शासन में जिहादी, भ्रष्टाचारी, बलात्कारी आदि सुख से फल-फूल रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में क्या कभी हिन्दू हित साध्य हो सकेगा?

अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठान, परधर्मियों द्वारा संचालित दूरचित्रप्रणाल (न्यूज चैनल), कॉन्वेंट विद्यालय, विधर्मी शिक्षा प्रणाली आदि के कारण हिन्दू धर्म में जन्मा हुआ हिन्दू मन और आचरण से विधर्मी बन गया है।

वर्तमान में सीरिया के इसिस (इस्लामिक स्टेट) नामक अत्यंत क्रूर इस्लामी आतंकवादी संगठन ने जागतिक स्तर पर भय का वातावरण उत्पन्न किया है। इस संगठन ने पाक और बांग्लादेश में पैर जमा लिए हैं। इस संगठन ने चेतावनी भी दी थी कि भारत में पहले हिन्दुआें पर आक्रमण किया जाएगा। निष्पाप लोगों के गले काटने वाले और महिलाआें पर सामूहिक बलात्कार करने वाले इसिस का प्रतिकार करने हेतु जनहितदक्ष एवं संवेदनशील हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना आवश्यक है।

हिन्दु बहुल भारत में धर्मांधों ने अभी तक लगभग 150 से अधिक हिन्दुत्वनिष्ठ नेताआें की हत्या की है तथा अनेकों पर प्राणघातक आक्रमण कर उन्हें घायल किया है। हिन्दुआें के नेता ही जहां मारे जाते हैं, वहां सामान्य हिन्दुआें की क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना कर सकते हैं। हत्याआें का यह सत्र आज भी चल रहा है। यह स्थिति परिवर्तित करने के लिए हिन्दू राष्ट्र आवश्यक है।

कश्मीर में पाकसमर्थक हुर्रियत वाले सुरक्षित जीवन जी रहे हैं। भारत स्वतंत्र हो गया है, परंतु कश्मीर अभी भी 1 सहस्र वर्ष से इस्लाम द्वारा लादी गई गुलामी में जीवन जी रहा है। वहां क्रिकेट में पाकिस्तान की विजय के पश्‍चात पटाखे जलाए जाते हैं। वर्ष 1990 में कश्मीर में घोषणाएं दी गई थीं – ‘कश्मीर क्या होगा ? निजाम-ए-मुस्तफा होगा।’ अर्थात इस्लामबहुल प्रदेश! अर्थात आज की भाषा में ‘इस्लामिक स्टेट!’ वास्तव में उसी समय वहां इस्लामिक स्टेट प्रारंभ हो गया था। कश्मीरियों की सुरक्षा हेतु दिन-रात एक करनेवाले भारतीय सेना के सैनिकों पर जिहादी पथराव कर रहे हैं।

भारत में स्थान-स्थान पर ‘मिनी पाकिस्तान’ बन गए। इसिस भी जड पकड रहा है। भारत के अन्य राज्यों की स्थिती ‘भारत तेरे टुकडे होंगे!’, ये देशविरोधी घोषणाएं अब अनेक स्थानों पर सुनाई देने लगी हैं। इस भयानक स्थिति के चलते समय रहते कोई हल नहीं निकाला गया, तो आनेवाले वर्षों में कश्मीर की भांति उर्वरित भारत की दुर्दशा हो जाएगी। वहीं दूसरी ओर पाक, बांग्लादेश, चीन सहित अब श्रीलंका भी हमें मुंह चिढा रहा है। हिन्दुआें की स्थिति विदारक होते हुए भी हिन्दुआें को ही आतंकवादी कहा जा रहा है।

शासनकर्ताआें द्वारा की जा रही अल्पसंख्यकों की चापलूसी राष्ट्रीय समस्या बन गई है। हिन्दुआें के हित में वक्तव्य करना आज सांप्रदायिकता कहलाता है एवं ‘मुसलमानों का तुष्टीकरण’ देशप्रेम और धर्मनिरपेक्षता की भारतीय मिसाल बन गई है।

स्वतंत्रता के पश्‍चात गत लगभग 70 वर्षों में हिन्दुआें पर प्रत्येक क्षेत्र में हो रहे व्यवहार को देेखते हुए बहुसंख्यक होकर भी हिन्दुआें में असुरक्षितता की भावना दिन-प्रतिदिन, वर्ष प्रति वर्ष बढ ही रही है। इसे लोकतंत्र की पराजय क्यों न कहे? दुर्भाग्यवश भविष्य में हिन्दू अपनी ही मातृभूमि में अल्पसंख्यक न बन बैठे, इसके लिए हिन्दू राष्ट्र अत्यावश्यक है। हिन्दुआें की इस नैसर्गिक, स्वाभाविक और तार्किक मांग को आज का विज्ञान भी तत्त्वत: नहीं नकार सकता!

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का ध्येय साकार करने हेतु अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन की आवश्यकता!

हिन्दू अपना धर्म और राष्ट्र कर्तव्य सटीक निभाएं, इसके लिए अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन आज अत्यावश्यक हो गया है। अब सभी हिन्दू राष्ट्र के लिए संगठित कदम उठाकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का ध्येय पूर्ण करने हेतु कार्यरत हों। भारत को हिन्दू राष्ट्र उद्घोषित करने के लिए हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों और संप्रदायों को एक व्यासपीठ पर लाना ही इस अधिवेशन का प्रमुख उद्देश्य है।

आइए हम हिन्दू राष्ट्र स्थापना के कार्य में सम्मिलित होने की सिंहगर्जना करते हैं!

अपने पूर्वज अतुल्य और अद्भुत पराक्रमी थे। हम उनके वंशज हैं। अपने भीतर सुप्तावस्था में विद्यमान उनके संस्कार और तेज जागृत करने का समय आ गया है। हिन्दुओ, भेड बकरी बनकर जीने के दिन अब निकल गए है। जो जो अपना है, उसे प्राप्त करने के लिए वैध मार्ग से निर्णायक संघर्ष करने का यही समय है। हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए हमारी अगली दिशा क्या होगी, यह निश्‍चित करने के लिए मनन-चिंतन करना अब आवश्यक है।

साधना के बल पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य स्थापित किया था। धर्मसंस्थापना की देवता योगेश्‍वर भगवान श्रीकृष्ण एवं मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीरामचंद्र जी की कृपा से हम भी आज ही से हिन्दू राष्ट्र लाने के लिए वैध मार्ग से प्रारंभ किए गए संघर्ष में सम्मिलित होने की सिंहगर्जना करते हैं। इस द्वारा केवल अयोध्या में ही नहीं, अपितु पूरे भरतवर्ष में रामराज्य की स्थापना करने की हम प्रतिज्ञा लेंगे!

अरविंद पानसरे,
प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति