Home Rajasthan Ajmer भीष्म पंचक प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक दैव दीवाली

भीष्म पंचक प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक दैव दीवाली

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भीष्म पंचक प्रबोधिनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक दैव दीवाली

सबगुरु न्यूज। कार्तिक की शुक्ल एकादशी को देवता सो कर जाग जाते हैं और देवशयन काल समाप्त हो जाता है। यह एकादशी देव ऊठनी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है। इसके साथ ही अब तक देव शयन काल में बंद मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं।

देव ऊठनी एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिन भीष्म पंचक के नाम से जाना जाते है। पद्म पुराण के अनुसार भीष्म पंचक व्रत के पालन से मोक्ष व सुख की प्राप्ति होती है,आरोग्यं व संतान प्रदान करने वाला तथा महा पातको का नाश करनें वाला होता है।

हरि बोधनी एकादशी को भगवान विष्णु शयन त्यागते हैं उसे देवों का जागना कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा उपासना से सुख संपति व लक्ष्मी जी की प्राप्ति होती है।

कार्तिक मास मे एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिन भीष्म पंचक के नाम से जाने जाते हैं। इन पांच दिनों में व्रत ग्रहण करना चाहिए। भीष्म पितामह ने यह व्रत भगवान वासुदेव जी प्राप्त किये थे।

इन पांच दिनों में नदी पोखर व झरने मे स्नान कर चावल जो ओर तिल द्वारा देवता ऋषि व पितरो को तर्पण करे और दान दे। विष्णु जी व लक्ष्मी जी का प्रतिदिन पूजन करे। भीष्म जी को जलदान अर्धय प्रदान करे। घी मिलाकर गूगल जलाएं। उतम नैवेध का भोग लगाएं।
कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मना सर्वत्र दीपदान करे। ऐसी मान्यता पद्म पुराण की है।

नारद पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन सम्पूर्ण शत्रुओं पर विजय पाने के लिए कार्तिकेय जी के दर्शन करे। प्रदोष काल में दीपदान करे। इस दिन दीप दान से कीट पतंग मच्छर वृक्ष जल व स्थल में विचरने वाले दूसरे जीव भी पुनर्जन्म नहीं ग्रहण करते।

सौजन्य : भंवरलाल