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क्यों टूटा शिवसेना भाजपा शिवसेना गठबंधन

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shiv sena
bjp end alliance with shiv sena before maharashtra polls due to seat sharing

मुंबई। भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का 25 वर्ष पुराना गठबंधन सीटों के बंटवारे को लेकर टूट गया और भाजपा ने लोकसभा चुनाव के दौरान महाराष्ट्र में बने महागठबंधन के बाकी तीन दलों शिव संग्राम सेना, राष्ट्रीय समाज पार्टी और स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के साथ अगला विधानसभा चुनाव लड़ने का ऎलान कर दिया।…

महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के नेता एकनाथ खडसे और प्रदेशाध्यक्ष देवेंद्र फडनवीस ने कहा कि भाजपा ने शिवसेना के साथ गठबंधन बनाए रखने की भरसक कोशिश की लेकिन सीटों पर सहमति नहीं बन पाने और समय के अभाव के कारण उसे बड़े दुखी मन से अलग से चुनाव लड़ने का फैसला लेना पड़ा है।

शिव सेना ने हमें एक भी ऎसा प्रस्ताव नहीं भेजा, जो स्वीकार किया जा सकता। उनके पहले और नवीनतम प्रस्ताव में कोई खास फर्क नहीं था। एक में भी मित्र दलों को समायोजित करने का प्रयास तक नहीं किया गया। फडनवीस ने कहा कि हमने इस गठबंधन को बचाने का हर संभव प्रयास किया लेकिन शिवसेना केवल मुख्यमंत्री की कुर्सी और अपनी पार्टी के कोटे के लिए ही ज्यादा चिंतित रही।

शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से इन सभी परिस्थितियों पर चर्चा हुई और उन्हें इस घटनाक्रम से बार बार अवगत कराया गया ताकि इस गठबंधन को बचाया जा सके लेकिन शिवसेना ने न्याय नहीं किया और वह केवल सीटों के आंकडेबाजी में ही फंसी रही। उसने न तो हमें और न ही हमारे मित्र दलों को समायोजित करने की कोई गंभीर कोशिश की।

उन्होंने कहा कि हम सभी का इस समय एक ही लक्ष्य होना चाहिए था कि किस तरह कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सरकार को हटाया जाए लेकिन अब न तो बातचीत का समय रह गया है और न ही इसका कोई परिणाम निकलने वाला है।

देवेन्द्र फडनवीस ने कहा कि पार्टी के दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे ने लोकसभा के चुनाव के पूर्व महायुति बनाई थी जिसमें शिवसेना के अलावा अन्य पक्षों को शामिल किया गया था। उन्होंने कहा कि अन्य छोटे दल हमारे विश्वास पर युति में शामिल हुए थे इसलिए हमारी पार्टी ऎसे दलों को साथ लेकर चलेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा या अन्य पक्ष अंतिम समय तक शिव सेना के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की पूरी कोशिश की लेकिन शिव सेना लचीलारूख अपनाने के लिए तैयार नहीं थी। उन्होंने कहा कि भले ही चुनाव लड़ने के लिए हम अलग हो गए हैं लेकिन मैत्री हमारी कायम है।

भाजपा के महाराष्ट्र प्रभारी राजीव प्रतापरूडी ने बताया कि शिवसेना से अलग होकर चुनाव में जाने का फैसला शुद्धरूप से प्रदेश इकाई का है और इसमे केंद्रीय स्तर पर कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि पूरे विचार विमर्श के दौरान शिवसेना 151 सीटों से नीचे आने को तैयार ही नहीं थी जिसके कारण सहमति बनने में कठिनाई हो रही थी और फिर नामांकन पत्र भरने की आखिरी तारीख सिर पर आ गई थी इसलिए भारी मन से राज्य इकाई ने समय के अभाव के कारण भी अलग से चुनाव में जाने का निर्णय लिया।

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की जनता चाहती है कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से उसे मुक्ति मिले। उन्होंने कहा कि भाजपा और महागठबंधन के बाकी दलों की पूरी कोशिश होगी कि जनता की इच्छा को पूरा किया जाए। उन्होंने भरोसा जताया कि मजबूरन लिए गए इस फैसले का चुनाव प्रचार पर असर नहीं पड़ेगा और भाजपा तथा शिवसेना ऎसी कोई बात नहीं करेंगे जिससे वैमनस्य पैदा हो।

लगभग 22 दिनों से भाजपा शिवसेना के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर रस्साकशी जारी थी। लोकसभा चुनाव में मिली भारी सफलता से उत्साहित भाजपा ने अनेक प्रस्ताव दिए लेकिन ठाकरे 151 सीटों से एक भी कम सीट पर लड़ने के लिए राजी नहीं हुए। भाजपा ने शुरू में खुद 135 और शिवसेना को भी इतनी ही सीटों पर लड़ने तथा महागठबंधन के बाकी चार घटकों के लिए 18 सीटें छोड़ने की पेशकश की थी जिसे ठाकरे ने सिरे से खारिज कर दिया।

भाजपा और शिवसेना का गठबंधन 1989 में अस्तित्व में आया था और राम मंदिर और हिंदुत्व के मुद्दे पर दोनों दलों ने मिलकर लंबी राजनीतिक पारी खेली और अपना कद बढ़ाया। दोनों दल महाराष्ट्र में सरकार बनाने में सफल रहे। फिर केंद्र में वाजपेयी सरकार और फिर अब नरेंद्र मोदी सरकार बनाने के लिये भी दोनों दलों ने कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री की कुर्सी की महत्वाकांक्षा ने इस गठबंधन की बलि ले ली।

 

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