Home Rajasthan Jalore न्यायालय ने एबीवीपी के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष पर लिया प्रसंज्ञान, जांच को माना पक्षपातपूर्ण

न्यायालय ने एबीवीपी के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष पर लिया प्रसंज्ञान, जांच को माना पक्षपातपूर्ण

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न्यायालय ने एबीवीपी के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष पर लिया प्रसंज्ञान, जांच को माना पक्षपातपूर्ण
government collage sirohi from where martyr ramesh completed his graduation
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सबगुरु न्यूज-सिरोही। शिक्षा और शिक्षण संस्थान की शुचिता की बात करने वाले छात्र संगठन के पूर्व अध्यक्ष के राजकीय सिरोही महाविद्यालय के विधि विभाग में हंगामा व तोडफोड की रिपोर्ट पर पुलिस ने कथित राजनीतिक दबाव से एफआर लगा दी तो पथभ्रमित हुए छात्रों को मार्ग दिखाने के लिए आगे आए शिक्षक के अनुरोध पर न्यायालय ने इन छात्रों के खिलाफ प्रसंज्ञान ले लिया।

इन्हें तलब करते हुए इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट शिप्रसाद तम्बोली ने जांच अधिकारी के द्वारा पक्षपात किए जाना प्रथम दृष्टया पाए जाने की टिप्पणी भी की है।
मामला सिरोही राजकीय महाविद्यालय परिसर में संचालित विधि महाविद्यालय का है। यहां के प्राचार्य मधुसूदन राजपुरोहित ने सिरोही कोतवाली में 25 सितम्बर, 2015 को रिपोर्ट दी थी कि विधि महाविद्यालय के एक कक्ष को छात्र संघ कार्यालय के रूप में इस्तेमाल किए जाने को लेकर एबीवीपी से चुने गए पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष नारणाराम चैधरी उनसे लेने के लिए जबरन दबाव बना रहे थे।

२५ सितम्बर को इसके लिए उन्होंने प्राचार्य कक्ष में घुसकर राजकार्य में बाध पहुंचाई, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और प्राचार्य कक्ष का फर्नीचर बाहर फेंक दिया। इस मामले में सिरोही कोतवाली पुलिस ने यह कहते हुए एफआर लगा दी कि प्राचार्य और छात्रसंघ अध्यक्ष के बीच बहसबाजी हुई थी, लेकिन राजकार्य में बाधा औेर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसा कुछ नहीं हुआ।

इस पर विधि महाविद्यालय के तत्कालीन प्राचार्य मधुसूदन राजपुरोहित ने  अपने अधिवक्त भैरूसिंह बालावात के माध्यम से नाराजगी याचिका लगाई जिस पर न्यायालय ने इस मामले में पुलिस अधिकारी की जांच को पक्षपातपूर्ण मानते हुए प्रसंज्ञान ले लिया।
-न्यायालय ने यह लिखा
न्यायालय ने अपने निर्णय में यह लिखा कि परिवादी ने वर्णित किया है कि इस प्रकरण में अनुसंधान अधिकारी ने इस प्रकरण में बनियति पूर्वक व राजनीति से प्रेरित होकर सही तरीके से अनुसंधान नहीं किया। न्यायायल ने टिप्पणी कि कि फोटोग्राफ, परिवादी के बयानों एवं उनके स्टाफ के लोगों के कथनों पर विश्वास नहीं कर व छात्रसंघ अध्यक्ष नारणाराम के साथ आए अन्य छात्रों के नाम रेकार्ड पर नहीं लेने से प्रथम दृष्टया अनुसंधान में पक्षपात करना स्पष्ट होता है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि विधि महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा कमरा खाली नहीं किया जा रहा था तो उसके लिए विधिक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए थी। न्यायालय ने प्राचार्य के अधिवक्ता की दलीलों से सहमत होते हुए एफआर को अस्वीकार करते हुए छा़त्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष जालोर जिले के जसवंत पुरा निवासी नारणाराम के खिलाफ आईपीसी की धारा ४४७, ४२७, ३५३ एवं धारा ३ पीडीपी एक्ट का आरोप प्रथम दृष्टया बनना पाते हुए उसे तलब किया है।