Home Northeast India Assam रणनीतिक कवायद से फिर ताकतवर बन सकती है कांग्रेस

रणनीतिक कवायद से फिर ताकतवर बन सकती है कांग्रेस

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रणनीतिक कवायद से फिर ताकतवर बन सकती है कांग्रेस
Congress can become a powerful by strategic exercise
Congress can become a powerful by strategic exercise
Congress can become a powerful by strategic exercise

असम सहित निकट भविष्य में होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर कांग्रेस रणनीतिक कवायद में जुटी हुई है।

पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को यह अच्छी तरह पता है कि वह केन्द्र की मौजूदा भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों एवं कार्यपद्धति का जनमानस के सामने जितने प्रभावी ढंग से पर्दाफाश करेंगे पार्टी को उतना ही ज्यादा राजनीतिक लाभ होगा।

इसी संभावना को ध्यान में रखकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी विभिन्न राज्यों का दौरा कर रहे हैं। पार्टी के इन प्रयासों का परिणाम तो वैसे इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस नेताओं की यह सक्रियता वोट बैंक में किस हद तक परविर्तित हुई लेकिन इतना अवश्य यह है कि कांग्रेस नेतृत्व के इन प्रयासों से उन्हें विभिन्न मुद्दों पर जनता-जनार्दन का ध्यान आकर्षित करने में सफलता अवश्य ही अर्जित हो रही है।

अभी अरुणाचल मामले में केन्द्र सरकार के अतिवादी रवैये पर जिस तरह से कांग्रेस ने आक्रामकता दिखाई है तथा अपनी पार्टी की सरकार को अपदस्थ किए जाने के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है उससे भी जनमानस को यह लग रहा है कि कहीं न कहीं निर्वाचित सरकारों के स्थायित्व को इस ढंग से प्रभावित किया जाना लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत तो है ही।

साथ ही पार्टी का असम, पंजाब, पश्चिम बंगाल व 2017 में होने वाले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भी स्पष्ट नजरिया है, जो पार्टी के राजनीतिक रूप से फिर ताकतपर बनने को आधार प्रदान कर सकता है।

कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने राजनीतिक कद में बढ़ोतरी सुनिश्चित करने के लिए 2017 के विधानसभा में दो घोषणापत्र जारी करने की रणनीति पर विचार कर रही है। इनमें से एक पार्टी का मुख्य घोषणापत्र होगा जबकि दूसरे में राज्य में विशेष राजनीतिक महत्व रखने वाले दलित समुदाय के मुद्दों का समावेश रहेगा।

यही कारण है कि पार्टी अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले दलित विशेष घोषणापत्र पर काम कर रही है। उत्तर प्रदेश में 10 क्षेत्रीय सम्मेलनों के बाद पार्टी दलित घोषणापत्र को अंतिम रूप देगी। चुनाव घोषणा पत्र का काफी राजनीतिक महत्व होता है तथा राजनीतिक दल अगर इसे गंभीरता पूर्वक लें तो यह उनकी सरकार की भी गाइड लाइन माना जाता है, ऐसे में कांग्रेस द्वारा इस दिशा में की जा रही गंभीर कोशिशें महत्वपूर्ण हैं।

कांग्रेस नेता यह मानते हैं कि इस पहल से पार्टी को दलित वोट बैंक को आकर्षित करने में सफलता हासिल होगी। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटों में से 84 आरक्षित हैं और कांग्रेस के पास अभी राज्य की 28 विधानसभा सीटें हैं।

उत्तर प्रदेश में दलित नेतृत्व को मजबूती प्रदान करने के लिए कांग्रेस जमीनी स्तर से शुरुआत कर रही है। जिसमें वह अपनी जनहितैषी रीतियों, नीतियों के व्यापक प्रचार-प्रसार पर ध्यान देने के साथ ही केन्द्र व राज्य सरकार की वादाखिलाफी व विफलताओं पर भी ध्यान केन्द्रित करेगी।

चूंकि राज्य के राजनीतिक समीकरणों में इस बार बड़े उलटफेर की संभावना व्यक्त की जा रही है तथा दलित वोट बैंक के सहारे मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी के एक बड़ी ताकत बनकर उभरने की संभावना जताई जा रही है, इस बात को ध्यान में रखकर कांग्रेस इस वोटबैंक में सेंध लगाने की जुगत भी लगा रही है।

हैदराबाद के रोहित वेमुला प्रकरण में राहुल गांधी की संवेदनशीलता एवं तत्परता का आशय वैसे तो काफी हद तक मानवीय है लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव भी कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है, जिसका असर उत्तरप्रदेश पर भी होगा।

राहुल गांधी के हैदराबाद दौरे को लेकर केन्द्र की भाजपा सरकार के कुछ मंत्रियों तथा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा जिस तरह राहुल गांधी की अनावश्यक आलोचना की गई तथा विरोध के लिए विरोध की राजनीति को अंजाम दिया गया उससे देशभर में यह संदेश गया है कि भाजपा नेता अपने राजनीतिक विरोधियों को नीचा दिखाने व उनकी आलोचना का कोई भी अवसर नहीं छोड़ते, चाहे वह किसी की मौत का ही मामला क्यों न हो, जो उच्च लोकतांत्रिक मूल्यों के लिहाज से ठीक नहीं है।

कांग्रेस पार्टी बहरहाल उत्तरप्रदेश को लेकर अभी से गंभीर दिखाई दे रही है। यहां यह कहना भी ठीक होगा कि उत्तरप्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने हालांकि अपने कार्यकाल के दौरान जनहितैषी काम तो किए हैं लेकिन राज्य की कानून-व्यवस्था व भ्रष्टाचार के मुद्दे जरूर आगामी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे। साथ ही कांग्रेस सहित अन्य विरोधी राजनीतिक दल विशेष रूप से इन्हीं मुद्दों का अपना चुनावी हथियार भी बना सकते हैं।

सुधांशु द्विवेदी

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