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उड़ गई राख रह गई धरा

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उड़ गई राख रह गई धरा

सबगुरु न्यूज। शरीर को जलाकर लकड़ियां आग से अंगारे और अंगारे से राख बन गई। राख ठंडी होती इससे पहले ही हवा उसे उड़ा कर ले गई। राख के अंश को आनंद आ रहा था ओर मानो वह कह रही थी कि हे प्राणी तू जीते जी इतना क्यों उड़ता है, एक दिन तो तुझे जब हमेशा ही उड जाना है। इतनें मे राख का वह अंश उड कर एक मंदिर में पहुंच गया, जहां भोग बना हुआ तैयार था। वहां आते ही हवा एकदम रूकी ओर वह राख का अंश भोग मे मिल गया।

भोग का थाल इसलिए खुला हुआ था कि बस भगवान के अब भोग लगाना ही था। भोग भगवान को अर्पित हुआ तो भगवान की मूर्ति भी एकदम से चेतन हो गई और अपने अंश को अपने में विलीन देख अति प्रसन्न हो गई। वह भोग समस्त भोजन सामग्री मे मिला दिया गया। ये देख उस राख का अंश अचंभित हो गया ओर देखते देखते सारा प्रसाद बंट गया और प्रसाद का स्वाद वास्तव मे देवों पर चढ़ कर आनंद दायक हो गया।

यह देख राख का अंश सोचने लगा कि इस दुनिया में कुदरत ही अपना खेल खेलती है बाकि सब प्रपंच में अनावश्यक ही उलझे रहते हैं। जो आज तक मेरी जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर मुझसे नफ़रत करतें थे। आज उनको मालूम नहीं पडा कि हवा भी बुझी राख के अंश को इस तरह से मिला सकती हैं। किसी के मरने का दुख तो इस धरती को ही हो सकता है क्योंकि शरीर और आत्मा दोनों ही धरती सें चले जाते हैं और उसकी जिम्मेदारी नहीं सम्पत्ति खत्म हो जाती है।

यह संसार नश्वर है। ये मृत्यु लोक है, मुरदों का गांव है, यहां जन्म, मृत्यु के लिए ही होता है। यहां महाकाल की मृत्युन्जय के रूप में पूजा उपासना केवल अमरता के लिए ही की जाती हैं और ऋषि प्रार्थना करता है कि हे रूद्र! हम जानतें हैं कि तुम हमे रूला सकतें हो, मार सकते हो और सभी को मृत्यु के मुख में डाल सकते हो। हम तुम से अमरता का वरदान चाहते हैं कि तुम हमें जन्म मृत्यु के बन्धन से मुक्त कर हमें मोक्ष प्रदान करें।

यह खेल देख धरती मां महादेव सें प्रार्थना करती है ओर कहती हैं कि हे महाकाल तुम महाकाली को शांत करो अन्यथा शनैः शनैः महाकाली अपना विकराल रूप दिखा मेरी गोद सुनी करती ही जाएगी। यह सुनकर महादेव काली के मार्ग में लेट जाते हैं और महाकाली का जैसे ही पांव महादेव के सीने पर पडता है वह विस्मय से रूक जाती है।

दोपहर के बाद अन्नपूर्णा का रूप धर कर प्रदोष काल में महादेव जी के साथ मृत्यु लोक का भ्रमण कर सबको निहाल करतीं हैं और रात्रि में अन्नपूर्णा पार्वती को ऊंचे आसन पर बैठाकर सभी देव महादेव के साथ नृत्य कर देवी को प्रसन्न कर प्रदोष की महारात्रि मनाते हैं।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू झूठा बैर विरोध मत रख आखिर में, तेरे सुख के महल ही नहीं वरन् ये धरती भी छूट जाएगी।

सौजन्य : भंवरलाल