Home Religion चाम में से दूध निकले चांमडो पी जाय…

चाम में से दूध निकले चांमडो पी जाय…

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चाम में से दूध निकले चांमडो पी जाय…

खतरनाक ढंग से आंधी-तूफान चलते हैं और उसके बाद मूसलाधार बरसात होती है तो जीव व जगत में भारी भय व्याप्त हो जाता है लेकिन कुदरत अपनी ओर से ध्यान हटाने के लिए इस तूफान ओर बरसात के बाद गहरे घाव छोड जाती हैं और मानव सब कुछ भूल जाता है क्योंकि अब उसे ओर कोई नहीं केवल अपने नुकसान की चिन्ता होती है और वो तूफान ओर बरसात को भूल जाता है और आकलन करने लग जाता है अपने नुकसान का।

प्रकृति का यह मैनजमेंट निराला है एक भारी समस्या पैदा करके उसका विरोध करने से पूर्व ही अनेक समस्या पैदा कर मानव का ध्यान मूल समस्या से हटा देती है और इन समस्याओं का समाधान करते करते शरीर रूपी रथ में बैठी आत्मा चुपचाप में निकल जाती है और शरीर को जो मृत हो चुका है उसे भी अपना आखरी निशान मिटाने के लिए कई औपचारिकता का सामना करना पड़ता है।

मृत शरीर की यह दशा देखकर आत्मा भी मुस्कराते हुए कहती है भैया शरीर हमारा अदृश्य और अभौतिक रूप ही सदा सुखदायी होता है और ये जमाना हमारा कुछ नहीं बिडाड सकता लेकिन जैसे ही तुमने रूप धारण कर लिया दृश्य सजीव या निर्जीव के रूप में तो सदियों तक तुम विवादों में घिरे रहोगे ओर मर जाने के बाद भी घूमते रहोगे, चाहे परमात्मा के रूप में ही तुम्हे क्यो न पूजा जाय।

संसार की वास्तविक यही है कि जिस चमड़े से हम इतना परेज करते हैं, हम चमड़े के बने होने के बाद भी। अगर ऐसा नहीं होता तो समाज जातिवाद के दोर से गुजर कर परेशानियां पैदा नहीं करता।

जबकि दूध चमड़े से ही निकलता है ओर उसे चमड़े का शरीर ही पी जाता है। इसलिए संतजन कहते है कि तुम प्रकृति की रचना से प्रेम करो क्योंकि हर रचना प्रकृति ने ही बनाई है किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं।

सौजन्य : भंवरलाल