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अब तो सारा सुख भूलगी म्हारी हेली

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अब तो सारा सुख भूलगी म्हारी हेली

सबगुरु न्यूज। हे आदरणीय मानव, तू सदा सुखी और समृद्ध बना रहे बस यही कुदरत चाहती है। कुदरत ने तुझे आगे बढने के लिए इस धरती पर जन्म दिया है। तू प्रकृति की छांव तले बैठ और कुदरत के बनाए उस आकाश की तरफ़ देख जिसमें खामोशी हैं, जो दुनिया के दुख और दर्द को देख सबको अनन्त तक संरक्षण दे रहा है।

वह कह रहा है हे मानव डर मत ये दुख दर्द तो मौसम की तरह बदलते हैं आशा रूपी हवाएं तुझे सुख प्रदान करेगी। मन के अंदर प्रगति की ज्वाला उठ रही हैं बरसात का जल बरस कर तेरी इच्छाओं के बीज अंकुरित कर तुझे इस धरती पर फल देने वाला वृक्ष बना सबके विकास के मार्ग को प्रशस्त करेगी।

कुदरत ने पंच महाभूत धरती, आकाश, अग्नि, हवा और जल इसलिए ही बनाए हैं कि तुझे हर तरफ से सुखी तथा समृद्ध रखेंगे। इन पांचों से ही तेरी इच्छा की पूर्ति होगी। कुदरत के यह पंच महाभूत स्वत: ही संतुलित होते रहते हैं इसलिए इनके संतुलन की चिन्ता मत रख, क्योकि तू मानवीय सिद्धांतों के आधार पर संतुलन बनाए रखने की कोशिश करेगा जो जरूरी नहीं है तेरी इच्छा अनुसार ही काम करे।

आकाश के ग्रह नक्षत्र व तारे तुझे बहुत कुछ देने के लिए कुदरत ने बनाए हैं। तेरा अहित करने के लिए नहीं। इन ग्रह नक्षत्रों के रश्मि प्रभाव तेरे जीवन को उन्नत और प्रगति के पथ ले जाएंगे ना कि तुझे सुख दुःख देकर परेशान करेंगे। कुदरत ने बड़ी चतुराई से इन्हें भी आकाश मंडल में स्थापित किया है ताकि तू उनके गुण धर्मो को सीख ओर विकास के रास्ते का नक्शा तैयार कर कर्म कर।

श्रीकृष्ण की गीता ना तो हिंसा कराती है ना ही अहिंसा, वह तो केवल निष्काम कर्म करने की बात कहती है जिससे मानव, संसार के सभी सुखों का भोग करता है कारण केवल कर्म के मार्ग का चयन ही है।

हे मानव तू स्वयं कुदरत की खूबसूरत रचना हैं इसलिए सदैव इस कुदरत का लुत्फ़ ले। क्या सुख होते हैं या दुख तू सभी भूल जाएगा। कुदरत को बनाने वाला भी अपने आप को धन्य मान लेगा। यही राम रत्न धन है और इसे पाकर सारे सुख भूल जाएगा।

सौजन्य : भंवरलाल