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संस्कृति के घर में शोर की दस्तक

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संस्कृति के घर में शोर की दस्तक

सबगुरु न्यूज। सभ्यता और संस्कृति के बदलते मोड पर लगातार शोर की दस्तक बढ़ती जाती है। प्राचीन काल से आज तक शोर मे इजाफा होता जा रहा है। अभौतिक व भौतिक संस्कृति के अपने अपने मूल्य होते हैं और वे अपने वज़न के अनुसार ही शोर मचाते हुए बदलाव करते हैं।

पौराणिक काल के इतिहास को देखते हैं तो वह वर्तमान में भी जिन्दा नजर आता है। देव, दानव और शक्ति ये सभी अपनी संस्कृति का निर्माण कर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए आगे बढते हैं और जब एक तिराहे पर मिलते हैं तो तीन संस्कृतियां अपने आप को महान और बलवान बताकर संघर्ष में लग जाती है। ये संघर्ष सदियों से आज तक रूका नहीं है। हर युग और काल में अपने आप में बदलाव का संघर्ष जारी है।

प्राचीन काल में देव और दानव अपनी संस्कृति को स्थापित करने के लिए ही लड़ते रहे। अभौतिक संस्कृति में मूल्य, मानदंड, मानक, विचार, व्यवहार श्रद्धा और विश्वास होते हैं और भौतिक संस्कृति में शारीरिक आराम व विकास के लिए भवन वाहन तथा सभी प्रकार के सुखों के लिए विकास व विज्ञान को मान कर बनाए साधन इत्यादि।

देव दानव व शक्ति सभी वर्गों ने अपने गुण धर्म के अनुसार खूब विकास किया। ये सभी विवाद में फंसते हुए संघर्षरत रहे और तिराहे पर घमासान मचा चौराहे पर आ गए। चारों अलग-अलग दिशाओं में चले गए। संघर्ष के अंतिम परिणाम के रूप में शक्ति अपने बलबूते पर चौराहे पर खड़ी हो गई ओर विजयी होकर चौराहे पर स्थापित हो गयीं।

दैव रूपी श्रीविष्णु जी जब दानव रूपी मधु कैटभ से संघर्ष करने लगे तो कोई परिणाम नहीं निकला और शक्ति ने शोर मचाकर विष्णु जी का साथ दिया तथा देवो की विजय कराकर स्वयं शक्ति ने अपना परचम लहरा दिया।

दैव व दानव संघर्ष में जब अन्तिम विजेता दानव संस्कृति रहीं। दानवों के राजा बलि ने विजयी पताका फहरा दी, देवराज इन्द्र हार गए तब शक्ति तटस्थ होकर मौन रही तथा देव व उनकी संस्कृति को देख मुस्कुराती रही।

अंत में शक्ति ने बिना संघर्ष किए युक्ति का सहारा लिया। देवो की ओर से विष्णु जी का वामन अवतार करा दिया और डल से राजा बलि से सारे लोक दान में ले लिए।

शक्ति की इस युक्ति से देव दान लेकर खुश हो गए ओर दैत्य दान देकर धन्य समझने लगें और अंत मे दोनों ही संस्कृतियों ने शक्ति को स्थापित कर दिया ओर वर्तमान युग में इनके इन्ही स्वरूपों को देखा जाता है समस्त विश्व में केवल शक्ति का ही बोलबाला है।

आज शक्ति की युक्ति की संस्कृति बदल गई है और दान के स्थान पर छल, कपट, झूठ फरेब लालच और अंहकार धोखा आदि में अपनी बुद्धि से बल को बढाकर शक्ति अपने आप को स्थान दिलाकर राज करती है और शोर मचा मचाकर संस्कृति के मूल्यों को बदल रही है।

संत जन कहते है कि हे मानव तू सत्य के मार्ग का अनुसरण करा, जहां केवल सभी का कल्याण है। पंच महाभूत जहां सदा बहार रहते हैं और सभी के लिए अपना काम करते हैं। जहां शोर की संस्कृति नहीं है।

सौजन्य : भंवरलाल