Home Religion बरसे बदलियां सावन की….

बरसे बदलियां सावन की….

0
बरसे बदलियां सावन की….

धरती की अग्नि साधना के बाद प्रकृति प्रसन्न होकर, उसकी साधना का फल देने के लिए मेघों का आवहान करती है और अमृत रूपी जल को धरती की गोद में डाल कर उसे वर्षा की धारा से ठंडा कर देती है।

तप के दौरान अत्यधिक श्रम के कारण आया धरती का पसीना फिर धुल जाता है और प्रकृति सावन मास के बादलों से पुनः धरती का शुद्धीकरण कर उसके गर्भ के बीजों को अंकुरित कर अन्न, जल और वनस्पति रूपी फल को प्रदान कर देती है।

प्रकृति का यह करिश्मा देख आकाश में अपनी धुरी पर भ्रमण करता सूर्य मुस्करा जाता है क्योंकि उसके द्वारा ज्येष्ठ ओर आषाढ मास में किया गया अत्यधिक श्रम, धरती का पसीना बहा देता है। सूर्य को आई थकान के कारण, प्रकृति उसे विश्राम देती है और उसके परिक्रमा पथ पर कर्क राशि का ठंडा तारामंडल सूर्य का स्वागत बरसात से कर उसे राहत देता है।

जल तत्व प्रधान राशि कर्क, सूर्य की उष्णता को शांत कर धरती को हरा भरा कर देती है और वातावरण की गर्मी ओर शरीर में बढे ताप की गर्मी शान्त हो कर आनंददायक हो जाती है और चन्द्रमा रूपी मन मदमस्त हो जाता है और प्रकृति की हरियाली मे विचरण करते हुए प्रेम के आगोश में खो जाता है।

रास मंडल में रास लीला करते करते जब राधा कृष्ण रास क्रीडा के श्रम से अत्यधिक थक जाते है तब राधा जी के ललाट पर पसीना आने लगता है तथा कृष्ण का शरीर भी शिथिल पड़ जाता तब कृष्ण को दूध पीने की इच्छा होती है।

तुरंत उनके वांमाग से सुरभि गाय प्रकट होती है जो अपने दूध से पृथ्वी की खाली जगह को सागर के रूप में परिवर्तित कर देती है व संसार में क्षीरसागर बन जाता है तब राधा और कृष्ण दूध को पी कर अपनी थकान मिटाते हैं।

ऐसी मान्यता देवी भागवत महा पुराण की आदि कृष्ण के लिए बताई गई है। चैत्र मास में पार्वती रूपी गणगौर जब अपने जगत के ठाकुर शिव के साथ हिमालय पर्वत पहुंच जाती है तब आकाश का सूर्य मेष राशि मे प्रवेश कर नए सोर वर्ष का प्रारंभ कर गर्मी की तेजी को बढा तपा देता है।

तब प्रकृति, शिव शक्ति के मिलन हेतु तेज गर्मी से मेघों को उत्पन्न कर जल बरसाती है और सावन की तीज को शिव शक्ति का मिलन हो जाता है और वे जंगल व वनों में रमण हेतु निकल जाते हैं और जगत में सावन का महत्व हो जाता है।

सावन मास का धार्मिक महत्व वर्षा ऋतु के कारण बढ जाता है और आमजन को संदेश देता है अब दिमाग से विचारों की गर्मी हटा दो, बरसात रूपी प्रेम से ठंडे होकर विकास व समृद्धि के लिए बढ जाओ।

सौजन्य : भंवरलाल