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कलश अभी थोड़ा ख़ाली है

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कलश अभी थोड़ा ख़ाली है

सबगुरु न्यूज। विशाल पंडाल के विशाल आसन पर बैठी महाशक्ति भवानी को दैव, दानव और मानव सभी सिर झुका कर प्रणाम कर रहे थे। इतने में यमराज भी वहां पर सात सांडों पर सात काले मिट्टी के घड़े बांधे आ गए और महाशक्ति को प्रणाम किया। महाशक्ति बोलीं- हे यमराज इन घडों में क्या लेकर आए हो।

यह सुनकर यमराज बोले इन घडों में खून भरा हुआ है। सात में से पांच घडे भरे हुए हैं और दो अभी ख़ाली हैं। पांच घडों में हत्यारे, बलात्कारी, लूट कसोट करने वाले, झूठे और फरेबी लोगों का खून है और दो भरने बाकी हैं। महाशक्ति ने कहा हे यमराज-अब इन दोनों घडों में किसका ख़ून भरोगे।

तब यमराज कहने लगे हे माता अभी दो अंहकारी बाकी हैं और उनका खून भरना है। महाशक्ति ने कहा वो दोनों कौन है। यमराज कहते हैं कि हे मां दुर्योधन और भीम दोनों अंहकारी हैं इनका खून भर कर ही आपके पास आऊंगा।

उस महापंडाल में भीम भी बैठे थे। यमराज की बात सुनकर वे डर गए ओर दैवी महाशक्ति के चरणों मे बैठ कर माफ़ी मांगने लगे। इतने में श्रीकृष्ण ने भीम के कंधे पर हाथ रखा तो एकदम भीम को होश आया। भीम ने देखा तो श्रीकृष्ण के अलावा वहां कोई भी नहीं है। भीम को घबराते देख श्रीकृष्ण ने कहा भीम आखिर अहंकारी लोगों का यही अंत होता है। इसलिए अहंकार से गरजो मत।

श्री कृष्ण कहने लगे कि हे भीम उस जंगल के सभी खतरनाक जानवर अपना पूर्ण जोश दिखाते हुए एक दिन उस जंगल के राजा की गुफा में घुस गए। यह हाल देख जंगल का राजा शेर हैरान हो गया। शेर एकदम दहाड़ा और बोला अभी मैं तुम्हारा अंत कर देता हूं। यह सुनकर भी कोई जानवर टस से मस नहीं हुआ।

शेर को गुस्सा आ गया और उसने आधे जानवर मार दिए फिर भी आधे उस शेर को ललकार रहे थे। यह हाल देख अपनी इज्जत बचा शेर गुफा के अंधकार की ओर चला गया। सभी जानवर भी गुफा के बाहर आ गए।

थोड़ी देर बाद शेर का कुनबा आया और बहुत सारे मरे जानवरों को देख शेर को बधाईयां देने लगा, लेकिन एक शेरनी यह नजारा देख सब कुछ समझ गई कि शेर भी इस आधे शिकार में अधमरा हो गया है। शेरनी बोली हे जंगल के राजा अब संभल जा क्योंकि अगला रण तेरे अस्तित्व को खत्म कर देगा और तुझे धराशायी कर देगा। इसलिए तू बधाई का पात्र नहीं हैं। यह कहकर शेरनी गुफा से बाहर जाकर जंगल में बने एक मंदिर के पास बैठ गई और इस विषय पर मंथन करने लगी।

थोड़ी देर बाद मंदिर की मूर्ति से आवाज आई कि हे प्राणी जब कोई जीव आदमखोर हो जाता है तब वह खुद अपने अंत को निमंत्रण देने लग जाता है। उसमें दया भाव न होकर क्रूरता ही कूट कूट कर भर जाती है और उसका हर कर्म पगला कर केवल अपने को ही बचाने लगा रहता है।

उसके हर क़दम पर तबाही की गणित होती हैं, इस गणित का देव बनाकर वह सबको गले लगा कर उन्हीं का गला घोटता है। क्योकि वह अजेय रहने का अहंकार मन में पाले रहता है। यही सोच पाप के कलश को भरती रहती हैं और थोडा ख़ाली रहने के बावजूद भी वह अपने हितों को साधता हुआ अंत में उस कलश के पाप सहित जल में बह जाता है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव अहंकारी सबसे पहले परिवार को और फिर समाज व संस्कृति को तोडता है, फिर वह झूठ, फरेब, कपट के सहारे हर व्यक्ति को भयग्रस्त कर अपने आप को पुजवाता है। विरोधियों को मौत के घाट उतार देता है, लेकिन एक दिन वह इस अहंकार में खुद मिट जाता है। शनै: शनै: एक एक विरोधी उसका पक्षधर बन उसका ही अंत कर देते हैं।

इसलिए हे मानव तू झूठ, फरेब, लालच और अहंकार को परे रख तो यह आत्म सम्मान भरी रूखी सूखी रोटियां तुझे छपपन भोग का गुण देंगी, नहीं तो अहंकारी रोटियां तेरे काल को ही जन्म देंगी।

सौजन्य : भंवरलाल