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चंद यादों की परछाई में ढल गई शाम

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चंद यादों की परछाई में ढल गई शाम

सबगुरु न्यूज। प्रेम की दुनिया में मिलन की चंद यादें ही परछाईयां बन कर रह जाती हैं और उन परछाईयों में ही जीवन की शाम ढल जाती हैं। सदियों से प्रेम की इबारत परमात्मा ऐसे ही लिखता है जो हर किसी के नसीब में नहीं होतीं।

जैसे बादल में पानी और बिजली में आग छिपी रहती हैं वैसे ही प्रेम में आत्मा और परमात्मा छिपा रहता है। यदि इस आत्मा और परमात्मा का मिलन हो गया तो फिर प्रेम केवल परछाईयों की तरह बडा हो जाता है, उन्हीं परछाईयों में उसका सूरज ढल कर स्मृति शेष रह जाता है और प्रेम का पंछी उड जाता है। यह प्रेम “योग” न रहकर केवल “प्रेम रोग” ही रह जाता है और “आनंद योग” नींद के हसीन सपने की तरह टूट जाता है।

“आनंद योग” में आत्मा और परमात्मा बहुत नजदीक होने के बावजूद भी कभी नहीं मिलते और उनका आकर्षण ही प्रेम का निर्माण करता है। यही प्रेम सदियों तक अमर उजालों की तरह साथ चलता है और उस प्रेम की सांझ कभी नहीं होती। आत्मा और परमात्मा के मिलन का आकर्षण सदा प्रेम के सूरज को सदियों तक ले जाता है। यही “आनंद योग” की पराकाष्ठा है। इसलिए ढाई अक्षर प्रेम के इस दुनिया में अपना अस्तित्व रखते हैं ओर दुनिया के हर क्षेत्र को बांधें रखते हैं।

सत्ता चार प्रकार की होती हैं। धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक। कभी कभार पांचवे प्रकार की सत्ता भी अपना वर्चस्व स्थापित कर लेतीं हैं और वह करिश्माई सत्ता कहलाती हैं। इन सभी सत्ताओं में से कोई एक भी सत्ता यदि अपना संतुलन खो देती है तो वह एक काल बल की तरह शक्तिशाली बनकर बैठ जाती है और स्थान बल को धराशायी कर देती है। स्थान बल पर भी सदैव काल का बल ही भारी पड़ता है। यही स्थिति जीव व जगत पर भारी पड़ती हैं जब कि किसी ने कोई जुर्म नहीं किया तो भी उसे दंड पाना पडता है।

किसी भी सत्ता का संतुलन बिगड़ने का अर्थ है उसने प्रेम को पा लिया और उसकी नजर में अब परमात्मा, चंद यादों की परछाईयों में खो गया है और वह मनमानी पर उतर कर प्रेम और परमात्मा का सेतु नहीं बन कर नदी के दो किनारों की तरह अलग अलग हो गया है। इन पांचों सत्ताओ का यही योग “आनंदयोग” को खत्म कर व्यवस्थाओं को बिगाड देता है और एक नए भगवान और उसकी इबादत कैसे होगी उसका प्रचार प्रसार कर प्रेम की आत्मा व परमात्मा को मार देता है और आनंद योग में रमे राधा व कृष्ण तथा मीरा ओर श्याम फिर कभी प्रकट नहीं होते।

संत जन कहते हैं कि ये मानव प्रेम में आत्मा और परमात्मा का मिलन नहीं होता वह कोसों दूर रह कर भी बहुत करीब होते हैं। उनका यही आकर्षण उन्हें अमर अविनाशी बना देता है यदि ऐसा न हो तो चारों सत्ताओं के परमात्मा समाज को अव्यवस्थित कर प्रेम के अर्थ का नाश कर देते हैं और आकर्षण को खत्म कर देते हैं। सर्वत्र संघर्ष फैला कर अपने सपनों के परमात्मा मे आनंद ले कर “आनंद योग” को खत्म कर देते हैं। इसलिए हे मानव तू गुमराह मत हो और कर्म को भगवान मान कर प्रेम कर फल परमात्मा बन कर तेरे सामने खड़ा रहेगा। जिसका मिलन तेरे कर्म चयन पर ही होगा।