Home Rajasthan Ajmer जन्म और मृत्यु का खेल : जब तुम चले जाओगे

जन्म और मृत्यु का खेल : जब तुम चले जाओगे

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जन्म और मृत्यु का खेल : जब तुम चले जाओगे

सबगुरु न्यूज। जन्म से पहले और मृत्यु के बाद मानव की सत्ता क्या थीं इस विषय पर दुनिया के कई विज्ञानों ने अपने अपने दृष्टिकोण उजागर किए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत से यह सब परे है।

एक मान्यता आस्था और विश्वास के रूप में पूर्व जन्म और पुनर्जन्म को माना जाता है। इन्हीं धारणाओं के अनुरूप शरीर की सत्ता को नश्वर तथा उसमें चैतन्य रूपी आत्म तत्व को अजर अमर अविनाशी माना जाता है। मृत्यु के बाद शरीर से ये चैतन्य तत्व निकल जाता है और शरीर यही निष्क्रिय होकर रह जाता है।

काश!आत्मा के साथ यदि ये शरीर भी ग़ायब हो जाता तो इसकी सत्ता भी अजर अमर अविनाशी हो जाती। लेकिन ऐसा नहीं होने के कारण व्यक्ति अपनी-अपनी मान्यता के साथ मृत शरीर का अंतिम संस्कार करते हैं।

शरीर के पंच महाभूतों के गुणों पर आत्मा का प्रकाश पडते ही मन की उत्पत्ति होती हैं। पूरे जीवन काल में यह आत्मा और मन दोनों एक शरीर में रहते हुए भी अलग अलग गुण धर्म रखते हैं। फिर भी इन दोनों में गहरा प्रेम होता है। लेकिन इस प्रेम को सदा सदा के लिए तोड़ आत्मा चली जाती है।

शरीर ओर मन के मृत हालात देखकर बाहर निकली आत्मा भी भाव विभोर हो जाती हैं और कहतीं हैं कि हे मेरे प्रियतम, मेरे मसीहा तू मेरा अपना है। न जाने कितनों को मैंने छोड़ दिया, तेरा नम्बर ना जाने कौनसा है। ऊपर बैठे बाजीगर की चाल में ना जाने क्यों हम फंस गए तथा हम और तुम इस जहां में मिल गए। तुमसे मिलने की खुशी नहीं मुझे लेकिन तुझसे जुदा होने का गम मुझे बहुत ज्यादा होगा। ये निश्चित है कि हम एक दिन जुदा होंगे और हम तुम कभी नहीं मिलेंगे। यह कहते कहते उसकी आखों से अश्रु धारा बह निकली, मन भी उससे लिपट लिपट कर खूब रोया।

यह प्रेम कहानी किसी इंसान की नहीं वरन आत्मा और मन की है। आत्मा और मन ऐसे गहरे प्रेमी हैं जो जीवन से मृत्यु तक साथ ही रहते हैं। जब ये दोनों जुदा हो जाते हैं तो केवल शरीर को नामधारी के नाम से ही जाना जाता है। शरीर वह घर होता है जहां आत्मा और मन दोनों एक मेहमान की तरह रहते हैं और ना जाने दोनों को कब ओर कहां चले जाते हैं।

शरीर का अस्तित्व केवल आत्मा से ही होता है और आत्मा के शरीर में प्रवेश के साथ की मन की सत्ता प्रारंभ होती है, सभी सक्रिय हो जाते हैं।

ऊपर बैठे बाजीगर का यह खेल यूं ही चलता रहेगा और आत्मा व मन सदा प्रेमी होने के बाद भी निश्चित काल के बाद बिछुडना तय है लेकिन इस दुनिया में इतिहास बना जाएंगे। मृत्यु के बाद यही इतिहास आत्मा और मन की अमर यादे छोड़ जाएंगे।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू आत्मा और मन के झमेले में मत पड अन्यथा तू कई अंधविश्वासों में उलझकर वर्तमान जीवन के अमूल्य क्षणों को यूं ही खो देगा और अंध-विश्वासों की यही एक भारी क्लिष्टता तेरी अर्थ व्यवस्था को बिगाड़ देगी। तुझे सदा ऋणों के साम्राज्य की ओर धकेल देगी। इसलिए हे मानव तू अपने कर्म का प्रेमी बन ताकि तेरे जाने के बाद भी तेरा कर्म ही पूजा जाएगा और आने वाली पीढ़ियों को मार्ग दर्शन मिलेगा।

सौजन्य : भंवरलाल