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आत्माएं बयां करती हैं संस्कृति के हालात

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आत्माएं बयां करती हैं संस्कृति के हालात

सबगुरु न्यूज। सदियों पुराने शमशान घाट एकदम प्रकाश से जगमगा उठे। ऐसा लग रहा था मानो अब सारी आत्माओं का महासंगम होगा। वहां भारी सजावट की जा रही थी। चारों तरफ से ढोल नगाडे ओर शहनाईयो की आवाज आ रहीं थी।

यह हाल देख कर समस्त आत्माओं की बैचैनी बढ़ती जा रही थी कि आखिर यहां क्या होने वाला है। हो सकता है कि यह सभ्यता और संस्कृति हमें मरने के बाद कोई धर्म सभा का आयोजन हमारी ही शांति के लिए कर रही हैं।

कुछ समय बाद वहां महासभा का जमावड़ा होने लगा ओर वहां पर सारे लोग इकट्ठे होकर मृत लाशों के कफ़न व उनके उन चढे फूलों को ढूंढ रहे थे। पर वहां कफ़न ना थे और ना ही फूलों के अवशेष थे। इतने में तेज सर्द हवाएं चलीं ओर कई नए ओर पुराने कपड़े वहां उड उडकर कही से आ गए। बस फ़िर थोड़ी देर बाद वहां उन कपड़ों को कफन मान वहां जमे व्यक्ति उन मुरदों का बखान करने लगे।

यह हाल देख आत्माएं हैरान हो गईं ओर विधाता को कहने लगीं कि हे परमात्मा ये सभ्यता और संस्कृति इतनी डावडोल क्यो हो गई। सदियों पहले जब हम थे तो हमने उस बैजोड़ सभ्यता और संस्कृति को बना डाला और हमने अपनी मानव क्षमता का परिचय देकर अपने आपको स्थापित किया। आज का मानव हमारे कफ़न ढूंढकर अपने कर्मो की नाकामी को हम पर क्यों डाल रहा है। अपनी कमजोरी का लांछन हम पर क्यों लगा रहा है।

आज विश्व में तानाशाहों और आतंकवाद से पीड़ित जन समुदाय और हजारों लाखों रोते सिसकते बच्चे व अनाथ गरीब जनता व अपनी ईज्जत को बचाने के लिए दौडती बचती महिलाओं व बच्चों को अनदेखी करती ये संस्कृति जो विश्व के दो तिहाई हिस्से को घेर रखी है, बर्बादी को रोकने की जगह अपने एक तिहाई लोगों के साथ हम मृत शरीर की आत्माओं के पीछे पडे हैं।

संत जन कहते है कि हे मानव परमात्मा ने आत्माओं को शांत कराकर वापस अपनी-अपनी जगह भेज दिया। यह कह कर कि यह कलयुग है। यहां हंस नहीं कौवे ही नवाजे जाएंगे और फिर एक आत्मा का पुनर्जन्म होगा, एक नई सभ्यता और संस्कृति का नव निर्माण होगा।

इसलिए हे मानव तू अपनी सभ्यता और संस्कृति को बनाए रख, नहीं तो तू परिवार, कुल और मानव समाज, संस्कृति को दूषित कर देगा और तेरे ही कुनबे की आत्माएं तू नीचा दिखा देगा।

सौजन्य : भंवरलाल