Home Delhi आडवाणी भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह : सुब्रह्मण्यम स्वामी

आडवाणी भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह : सुब्रह्मण्यम स्वामी

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आडवाणी भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह : सुब्रह्मण्यम स्वामी
lk advani bhishma pitamah of indian politics : subramanian swamy
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नई दिल्ली। आडवाणी के साथ 32 साल लोकार्पण से पहले ही चर्चा में आ गई। इसकी वजह यह थी कि इसका लोकार्पण रूकवाने की कोशिश की गई। यही बात लोकार्पण समारोह में बार-बार उठी और स्पष्टीकरण भी दिया गया कि आडवाणी ने नहीं, कुछ और तत्वों ने पुस्तक को विवादित बनाने का प्रयास किया। जबकि इस पुस्तक में आडवाणी के विराट व्यक्तित्व को ही उभारा गया है।

पुस्तक का लोकार्पण करते हुए भाजपा के सांसद और पूर्व मंत्री ड़ॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने आडवाणी की तुलना भीष्म पितामह से की। उन्होंने कहा कि राम मंदिर आंदोलन के बाद आडवाणी चाहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन उन्होंने अटल जी को आगे रखकर राजनीति में त्याग का आदर्श प्रस्तुत किया।

ड़ॉ स्वामी ने कहा कि आडवाणी के प्रति भाजपा और संघ के कार्यकर्ता हमेशा से श्रद्धा का भाव रखते हैं। आडवाणी भारतीय राजनीति के आदर्श हैं। इस अवसर पर दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात चिंतक के.एन. गोविंदाचार्य ने कहा कि इस समय राजनीति में ध्येयवाद और राष्ट्रवाद के क्षरण का दौर है। ऐसे में किसी राजनीतिक व्यक्तित्व के आदर्शपूर्ण जीवन पर आधारित पुस्तक पढ़कर सही मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है।

वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने पुस्तक के अनेक अंश उद्धृत करते हुए कहा कि यह पुस्तक आडवाणी के जीवन के उजले पक्ष को ही सामने रखती है और विवादित पक्ष पर पर्दा डालती है।

पुस्तक के लेखक विश्वंभर श्रीवास्तव ने लेखकीय मर्यादा का पालन किया है। इसके बावजूद पुस्तक का लोकार्पण न होने देने के प्रयास करना आडवाणी के निकट किसी कैकेयी के होने का आभास कराता है।

इस लोकार्पण समारोह का आयोजन दिल्ली की संस्था प्रज्ञा भारती ने किया था। इसके अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार जवाहर लाल कौल ने कहा कि पुस्तक को लेकर अनेक आशंकाएं थीं, लेकिन पुस्तक पढकर वे सब दूर हो गईं।

पुस्तक के लेखक विश्वंभर श्रीवास्तव ने बताया कि 32 साल पहले जब वे आडवाणी के साथ गए तभी से पुस्तक लिखने की योजना पर काम कर रहे थे। 2009 के चुनाव से पहले पुस्तक तैयार हो चुकी थी। उसकी मूल पांडुलिपि मैंने आडवाणी जी को दी थी। पर तब उनकी सलाह पर चुनाव को देखते हुए उसका प्रकाशन नहीं किया गया।

हालांकि आडवाणी जी ने कहा था कि यह आपकी इच्छा पर निर्भर है। आप पुस्तक के लेखक हैं जब चाहें अपनी किताब प्रकाशित करा सकते हैं। आडवाणी जी विचार स्वातंत्र्य के प्रबल समर्थक हैं। श्रीवास्तव ने कहा कि आडवाणी जी को 8 महीने पहले पुस्तक की पहली प्रति भेंट करने मैं स्वयं गया और उन्होंने कोई आपत्ति नहीं जताई। अब उनका नाम लेकर कुछ अन्य लोग विवाद खड़ा कर रहे हैं।

संस्था के सचिव राकेश सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच संचालन डी.डी. न्यूज के वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने किया। समारोह में बड़ी संख्या में पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी और राजनेता उपस्थित थे।