Home Chandigarh मेला माघी दा : चालीस मुक्तों की पवित्र धरती श्री मुक्तसर साहिब

मेला माघी दा : चालीस मुक्तों की पवित्र धरती श्री मुक्तसर साहिब

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मेला माघी दा : चालीस मुक्तों की पवित्र धरती श्री मुक्तसर साहिब
Mela Maghi Da : holy land of Forty Mukton Sri Muktsar Sahib
Mela Maghi Da : holy land of Forty Mukton Sri Muktsar Sahib
Mela Maghi Da : holy land of Forty Mukton Sri Muktsar Sahib

श्री मुक्तसर साहिब। मुक्तसर से श्री मुक्तसर साहिब बने ऐतिहासिक नगर का प्रथम नाम खिदराना था एवं इस स्थान पर खिदराने की ढाब थी। उक्त क्षेत्र जंगली होने के कारण यहां अक्सर पानी की कमी रहती थी। पानी की भूमि सतह नीची होने के चलते यदि कोई यत्न करके कुएं आदि लगाने का प्रयत्न भी करता तो नीचे से पानी ही इतना खारा निकलता कि वह पीने के योग्य न होता।

इसलिए यहां एक ढाब खुदवाई गई जिसमें बरसात का पानी जमा किया जाता था और इस ढाब के मालिक का नाम खिदराना था जोकि फिरोजपुर जिले के जलालाबाद का निवासी था, जिस कारण इसका नाम खिदराने की ढाब मशहूर था।

इस स्थान पर दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगल हकूमत के विरुद्ध अपना आखिरी युद्ध लड़ा जिसे खिदराने की जंग भी कहा जाता है। जब दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1705 में धर्मयुद्ध करते हुए श्री आनंदपुर साहिब का किला छोड़ा तो आप ने दुश्मनों की फौज के साथ युद्ध करते विभिन्न स्थानों से होते हुए मालवे की धरती की ओर रुख किया।

कोटकपूरा पहुंच कर गुरु जी ने चौधरी कपूरे से किले की मांग की परंतु मुगल हकूमत से डरते हुए उसने किला देने से इंकार कर दिया तो गुरु जी सिख सिपाहियों सहित खिदराने की ओर चल पड़े और खिदराने की ढाब पर जा पहुंचे।

गुरु जी खिदराने में अभी पहुंचे ही थे कि दुश्मन की फौज सरहिंद के सूबेदार के नेतृत्व में यहां पहुंच गई। गुरु जी एवं उनके 40 महान योद्धा जोकि कभी बेदावा देकर गए थे, ने गुरु जी से मिलकर खिदराने की ढाब पर मोर्चा कायम कर लिया।

खिदराने की ढाब इस समय सूखी पड़ी थी। इसके आस-पास झाड़-फूस उगी हुई थी। सिक्खों ने झाड़ों का सहारा लेते हुए मुगल फौज पर हमला बोल दिया। यह युद्ध 21 बैसाख सम्मत 1762 विक्रमी को हुआ। युद्ध के दौरान सिख फौज की बहादुरी देखकर मुगल फौज युद्ध के मैदान से भाग गई। इस युद्ध में मुगल फौज के बहुत से सिपाही मारे गए और गुरु जी के भी कई सिख शहीद हो गए।

इसी स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने भाई महा सिंह का वह बेदावा जो वह अपने साथियों सहित आनंदपुर में दे आए थे, से उनको मुक्त किया एवं भाई महा सिंह को अपनी गोद में लेकर बेदावा फाड़ दिया। भाई महा सिंह जी ने इसी स्थान पर शहीदी प्राप्त की। इस युद्ध में माता भाग कौर ने भी जौहर दिखाए। घायलों की मरहमपट्टी गुरु जी ने स्वयं की एवं तंदुरुस्त होने के पश्चात उन्हें खालसा दल में शामिल कर लिया।

ऐतिहासिक गुरुद्वारे

गुरुद्वारा टुट्टी गंढी साहिब: इस स्थान पर गुरुगोबिंद सिंह जी ने भाई महा सिंह को अपनी गोद में लेकर उनके साथियों द्वारा आनंदपुर में दिया बेदावा फाड़ कर उनकी गुरु के साथ टुट्टी गंढी थी जिस कारण इस गुरुद्वारा साहिब का नाम गुरुद्वारा टुट्टी गंढी साहिब है।

गुरुद्वारा तंबू साहिब: मुगलों के साथ खिदराने के युद्ध के समय जिस स्थान पर सिखों द्वारा तंबू लगाए गए थे, वहां गुरुद्वारा तंबू साहिब सुशोभित है। गुरुद्वारा माता भाग कौर जी खिदराने की जंग में युद्ध कौशल दिखाने वाली महान सिख योद्धा माता भागो की स्मृति में गुरुद्वारा तंबू साहिब के साथ ही माता भाग कौर जी का गुरुद्वारा बनाया गया है।

गुरुद्वारा शहीद गंज साहिब: इस स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने क्षेत्र के सिखों की सहायता से मुगलों के साथ युद्ध करते समय शहीद हुए चालीस मुक्तों का अंतिम संस्कार किया था। जिस कारण यहां पर गुरुद्वारा शहीद गंज साहिब सुशोभित है।

गुरुद्वारा रकाबसर साहिब: यह वह स्थान हैं जहां दशमेश पिता के घोड़े की रकाब टूट गई थी। जब गुरु साहिब टिब्बी साहिब से उतर कर खिदराने की रणभूमि की ओर चले तो घोड़े की रकाब पर पांव रखते ही वह टूट गई थी। अब तक वह टूटी हुई रकाब उसी प्रकार सुरक्षित रखी हुई है तथा वहां गुरुद्वारा रकाबसर बना हुआ है।

गुरुद्वारा तरनतारन दु:ख निवारण साहिब: गुरुद्वारा तरनतारन दुख निवारण बठिंडा रोड पर स्थित है जहां प्रत्येक रविवार श्रद्धालु सरोवर में स्नान करते हैं। चालीस मुक्तों की इस पवित्र धरती पर माघी के शुभ अवसर पर दूर-दूर से लाखों की संख्या में आए श्रद्धालु यहां बने पवित्र सरोवर में स्नान कर अपने जीवन को सफल बनाते हैं। यह वह पवित्र स्थान है जहां गुरु जी की कृपा से बेदावा देकर आए सिखों की भी टुट्टी गंढ गई थी। आओ इस पवित्र दिवस पर हम सभी भी अरदास करें कि टुट्टियां गंढन वालिया सानू गंढ के रखीं।