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प्रकृति के करीब : ‘पैराहॉकिंग’

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प्रकृति के करीब : ‘पैराहॉकिंग’
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साहस और रोमांच का अनुभव कराने वाले पैराग्लाइडिंग और स्काई डाइविंग जैसे अनेक एडवेंचर्स खेल इन दिनों काफी लोकप्रिय हो रहें हैं। यहां तक कि कुछ लोग शादी और सालगिरह जैसे खास दिनों को यादगार बनाने के लिए भी इन खेलों का इस्तमाल कर रहें है। शायद यही वजह है कि इन दिनों पड़ोसी देश नेपाल में इन्हीं खेलों से मिलता-जुलता खेल ‘पैराहॉकिंग’ काफी लोकप्रिय हो रहा है।

हालांकि इस रोमांचक खेल का प्रारूप लगभग पैराग्लाइडिंग जैसा ही है, लेकिन जो फैक्टर इसे पैराग्लाइडिंग से भिन्न और खास बनाता है, वह है प्राकृतिक सफाई कर्मी ‘गिद्ध’। प्रकृति के और करीब महसूस कराने वाले इस खेल में आपके साथ गिद्ध भी उड़ान भरते हैं। इस खास उड़ान के लिए गिद्धों को प्रशिक्षित कर उनका खास ख्याल भी रखा जाता है। धीरे-धीरे लोकप्रिय होते अपनी तरह के इस इकलौते रोमांचक खेल को शुरू करने का श्रेय जाता है ब्रिटिश बर्ड संरक्षक स्कॉट मैसन को, जो इन गिद्धों को ट्रेंड करते हैं। खास बात यह भी है कि इस खेल से होने वाली कमाई को गिद्धों के संरक्षण में लगाया जाता है। इस कमाई से गिद्धों के लिए खास रेस्तरां तैयार किए गए हैं, जहां उनके लिए स्वस्थ भोजन की व्यवस्था की गई है। इसके सा​थ ही हिमालयन रैप्टर रेस्क्यू नामक संस्था भी चलाई जा रही है, जो इन गिद्धों का संरक्षण करती है।

पसंद आ रहा है कॉन्सेप्ट

मध्य नेपाल के पोखरा प्रांत स्थित सारंगकोट पहाड़ियों पर बड़ी संख्या में पैराग्लाइडिंग के शौकीन पैराहॉकिंग के लिए पहुंचते हैं। इस खास खेल के लिए गिद्धों को ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें पुराने बाज पालन के नियमों के साथ ही आधुनिक तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है, ताकि ये गिद्ध पर्यटकों के साथ आराम से उड़ान भर सकें। नेपाली पैराहॉकर दामोदर की मानें तो पक्षियों में गर्म हवा का पता लगाने का कुदरती गुण होता है और उनकी नजर भी खूब तेज होती है, इसलिए पैराग्लाइडर्स के लिए इनका पीछा करना आसान होता है। पैराग्लाइडर्स गिद्धों के साथ उड़ते हुए अपने हाथों में उनके लिए भोजन पकड़े रहते हैं, जो उड़ते हुए पैराग्लाइडर्स के हाथों से लपककर इन्हें खा लेते हैं। यह अद्भुत रोमांच पैदा करता है।

संरक्षण के साथ शुरुआत

इस रोमांचक खेल को खोजने वाले 40 वर्षीय ब्रिटिश पक्षी संरक्षक स्कॉट मैसन का कहना हैं कि हम इन गिद्धों को जंगल से बचाते हैं और उनका संरक्षण करते हैं। जैसे कि कैविन नामक 6 वर्षीय गिद्ध मुझे जंगल में घायल मिला, वह अपने घोंसले से नीचे गिरकर घायल हो चुका था। हमने उसे पाला तथा प्रशिक्षित किया है। असल में ग्राफिक डिजाइन तथा बर्ड ट्रेनर स्कॉट एक दशक पहले पैराग्लाइडिंग करने नेपाल आए थे। स्कॉट नेपाल में पक्षियों की विविधता देखकर चकित हैं, लेकिन उन्हें यह देखकर बड़ा धक्का भी लगा कि नेपाल, भारत तथा पाकिस्तान में गिद्ध तथा चील जैसे पक्षियों की तादाद में तेजी से गिरावट आ रही थी। इसका कारण पालतु पशुओं पर डिक्लोफिनाक नाम ड्रग्स का इस्तेमाल था। मरे हुए पशुओं का मांस खाने वाले ये पक्षी इस ड्रग की वजह से मारे जा रहे थे। इस निराशा के बाद जब स्कॉट वापस लौटने लगे तो नेपाल में पैराग्लाइडिंग कंपनी चलाने वाले एक दोस्त ने दो गिद्धों को प्रशिक्षित करने का प्रस्ताव दिया। तब स्कॉट को लगा कि इन पक्षियों के संरक्षण की दिशा में काम करने का यह भी एक तरीका बन सकता है, इसलिए वह इन गिद्धों को प्रशिक्षित करने में जुट गए। वर्ष 2001 में स्कॉट ने प्रशिक्षित गिद्धों के साथ पहली बार पैराहॉकिंग का आयोजन किया, जिसे काफी सराहा गया।

होती है खास देखभाल

प्रयोग के तौर पर शुरू हुआ यह खेल जल्द ही लोकप्रिय हो गया है। गिद्ध के साथ उड़ने के रोमांच के साथ-साथ इससे इन पक्षियों के संरक्षण की भावना भी जुड़ी है। पैराहॉकिंग से होने वाली आय से पक्षियों के संरक्षण का काम करने वाली संस्था हिमालयन रैप्टर रेस्क्यू चलाई जाती है, जो इन पक्षियों का खास ख्याल रखती है। साथ ही इस आय का एक हिस्सा वल्चर रेस्टोरेंट्स (खासतौर पर गिद्धों के लिए तैयार किए रेस्तरां) को भी दिया जाता है। मरे हुए जानवरों को एकत्रित करते समय यह ध्यान जरूर रखा जाता है कि इन पक्षियों को स्वस्थ भोजन मिले ताकि यह गिद्ध पशुओं का विषैला मांस खाने से बचे रहें। इन पक्षियों को स्कॉट अपने रिसॉर्ट-होटल में अन्य पक्षियों के साथ रखते हैं। इनमें सपना नामक 11 वर्षीय वह गिद्ध भी शामिल है, जो पैराहॉकिंग करने वाली पहली मादा गिद्ध थी।

प्रजातियां, हो रही विलुप्त

पूरे विश्व में नौ प्रकार के गिद्ध पाए जाते हैं और अकेले नेपाल में आठ प्रजातियां मौजूद हैं। इनमें सानो खैरो गिद्ध, यूरेशियायी गिद्ध, हिमाली गिद्ध, राज गिद्ध, डंगर गिद्ध, गोबर सेतो गिद्ध, हार्डफोर गिद्ध और जटायु गिद्ध शामिल हैं। इसमें से डंगर गिद्ध विलुप्त होने के कगार पर है, उसे बचाने को लेकर जद्दोजहद चल रही है।

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