Home Karnataka Bengaluru संत आध्यात्म से देश की जनशक्ति को और मजबूत करें : मोदी

संत आध्यात्म से देश की जनशक्ति को और मजबूत करें : मोदी

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संत आध्यात्म से देश की जनशक्ति को और मजबूत करें : मोदी
pm modi addressing at Sapta Shatamanotsava
pm modi addressing at Sapta Shatamanotsava
pm modi addressing at Sapta Shatamanotsava

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने कहा कि आज समय की मांग है कि अशिक्षा, अज्ञानता, कुपोषण, कालाधन, भष्टाचार जैसी जिन बुराइयों ने भारतमाता को जकड़ रखा है, उससे हमारे देश को मुक्त कराने के लिए संत समाज देश को रास्ता दिखाते रहे।

प्रधानमंत्री रविवार को वीडियो कांफ्रेसिंग के द्वारा उडुपी (कर्नाटक) में श्री पेजावर मठ में मध्वाचार्य जी के सातवीं शताब्दी समारोह को वीडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा संम्बोधित कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत में भक्ति आन्दोलन के समय के सबसे बड़े दार्शनिकों में से एक जगद्गुरु संत श्री मध्वाचार्य जी के सातवीं शताब्दी समारोह में उपस्थित होने से मैं अभिभूत हूं।

कार्य की व्यस्तता के कारण मैं उडुपी नहीं पहुंच पाया। अभी कुछ देर पहले ही अलीगढ़ से लौटा हूं। ये मेरा परम सौभाग्य है कि आप सभी का आशीर्वाद लेने का सुअवसर मुझे आज प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि मानव जाति के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान के लिए जिस प्रकार से संत श्री मध्वाचार्य जी के सन्देश का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, मैं उसके लिए सभी आचार्यों, मनीषियों का अभिनन्दन करता हूं।

कर्नाटक की पुण्य भूमि को भी मैं प्रणाम करता हूं, जहां एक और मध्वाचार्य जैसे संत हुए, वहीं आचार्य शंकर और आचार्य रामानुज जैसी पुण्य आत्माओं ने भी इसे विशेष स्नेह दिया। उडुपी श्री मध्वाचार्य जी की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। श्री मध्वाचार्य जी ने अपना प्रसिद्ध गीताभाष्य उडुपी की इसी पवित्र भूमि पर लिखा था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फुले, डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर, महात्मा गांधी, पांडुरंग शास्त्री आठवले, विनोबा भावे, जैसे अनगिनत संत पुरुषों ने भारत की आध्यात्मिक धारा को हमेशा चेतनमय रखा। समाज में चली आ रही कुरितियों के खिलाफ जनआंदोलन शुरू किया।

जात-पात मिटाने से लेकर जनजागृति तक, भक्ति से लेकर जनशक्ति तक, सती प्रथा को रोकने से लेकर स्वच्छता बढ़ाने तक, सामाजिक समरसता से लेकर शिक्षा तक, स्वास्थ्य से लेकर साहित्य तक उन्होंने अपनी छाप छोड़ी है, जनमन को बदला है। इन जैसी महान विभूतियों ने देश को एक ऐसी शक्ति दी है, जो अदभुत, अतुलनीय है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि सामाजिक बुराइयों को खत्म करते रहने की ऐसी महान संत परंपरा के कारण ही हम सदियों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेज पाए हैं। ऐसी महान संत परंपरा के कारण ही हम राष्ट्रीय एकीकरण और राष्ट्रनिर्माण की अवधारणा को साकार करते आए हैं। ऐसे संत किसी युग तक सीमित नहीं रहे हैं, बल्कि वे युगों-युगों तक अपना प्रभाव डालते रहे हैं।

हमारे देश के संतों ने हमेशा समाज को इस बात के लिए प्रेरित किया कि हर धर्म से ऊपर अगर कोई धर्म है तो वो मानव धर्म है।आज भी हमारे देश, हमारे समाज के सामने चुनौतियां विद्यमान हैं। इन चुनौतियों से निपटने में संत समाज और मठ बड़ा योगदान दे रहें हैं।

जब संत समाज कहता है कि स्वच्छता ही ईश्वर है, तो उसका प्रभाव सरकार के किसी भी अभियान से ज्यादा होता है। आर्थिक रूप से शुचिता की प्रेरणा भी इसी से मिलती है। भ्रष्ट आचरण यदि आज के समाज की चुनौती है, तो उसका उपाय भी आधुनिक संत समाज दे सकता है। पर्यावरण संरक्षण में भी संत समाज की बड़ी भूमिका है। हमारी संस्कृति में तो पेड़ों को चेतन माना गया है, जीवनयुक्त माना गया है।

बाद में भारत के ही एक सपूत और महान वैज्ञानिक डॉक्टर जगदीश चंद्र बोस ने इसे दुनिया के सामने साबित भी किया। वरना पहले दुनिया इसे मानती ही नहीं थी, हमारा मजाक उड़ाती थी। हमारे लिए प्रकृति मां है, दोहन के लिए नहीं, सेवा के लिए है। हमारे यहां पेड़ के लिए अपनी जान तक देने की परंपरा रही है, टहनी तोड़ने से भी पहले प्रार्थना की जाती है।

जीव-जंतु और वनस्पति के प्रति संवेदना हमें बचपन से सिखाई जाती है। उन्होने कामना की, कि सभी संत आध्यात्म के द्वारा हमारे देश की प्राणशक्ति का अनुभव जन-जन को कराते रहेंगे। वयम अमृतस्य पुत्राहा, के अहसास से जनशक्ति को और मजबूत करते रहेंगे।