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वोट मांगने वाले धर्मगुरुओं की आफत न हो जाए

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वोट मांगने वाले धर्मगुरुओं की आफत न हो जाए
supreme court order on 21, 000 post of teachers recruitment in rajasthan
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की ओर से मांगा गया जवाब भविष्य में चुनाव प्रचार के दौरान वोट मांगने वाले धर्मगुरुओं के लिए समस्या का सबब बन सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दुत्व की परिभाषा को पुनरविचार करने के दौरान संविधान पीठ ने यह जानना चाहा है कि किसी पार्टी के या उम्मीदवार के लिए मतदाताओं से वोट मांगने पर चुनाव में प्रत्याशी नहीं होने वाले आध्यात्मिक नेताओं या धर्मगुरुओं को चुनाव कानून के तहत भ्रष्ट कियाकलापों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है या नहीं।
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर  की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने यह पूछा है कि जो व्यक्ति चुनाव नहीं लड रहा है और न ही विजयी उम्मदवार बना है, उसके खिलाफ भ्रष्ट क्रियाकलाप अपनाने पर जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत किस तरह से मामला चल सकता है।पीठ ने पूछा कि किसी धर्मगुरु की ओर से किसी धर्म के नाम पर किसी खास प्रत्याशी या पार्टी  को वोट देने की अपील रिकॉर्ड की जाती है और इसे बाद में चुनाव में बजाया जाता है तो क्या यह  जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123(3) के तहत आता है।

उल्लेखनीय है कि इस धारा में किसी प्रत्याशी को अयोग्य घोषित किया जा सकता है यदि वह, उसका एजेंट या उससे रजामंदी लिया हुआ शख्स धर्म, जाति, संप्रदाय या भाषा के आधार पर चुनावी फायदा उठाता है। फिलहाल धर्मगुरुओं की ऐसी अपील राजनितिक पार्टियों के दायरे में नहीं आती है।