Home Rajasthan Ajmer वह भी ना माना, मैं भी ना मानी…

वह भी ना माना, मैं भी ना मानी…

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वह भी ना माना, मैं भी ना मानी…

सबगुरु न्यूज। दुनिया के रंग में वह रंगा था, वह केवल भौतिक सुखों के लिए ही काम करता था। हर रात की तन्हाई में मैं उसे बहुत समझाती और सत्य की दुनिया से रूबरू करवाती लेकिन वह नहीं मानता और वही करता जो वह चाहता। वह थका हारा सो जाता ओर मैं भी बैबस होकर शांत हो जाती।

हमारी मजबूरी थी कि हम दोनों को सदा एक ही साथ एक कमरे में रहना पड़ता। वह न जाने क्या क्या खेल करता, मुझे सब नहीं चाहते हुए भी झेलने पडते। वह मुझसे परेशान न था, मेरी बात कभी-कभी मान भी लेता लेकिन फिर बदल जाता।

एक बार वह बीमार था। मैंने मौका देख आधी रात तक खूब समझाया लेकिन वह फिर मनमानी पर उतर आया। इतने में दिया बुझ गया और अंधेरा हो गया। मैं बैबस थी, कुछ न कर पाई।

सुबह का सूरज निकल पडा, हर तरफ़ गमों का माहौल छाया हुआ था। मोहल्ले बस्ती में शोक की लहर छा गई। उसके घरवाले व रिशतेदारों ने भी रो रोकर माहौल को बेहाल कर दिया।
वह अपने मकान को मिट्टी बनाकर उसके साथ ही मर गया और मैं सदा बेबस थी मै उसके शरीर से बाहर निकल गई थी।

मैं अजर अमर अविनाशी थी इसलिए उसके साथ मर ना पाई। वह और उसका शरीर पंच तत्वों का बना था इसलिए उसे मेरे सामने ही जला दिया गया। मैं अनन्त में जाकर अपने ही परमात्मा में विलीन हो गई। उसकी तस्वीरें व मूरत बनाकर लगा दी गई और मुझे उस शरीरधारी के नाम से बुलाकर श्राद्ध जिमा दिया।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, शरीर मन और आत्मा इन तीनों को जीते जी सदा एक ही साथ रहना पडता है। मन शरीर पर मनमानी करता हुआ जो भी चाहता है, अच्छा बुरा सभी करवाता रहता है लेकिन आत्मा उसके कार्यो का विशलेषण कर हर बार उसे सच्चे मार्ग की ओर जाने को प्रेरित करती है। मन मनमानी करते हुए आत्मा की एक भी नहीं सुनता है। जब प्राणी मर जाता है तो वह पंच तत्व में मन के साथ ही मिट्टी में मिल जाता है।

आत्मा यह सब खेल देखकर बेबस हो जाती है और परमात्मा को कहती हैं तू मुझे अपने साथ ही रख या दुनिया में मन को भारी मत पड़ने दे ताकि मै मन पर राज कर सभी को सुखी और समृद्ध बना सकू।

हे मानव तेरे भीतर एक महामानव बैठा है तू उसकी सुन ओर कल्याण के मार्ग की ओर बढ़। भौतिक सुख के साथ तू अभौतिक निर्माण कर ताकि सभ्यता के विकास की कहानी में तेरा योगदान भी रहे।

सौजन्य : भंवरलाल