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सियासत में नए ट्रंप ने दक्ष हिलेरी को हराकर रचा इतिहास

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सियासत में नए ट्रंप ने दक्ष हिलेरी को हराकर रचा इतिहास

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अमरीकी इतिहास में एक लंबी और अब तक की सर्वाधिक विकृत राजनीति के बीच 70 वर्षीय डोनाल्ड जान ट्रंप अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति बन गए हैं।

राजनीति के दांवपेंच से दूर रहनेवाले न्यूयार्क में रियल एस्टेट कारोबार और कैसीनो शृंखला में एक बड़े बिजनेसमैन डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी ही पार्टी के बड़े नेताओं को लतियाते, मीडिया को गरियाते हुए जिस तरह राजनीति में निपुण पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन को परास्त किया है, उसने अमरीका ही नहीं, दुनियाभर के राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया है।

अमरीका में 11 अरब डालर संपदा के मालिक और तीन विवाह करने वाले भरे-पूरे परिवार में दादा और नाना बने डोनाल्ड ट्रंप आज से ठीक 73 दिन बाद अमरीकी राष्ट्रपति के रूप में पदासीन होने के साथ-साथ एक सर्वाधिक शक्तिशाली देश के कमांडर इन चीफ के रूप में भी प्रतिष्ठित होंगे।

करीब दो साल तक चले दुनिया में सर्वाधिक खर्चीले करीब छह अरब डालर के इस चुनाव में ट्रंप ने प्राइमरी और काकस में अपनी ही रिपब्लिकन पार्टी के 16 प्रत्याशियों को हरा कर एक के बाद एक दो तिहाई राज्यों में जीत हासिल कर पार्टी से नामांकन हासिल किया था।

इनमें सीनेटर टेड क्रुज, सीनेटर मार्को रूबियो और ओहायो के गवर्नर जान कासिच को हराना ट्रंप के लिए अमरीकी चुनाव की सर्वकालीन बड़ी घटना के रूप में याद की जाती रहेगी। अमरीकी समय के अनुसार सुबह छह बजे तक डोनाल्ड ट्रंप जीत के लिए अपेक्षित 538 मतों वाले इलेक्ट्रोल में 497 मतों की गिनती में 277 मत हासिल कर विजयी घोषित कर दिए गए थे।

हिलेरी को तब तक मात्र 218 मत मिले थे। इस चुनाव के साथ एक और बड़ी घटना यह हुई कि रिपब्लिकन पार्टी ने सीनेट और निचले सदन प्रतिनिधि सभा में भी बहुमत हासिल कर लिया। ताजा परिणामों तक सीनेट में 51 और प्रतिनिधि सभा में 236 स्थानों पर विजय मिली है।

ट्रंप की खासियत थी कि वह मतदाताओं से सीधे कनेक्ट रहे। अपनी बात को मजबूती से रखना उनकी आदत में शुमार रहा है। इसके बावजूद वह दस प्रतिशत अश्वेत नागरिकों की मनुहार करने से भी पीछे नहीं हटे, जिसका उन्हें लाभ मिला। इसके लिए वह ओहायो में डेटराइट के अश्वेत समुदाय के चर्च में जाना नहीं भूले। 25 प्रतिशत अश्वेत मतदाताओं से जुड़े नार्थ कैरोलाइना में जीत इसका परिणाम है।

डेमोक्रेटिक पार्टी से लगातार दो बार राष्ट्रपति के रूप में पदासीन बराक ओबामा की विरासत का झंडा बुलंद करने के लिए मैदान में उतरीं हिलेरी की पराजय के कारणों की तह में जाएं, तो कहना पड़ेगा कि आठ वर्षों की सत्ता से हताश-निराश अमरीका की उसी युवा पीढ़ी ने डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी हिलेरी को हरा कर यह प्रमाणित कर दिया कि तीसरी बार व्हाइट हाउस में घुसना सहज नहीं है।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद रिपब्लिकन रोनाल्ड रीगन की शानदार स्वीकार्यता दर के बाद केवल एक बार जार्ज डब्ल्यु बुश एक मात्र ऐसे नेता थे, जो एक ही पार्टी से तीसरी बार व्हाइट हाउस पहुंचे थे।

अमरीका को फिर से ग्रेट बनाने की मुहिम लेकर चले ट्रंप ने हिलेरी के मुकाबले कम धन राशि खर्च करते हुए यह जता दिया कि चुनाव डालर की बरसात करने से ही नहीं देश में अपेक्षित सशक्त जनमत तैयार करने से सफलता मिलती है।

इसके लिए ट्रंप ने पश्चिम एशिया में अशांति, इस्लामिक स्टेट की मौजूदा आतंकी गतिविधियों को जड़ से मिटा देने, चीन के आर्थिक साम्राज्यवाद के खिलाफ लोहा लेने और अपने देश के कामगारों को फिर से बेहतर जाब दिलाने के लिए आश्वस्त कर अपना मुरीद बनाने में सफलता हासिल की।

डोनाल्ड ट्रंप की गोल्डन जीत में एक खास बात देखने को यह मिली कि उन्होंने एक बार बढ़त स्थापित करने के बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखा। कांटे के मुकाबले में छह बैटल ग्राउंड राज्यों में ट्रंप ने न्यू हैंपम्शायर को छोड़ कर नार्थ कैरिलाइना, फलोरिडा, ओहायो, विस्कोंसिन और पैन्सेल्वेनिया में बड़ी जीत के साथ खाता खोला।

डोनाल्ड ट्रंप के साथ आने वाले समय में भारत से क्या संबंध रहेंगे, इसका अनुमान उनके चीन के प्रति कड़ी प्रतिक्रियाओं और इस्लामिक आतंकवाद को कुचल डालने की उनकी नीति से लगाया जा सकता है। जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और बलोचिस्तान में अमानवीय प्रताड़ना के खिलाफ जो बीड़ा उठाया है, उसमें अमरीका का सहयोग मिलना लाजिमी है।

भारतवासियों के लिए एक यह सवाल भी मौजूद होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दो सालों में बराक ओबामा के साथ मित्रता का जो हाथ बढ़ाया है, उसे देखते हुए डोनाल्ड ट्रंप का क्या रुख होगा?

यह सवाल भी कमतर नहीं है कि मोदी ने अमरीका सहित दुनिया के विभिन्न देशों की यात्रा कर भारत को आर्थिक मंच के शिखर तक ले जाने का जो बीड़ा उठाया है, उसे डोनाल्ड ट्रंप एक बिजनेसमैन के रूप में आपसी हितों के मद्देनजर साकार करने में सहायक हो सकते हैं।

अफगानिस्तान में डेढ़ दशक (2001 से 2015) तक इस्लामिक तालिबान के खिलाफ साझा लड़ाई में पाकिस्तान का साथ निभाना भले ही अमरीका के लिए एक विवशता थी, तो भारत एक जरूरत? अब बदली परिस्थितियों में चीन के साथ पाकिस्तान की बढ़ती मित्रता, आर्थिक और सामरिक साझेदारी तथा आतंकी गुटों के अनवरत संरक्षण कुछेक ऐसे मामले हैं, जो ओबामा के उत्तराधिकारी के इर्द-गिर्द जमा परामर्शदाताओं की सोच पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और बलोचिस्तान में हाल ही में मानवाधिकार हनन की घटनाओं पर ओबामा प्रशासन ने पाकिस्तान को लताड़ा है।अच्छे और बुरे आतंकवाद को एक ही श्रेणी में रखे जाने की सोच पर पाकिस्तान पर निशाना साधा गया है।

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