नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भरता की अनिवार्यता पर जोर दिया और कहा कि भारत को किसी भी खतरे से स्वतंत्र रूप से अपनी रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए, भले ही देश के खिलाफ कई शक्तियां एकजुट हों।
आरएसएस की शताब्दी के अवसर पर ‘ऑर्गनाइजर’ के साथ विस्तृत साक्षात्कार में श्री भागवत ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए हमें दूसरों पर निर्भर नहीं होना चाहिए। हमें अपनी रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए। कोई भी हमें जीतने में सक्षम नहीं होना चाहिए, भले ही कई शक्तियां एक साथ आ जाएं। उन्होंने जोर दिया कि सच्ची ताकत भीतर से आती है और इसे गलत दिशा में हिंसा से बचने के लिए सद्गुणों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि एक सद्गुणी व्यक्ति सिर्फ अपने सद्गुणों के कारण सुरक्षित नहीं है, इसलिए सद्गुणों को शक्ति के साथ जोड़ा जाना चाहिए। केवल क्रूर शक्ति दिशाहीन हो सकती है, जिससे स्पष्ट हिंसा हो सकती है। इसलिए शक्ति को धर्म के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ की शक्ति की दृष्टि वैश्विक प्रभुत्व के उद्देश्य से नहीं है, बल्कि सभी के लिए शांति और सम्मान सुनिश्चित करने के उद्देश्य से है। उन्होंने कहा कि हम विश्व व्यापार पर हावी होने के लिए ऐसा नहीं कर रहे हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए कर रहे हैं कि हर कोई शांतिपूर्ण, स्वस्थ और सशक्त जीवन जी सके।
मौजूदा चुनौतियों के संदर्भ में उन्होंने भारत की सीमाओं पर लगातार हो रहे आक्रमण की ओर इशारा किया और कहा कि मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में ताकत का निर्माण एक विकल्प नहीं बल्कि एक आवश्यकता है। पड़ोसी देशों में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों के बारे में चिंताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने वैश्विक मानवाधिकार निकायों की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए कहा कि हिंदुओं को पड़ोसी देशों में शोषण का सामना करना पड़ रहा है, उन पर हिंसा की गयी है। क्या वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार रक्षकों को इसकी परवाह है।
हाल ही में आयोजित अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में विचार-विमर्श का हवाला देते हुए भागवत ने कहा कि संघ ने इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार किया है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं की चिंता तभी होगी जब हिंदू काफी मजबूत होंगे। चूंकि हिंदू समाज और भारत एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, इसलिए हिंदू समाज की गौरवशाली प्रकृति भारत के लिए गौरव लाएगी।
वैश्विक स्तर पर हिंदुओं के विकसित होते आंतरिक संकल्प को सकारात्मक संकेत बताते हुए उन्होंने कहा कि इस बार बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ जिस तरह से आक्रोश व्यक्त किया गया है, वह अभूतपूर्व है। यहां तक कि स्थानीय हिंदू भी अब कहते हैं-हम भागेंगे नहीं। हम यहीं रहेंगे और अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे। अब हिंदू समाज की आंतरिक शक्ति बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि दुनिया में जहां भी हिंदू हैं, हम अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करते हुए उनके लिए हर संभव प्रयास करेंगे। संघ इसी के लिए है। स्वयंसेवक धर्म, संस्कृति और समाज की रक्षा करके हिंदू राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिए काम करने’ की शपथ लेते हैं। लोकतंत्र के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने लोगों के जनादेश का सम्मान करने का दृढ़ता से आग्रह किया और चुनावी प्रक्रिया के खिलाफ निराधार आरोपों को खारिज किया। उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह की विभाजनकारी रणनीति भारत के लोकतंत्र की नींव को खत्म कर देती है। उन्होंने राजनीतिक नेताओं से लोकतांत्रिक संस्थाओं को बनाए रखने और जिम्मेदारी और गरिमा के साथ शासन करने का आह्वान किया।