संयम लोढ़ा के कथित प्रोत्साहन पर प्रतिद्वंद्वी क्षुब्ध!

सिरोही। गोसेवा यात्रा के दौरान सभा में बैठे सिरोही विधायक संमय लोढ़ा।

सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही भाजपा और भाजपा के आरएसएस से जुड़े कार्यकर्ताओं में फिलहाल एक चर्चा प्रमुखता से चल रही है। वो है सिरोही में गो यात्रा के दसवे दिन हुए आयोजन में मुख्य वक्ता के द्वारा सिरोही विधायक संयम लोढ़ा के नाम की कई बार पुनरावृत्ति करके उन्हें और अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा के साथ-साथ सत्ताधारी दल को भी राजस्थान में गोसेवा में सहयोगी बताना।

अब संगठन में अंदरखाने ये चर्चा है कि संयम लोढ़ा ने इस कार्यक्रम को हाईजैक कर लिया। इससे भाजपाई क्षुब्ध हैं तो कांग्रेस (लोढ़ा) के कार्यकर्ता गदगद। जबकि मुख्य वक्त दत्तशरणानंद ने अपने भाषण में ही स्पष्ट कहा था कि गोसेवा में सबका काम अनुकरणीय है और वो किसी का नाम यहां पर लेते हैं तो इसे अन्यथा नहीं लेवें।

दरअसल, राजस्थान गो सेवा समिति के तत्वावधान और पथमेड़ा गोधाम के सान्निध्य में 21 फरवरी से राज्य में ग्यारह दिवसीय वेदलक्षणा गोसंदेश यात्रा निकाली गई थी। दसवे दिन ये सिरोही में पहुंची तो गोसभा का आयोजन किया गया। इसकी समस्त व्यवस्थाएं आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ताओं के पास थी। ऐसे में इसमें आरएसएस और भाजपा के अधिकांश प्रमुख पदाधिकारी पहुंचे थे। लेकिन, एक चेहरा ऐसा पहुंच गया जो शायद भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ताओं ने अनअपेक्षित माना हो। वो चेहरा था सिरोही विधायक संयम लोढ़ा का।

यहां तक तो फिर भी ठीक था। लेकिन, जब मुख्य वक्ता दत्त शरणानंद ने अपने संदेश में कई बार गोसेवा में सिरोही विधायक संयम लोढ़ा के सहयोग की बात की पुनरावृत्ति की तो ये वहां मौजूद उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को नागवार गुजरा। इसमें अधिकांश आरएसएस पृष्ठभृूमि और भाजपा के थे। इसके बाद कई तो ‘अब बाकी क्या रहा गया’ की भावना के साथ वहां आयोजित प्रसादी में हिस्सा लिए बिना निकल गए।

दरअसल, आरएसएस और भाजपा गाय को अपना एक्सक्लूसिव ऐजेंडा मानकर चल रही है। कार्यक्रम स्थल के अंदर, बाहर और भाजपा व आरएसएस के कार्यकर्ताओं में इसके बाद गर्माए मुद्दे का निचोड़ यही दिख रहा है वो ये है कि आरएसएस और भाजपा के गाय से जुड़े एक्सक्लूसिव यज्ञ में कांग्रेस की सरकार और उसे समर्थन दे रहे सिरोही के विधायक की आहूति देने की बात की पुनरावृत्ति नागवार गुजरी। कुछ नेता इस गलमफहमी में भी अनमने हो गए कि दत्तशरणानंद के द्वारा बार बार संयम लोढ़ा का नाम लेना उनकी तरफ से 2023 के विधानसभा चुनावों के लिए उनका आशीर्वाद है। ऐसे में ‘अब क्या बाकी रह गया’ की भावना भी बाहर आई।

-लगभग हर वक्ता ने लिया नाम
ऐसा नहीं है कि इस सभा में सिर्फ दत्तशरणानंद ने ही संयम लोढ़ा का नाम लिया हो। यूट्यूब पर इस कार्यक्रम की लाइव स्ट्रीम में स्पष्ट दिख रहा है कि सिर्फ दत्त शरणानंद ने ही नहीं उनसे पहले के वक्ताओं ने भी संयम लोढ़ा के गोसेवा के लिए प्रशस्ति गाई है। इन लोगों ने जहां सिरोही की अर्बुद गोशाला को नंदी शाला बनवाने के राज्य सरकार के आदेश करवाने और गोसेवको द्वारा निकाली गई असंतोष यात्रा की मांगों को गहलोत सरकार के द्वारा पूरा करवाए जाने में संयम लोढ़ा के सहयोग का जिक्र किया।

वहीं दत्त शरणानंद ने तो पिछले शासन में गोलासन की नंदी गोशाला को प्रशासन द्वारा कब्जे में लेने के बाद एक महीने में ही विफल हो जाने के ओटाराम देवासी के कार्यकाल का भी जिक्र किया। इसे संघ समर्थित भाजपा कार्यकर्ता इस रूप में देख रहे हैं कि सिरोही के पूर्व विधायक और राजस्थान की पूर्व सरकार की निंदा तथा वर्तमान विधायक और वर्तमान राज्य सरकार को आर्शीवाद मिल गया है। जबकि दत्त शरणानंद ने पहले ही इससे व्यथित नहीं होने का डिस्क्लेमर दे दिया था। फिर भी आरएसएस से जुड़े भाजपा के कार्यकर्ताओं में अविश्वास बरकरार है।
– विधानसभा में जोड़ा था आदर्श घोटाले के संचालकों से संबंध
आरएसएस और भाजपा में आरएसएस से जुड़े लोगों को संयम लोढ़ा की तारीफ से नाराजगी गैरजायज भी नहीं है। विधानसभा के इसी सत्र में संयम लोढ़ा ने आदर्श सोसायटी घोटाले में सोसायटी संचालकों के साथ आरएसएस का संबंध जोड़ा था। भरी विधानसभा में उन्होंने सिरोही के आरएसएस से जुड़े पदाधिकारियों का खर्चा सोसायटी के संचालकों के द्वारा उठाए जाने का आरोप लगा दिया था। ऐसे में कोई भी संगठन इस तरह से उनका नाम उछालने वाले राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्वता रख भी लेता है तो कोई आश्चर्य नहीं है।
– लेकिन इस सहयोग को भी तो याद रखें
निसंदेह संयम लोढ़ा ने विधानसभा में आरएसएस पर सीधा हमला किया था। लेकिन, उन्होंने एक प्रमुख मुद्दे पर आरएसएस और भाजपा को भरपूर सहयोग भी किया है। उस सहयोग को भी याद रखा जाना चाहिए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और संयम लोढ़ा ने पालघर में संतों की हत्या के मामले में आरएसएस से जुड़े लोगों और भाजपा के माध्यम से सोनिया गांधी को घेरे जाने के बाद भी सिरोही के आरएसएस के कार्यालय में नवम्बर 2018 को संत अवधेशानंद की हत्या के प्रकरण में तब से अब तक मुंह नहीं खोला था।

वे चाहते तो पालघर प्रकरण के बाद इस मुद्दे से भाजपा को घेर सकते थे लेकिन, संयम लोढ़ा और खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आज तक शायद ही ऐसा किया हो। भाजपा में आरएसएस से जुड़े पदाधिकारियों को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और संयम लोढ़ा के कांग्रेस को घिरवाने में किए गए इस सहयोग को भी याद रखना चाहिए।