आबूरोड । माउण्ट आबू की सडक को टूटने का पूरा दोष प्रकृति पर मढा जा रहा है। लेकिन, इसके टूटने मे ंमानवीय सहयोग उससे कई ज्यादा है। मानवीय दोष भी उन अधिकारियों का ज्यादा है जिन्हें माउण्ट आबू के संरक्षण की जिम्मेदारी सौपी थी।
माउण्ट आबू की सडक के आंशिक हिस्से के इतनी बुरी तरह से टूटी है कि उसे पुराना वाला ट्राफिक लोड फिर से लेने में अभी कम से कम से दस दिन तो लगेंगे। बारिश रुकने से मंगलवार से सडक का दुरुस्त करने का काम शुरू हो गया। मजदूर मलबा हटाने में लगे हुए थे। मौके पर पीडब्ल्यूडी के जोधपुर संभाग के अतिरिक्त मुख्य अभियंता नेमीचंद, एसई रमेश वराडा आदि बैठकर काम की मॉनीटरिंग कर रहे थे। जिस स्तर पर इस सडक को नुकसान हुआ है उसकी वजह अत्यधिक बारिश ज्यादा माउण्ट आबू के अधिकारियों की अनदेखी ज्यादा है। यदि इन लोगों ने ये हालात बरकरार रखे तो भविश्य में भी ये स्थिति बनी रहेगी।
उपखण्ड अधिकारी ने छोटे वाहनों को माउंट आबू में प्रवेश की अनुमति जारी कर दी है। लेकिन रात्रि साढ़े नौ बजे के बाद आवश्यक सेवाओं को छोड़कर शेष सभी तरह के वाहनों के प्रवेश पर पाबंदी रहेगी। 12 सीटर वहीं से बड़े किसी भी यात्री वहां को माउंट आबू में प्रवेश नहीं मिलेगा। इससे छोटे वाहनों से रात्रि साढ़े नौ बजे से पहले पर्यटक माउंट आबू जा सकेंगे।
माउण्ट आबू की इस सडक के टूटने के पीछे कई कारण हैं। लेकिन, जो सबसे महत्वपूर्ण तकनीकी कारण निकलकर सामने आ रहा है वो है ओवरलोडिंग। सार्वजनिक निर्माण विभाग क सूत्रों के अनुसार इस सडक को उन्होंने 26 टन लोड वहन करने के लिए बनाया है। इसके विपरीत यहां पर अवैध निर्माण सामग्रियों से भरे डम्परों की एक के बाद एक आवाजाही नजर आ जाती है। इन पर नियंत्रण रखने का अधिकार माउण्ट आबू के ही अधिकारियों के पास हैं। ऐसे में इस सडक के ढहने में इनकी गैर जवाबदेही भी एक महत्वपूर्ण फैक्टर मानी जा सकती है।
सूत्रों अनुसार यहां पर प्रतिदिन 40-40 टन बजरी भरे हुए डम्पर आ जा रहे हैं। ये हालात तब हैं जब 22 जून को 7 इंच बारिश होने के कारण एक जगह पर सडक के हल्का दब गई थी। इसके बाद उपखण्ड अधिकारी ने जून में ही ये दावा किया था कि माउण्ट आबू में बडे मालवाहक में निर्माण सामग्री लाने की इजाजत नहीं होगी।
बजरी के दस चक्के के डम्पर में आधिकारिक रूप से तो सिफ 18 टन माल ही भरा जा सकता है। इस भराव क्षमता के साथ डम्परों में बजरी जाते तो सडक को कोई नुकसान नहीं होता। लेकिन, इनको ओवरलोड करके 32 टन निर्माण सामग्री भरी जाती है। खुद डम्पर का वजन सात टन होता है। तो ओवरलोड डम्पर चालीस टन के आसपास हो जाता है। इन ओवरलोड डम्परों में माउण्ट आबू मार्ग पर धमाल मचाया हुआ है।
उपखण्ड अधिकारी कार्यालय से ही माउण्ट आबू में निर्माण सामग्री आवंटित करने के टोकन जारी होते हैं। ऐसे में उनकी अनुमति के बिना माउण्ट आबू में ओवरलोड डम्परों से बजरी का पहुंच जाना खुद ही पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाता है। हाल ही में मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वहां पर चार महीने में बिना अनुमति के नया बंगला बन गया। माउण्ट आबू म घुसने से पहले यहां टोल नाके को पार करना होता है। यहां पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। इसका लिंक उपखण्ड अधिकारी कार्यालय और नगर पालिका दोनें में है। माउण्ट आबू में माल जाने केलिए ओवरलोडेड डम्परों की भूमिका सबसे ज्यादा है। यही हालात रहे तो इसका ढहना कभी रुकेगा नहीं।
– पानी निकल ने की जगह ही नहीं
हाल ही में माउण्ट आबू से अम्बाजी तक की सडक का सुदृढीकरण किया गया है। इसमें पांच करोड रुपये खर्च हुए। लेकिन, इस सुदढीकरण के दौरान जो सबसे ज्यादा देखे जाने वाली बात थी उसे ही नजरअंदाज किया गया। इसमें सडक के किनारे जो पैराफीट वॉल बनाई गईं, वो आरसीसी की बनाई गईं। इसमें कई कई दूरी तक सडक से पानी गिरने के लिए नालियां नहीं दिख रही हे।
जिस जगह पर सडक ढही है उसकी दूसरी तरफ प्लास्टिक के पाइप लगाकर छोटी नालियां तक दिखी लेकिन, ये भी सीमेंट और डामर से ढकी हुई थी। जिससे पानी पहाडी के सहारे आगे निकल जाए। सडक के ढहने वाले हिस्से के ठीक दूसरी तरफ पहाडी वाले भाग में एक गहरा गड्डा है। इसमें इस सडक का पानी आकर गिरता है। संभवतः इसी पानी को आगे निकलने की जगह नही मिली और ये सडक के नीचे से रिसकर दूसरी तरफ की दीवार को धक्का देता रहा।
इस पानी और ओवरलोड वाहनों के कारण सडक के नीचे की मिट्टी को खिसकने का अनुकूल माहोल मिल गया। जितनी भी जगह पैराफीट वाल बनी हैं वहां पर पानी की आवक के अनुसार दीवारों पर समुचित निकासी की व्यवस्था नहीं की गई है।
– उठानी होगी 12 मीटर उंची दीवार
माउण्ट आबू उपखण्ड अधिकारी अंशु प्रिया ने सोमवार को पीडब्लयूडी के अधिकारियों के साथ सडक के टूटे हुए सेक्शन का निरीक्षण किया था। इस दौरान उन्होंने बुधवार तक सडक के दुरूस्त होने की संभवना जताई जा रही थी। सडक की लम्बाई भले ही कम दिख रही है लेकिन, गहराई ज्यादा है। इस सडक को बनाने के लिए पुरानी सडक के मलबे को हटाना होगा। इस हिस्से में खाई पडती है ऐसे में ये काम मशीन से नहीं किया जा सकता। मानव श्रम से करवाने में समुचित समय लगेगा।
इसके बाद करीब पचास फीट तक 12 मीटर उंची दीवार बनानी होगी। इसके बाद इस दीवार और पुरानी दीवार के बीच मिट्टी भरी जाएगी। दीवार और मिट्टी दोनों सेटल होंगे तब जाकर इसके उपर से सडक बन पाएगी। दीवार और मिट्टी के सेटल हुए बिना सडक निर्माण करने से फिर से बडे वाहनों के निकलते हुए यहां पर हादसे की आशंका बनी रहेगी। वैसे माउण्ट आबू उपखण्ड अधिकारी ने यहां पर पर बुधवार शाम को भी अवलोकन करके कार्य की प्रगति की जानकारी ली थी।