नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को झटका देते हुए जमीन के बदले नौकरी घोटाले से संबंधित उनकी याचिका पर सुनवाई करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया।
शीर्ष न्यायालय ने इस मामले में निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग वाली पूर्व मुख्यमंत्री की याचिका पर सुनवाई करने से आज मना कर दिया। यादव दिल्ली उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिलने पर शीर्ष अदालत की शरण में गए थे।
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने पूर्व रेल मंत्री की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के आरोपपत्र को रद्द करने की यादव की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट फैसला करेगा। सर्वोच्चय न्यायालय ने साथ ही, दिल्ली हाईकोर्ट को मुख्य याचिका का शीघ्र निपटारा करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने हालांकि याचिकाकर्ता को राहत देते हुए कहा कि निचली अदालत में उनकी उपस्थिति की अनिवार्यता समाप्त की जा सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट ने 29 मई को यादव की निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा था कि कार्यवाही पर रोक लगाने का कोई ठोस कारण नहीं है।
राजद अध्यक्ष ने अपनी याचिका में दावा किया कि निष्पक्ष जांच के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हुए अवैध और दुर्भावना से प्रेरित जांच के जरिए उन्हें परेशान किया जा रहा है। उन्होंने मामले में खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि नए सिरे से जांच शुरू करना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
इससे पहले, उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की प्राथमिकी रद्द करने की यादव की याचिका पर सीबीआई को नोटिस जारी किया था। इस मामले में हाईकोर्ट 12 अगस्त को सुनवाई करेगा। सीबीआई ने 18 मई 2022 को मामला दर्ज किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वर्ष 2004 से वर्ष 2009 के दौरान, यादव ने ग्रुप डी रेलवे की नौकरियों के बदले अपने परिवार के लिए जमीन हासिल करने के लिए अपने (रेल) मंत्री पद का दुरुपयोग किया था।
एजेंसी ने यह आरोप लगाया था कि ये नियुक्तियां बिना किसी सार्वजनिक विज्ञापन के की गईं। जांच से पता चला कि पश्चिम मध्य रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने यादव के निर्देश में इन नियुक्तियों में मदद की। सीबीआई ने दावा किया कि ये नियुक्तियां भारतीय रेलवे के भर्ती के लिए स्थापित मानकों और दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं थीं। गौरतलब है कि सीबीआई ने सबूत जुटाने के लिए दिल्ली और बिहार में कई स्थानों पर छापेमारी भी की थी।