युवाओं की प्रेरणा एवं शतरंज पुनर्जागरण के वास्तुकार हैं एलएन झुंझुनूवाला

नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली के छतरपुर स्थित टिवोली गार्डन्स में आयोजित दिल्ली अंतरराष्ट्रीय ओपन ग्रैंडमास्टर्स शतरंज टूर्नामेंट में भागीदारी के बाद राजस्थान के युवा फीडे-रेटेड प्लेयर शतरंज खिलाड़ी आलोकिक माहेश्वरी, आराध्या उपाध्याय और हार्दिक शाह को अपने कोच प्रकाश पाराशर के साथ विशिष्ट उद्योगपति और शतरंज के समर्पित संरक्षक एलएन झुंझुनवाला से सोमवार को उनके आवास पर मिलने का अवसर प्राप्त हुआ।

ये खिलाड़ी विवेकानंद केंद्र विद्यालय हुरड़ा (राजस्थान) के छात्र-छात्रा हैं, जो झुंझुनवाला द्वारा राजस्थान और मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और समग्र विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित चार विद्यालयों में से एक है। इस अवसर ने न केवल उनकी उपलब्धियों का जश्न मनाया, बल्कि भारतीय शतरंज के विकास में उनके लंबे समय से चले आ रहे योगदान से मिली गहरी प्रेरणा को भी रेखांकित किया।

झुंझुनवाला की दूरदर्शिता ने एक व्यक्तिगत जुनून को राष्ट्रीय आंदोलन में बदल दिया। उनकी दूरदर्शिता और कार्यों ने शतरंज को केवल एक खेल से कहीं ऊपर उठाया। इसे रणनीतिक सोच, अनुशासन और मानसिक दृढ़ता जैसे आवश्यक जीवन कौशल विकसित करने के एक उपकरण के रूप में देखा। उन्होंने इस खेल के माध्यम से शिक्षा और संस्कृति के बीच की खाई को प्रभावी ढंग से पाटा, जिससे यह समाज के विभिन्न तबकों तक पहुंच सका।

भारत में शतरंज क्रांति में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है। साल 1973 में स्थापित नेशनल चेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के माध्यम से उन्होंने देश में शतरंज के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया। उनके प्रयासों से 1982 में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर्स टूर्नामेंट का आयोजन हुआ, जिसने भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को ऊंचा किया। उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम में शतरंज को शामिल करने की वकालत की और बॉटविनिक शतरंज अकादमी की स्थापना की, जहां उन्होंने विश्वनाथन आनंद और अभिजीत गुप्ता जैसे खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया।

झुंझुनवाला की प्रतिबद्धता केवल शतरंज तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने युवा छात्रों के शारीरिक और मानसिक विकास को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कराटे, तीरंदाजी, निशानेबाजी, योग और एथलेटिक्स जैसे अन्य खेलों का भी समर्थन किया। उनकी यह व्यापक दूरदृष्टि शिक्षा और खेल के बीच तालमेल का एक उत्कृष्ट उदाहरण बन गई है।

उन्होंने देश की पहली शतरंज पत्रिका चेस इंडिया भी शुरू की और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया। उनके अभिनव प्रयासों ने न केवल क्रिकेट-प्रधान देश में शतरंज को लोकप्रिय बनाया, बल्कि यह विश्वास भी जगाया कि भारतीय खिलाड़ी वैश्विक मंच पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं, एक ऐसी दृढ़ धारणा जिसने आज की क्षमताओं और जीत की नींव रखी।