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ये दर्पण तुम्हें जब डराने लगे…

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ये दर्पण तुम्हें जब डराने लगे…

सबगुरु न्यूज अजमेर। कर्म कर और फल उठा, कल की चिन्ता मत कर। कल का फल तो महज एक आदर्श चारू वाक्य है जहां व्यक्ति अपने हित के लिए कल्पना करके रह जाता है और फल कोई ओर ले जाता है। इसी धारणा के अनुरूप कलयुग को अनीति की दुनिया का बादशाह कहा जाता है और उसके काल में रहने वाला अगर उसके अनुरूप व्यवहार न करे तो उसे इस जमीनी हकीकत पर दुख झेलने पडते हैं।

कलयुग कहता है कि हे प्राणी मैं, इस युग का बादशाह हूं, मेरा अवतार भूमि पर छल, कपट, पांखड, अनीति, झूठ, लूटपाट तथा अशांति के साथ विखंडता का राज्य स्थापित करने के लिए हुआ है और तुम मुझे सत्य और नीति की भाषा बता रहे हो। मैं सर्प की तरह केवल अपनी केचुली छोडता हूं पर विष को नहीं।

तुम सभी विषधर बनो और मेरा अनुसरण करो अन्यथा हर तरीके से तुम्हें सब तरह से बर्बाद करने की हर कला है मुझमें, और वर्तमान युग में मेरा रथ अब आगे निकल गया है और तमाम ब्रह्मांड में मेरे नाम का डंका पूज रहा है धरती ही नहीं, धरती से ऊपर आकाश और अन्तरिक्ष में भी मैंने मेरे गुणो का साम्राज्य स्थापित कर के तरह तरह की युद्ध नीति को और विखंडता और वैमनस्य को स्थापित कर लोगों में घृणा और नफरत पैदा कर दी है।

अपने प्रचार प्रसार के लिए मैने सर्वत्र मेरी गुणगाथा गाने वाले बीन पर नाचने वाले सांपों को बैठा दिया है। कलयुग की अहंकारी गूंज सुन सृष्टि के कर्ता मुस्कराते हुए कहते हैं कि हे मानव जहां शीलता, नम्रता, श्रद्धा और विश्वास कम होने लगते है। संस्कृति की धरोहर मानव सभ्यता जब नीति को त्याग कर अनीति को ग्रहण कर लेती है तब यह सब कलयुग के खाते मे जमा पूंजी बन जाती है।

सांप सौ साल पहले भी काटा है और अब क्यो नहीं काटेगा, यदि इसी तरह के तर्क वितर्क से कलयुग की कार्यशील पूंजी बढती है और अंकेक्षक भी पूर्वानुसरण कर अनीति को लाभ में दिखा, मानव समाज की संस्कृति की सम्पत्ति व दायित्व की बैलेंस शीट दिखा संत से असंत बन समान कर देता है तब कलयुग अपना रथ लेकर अशांति का दूत बन अपने शासन की जडों को मजबूत कर लेता है।

संत जन कहते हैं कि हे प्राणी इन सब को जाने दे ओर भागवत वासुदेव की गीता का अनुसरण कर, कर्म कर और फल की ईच्छा मत रख। भविष्य पुराण में वेद व्यास जी ने बहुत कुछ कलयुग के बारे में लिखा है। फिर भी परमात्मा में विश्वास रख सब ठीक हो जाएगा नहीं तो फिर कृष्णावतार होगा और भूमि का भार उतरेगा।

सौजन्य : भंवरलाल