Home Astrology गिरधर की मुरलीयां बाजे रे…

गिरधर की मुरलीयां बाजे रे…

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गिरधर की मुरलीयां बाजे रे…
lord shri krishna and radha rani
lord shri krishna and radha rani
lord shri krishna and radha rani

वो पूर्ण ब्रह्म प्रकाशी है वो आत्म पद के वासी है। मनमोहन मुरली वाला अजर अमर अविनाशी है। इसमे कोई संदेह नहीं की उनका तन उपज कर चला गया लेकिन वो अपनी ही आत्मा में रमण करने वाले हैं इसलिए वो आत्माराम है। उनकी आत्मा राधा थी। उनकी लीला स्थली में आज भी नित्य राधा का ओर उनका संयोग होता है। प्रेम में डूबा रसिक ही उन्हें देख सकता है।

आज भी वहां, ऐसा लगता है कि दो रूहो की खामोशी जिन्दा रहती है। आत्मा अजर अमर और अविनाशी होती है जो दिखाई तो नहीं देती है मगर उसकी उपस्थिति जिन्दा जीवों में सदा विद्यमान रहती है।

अगर ऐसा नहीं होता तो सृष्टि के समस्त जीव, जली हुई होली की बुझी हुई राख की तरह नजर आता। कोई भी विज्ञान आज तक मृत शरीर मे आत्मा डालकर उसे जिन्दा नहीं कर पाया। ऐसे चमत्कार की कथाएं ग्रन्थों में ही पढी जा सकती है। हकीकत की दुनिया से ये दूर हैं।

श्रीकृष्ण इस जगत से जब अन्तर ध्यान हुए तब द्वारका से उनकी सोलह हजार रानियों को अर्जुन हस्तिनापुर ले आए। युधिष्ठिर ने मथुरामण्डल में श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्र का तथा हस्तिनापुर मे अपने पोत्र परीक्षित का राज्याभिषेक कर वो हिमालय की चल पड़े।

एक बार श्री कृष्ण की सभी रानिया यमुना नदी मे स्नान करने गईं तो वहां उन्हें प्रेम और मस्ती में देखा यमुना जी से रहा ना गया, यमुना से पूछा बहन तुम भी हमारी सौतन हो फिर भी तुम कृष्ण की विरह वेदना में दुखी नहीं रहतीं।

तब यमुना जी समझ गई ओर बोली बहनो सुनो अपनी आत्मा में ही रमण करने के कारण भगवान् श्रीकृष्ण आत्माराम है और उनकी आत्मा है श्रीराधा जी। मैं दासी की भांति राधाजी की सेवा करती हूं, अवश्य ही उनकी सेवा का यह फल है।

भगवान् श्रीकृष्ण की जितनी भी रानिया हैं, सब की सब श्रीराधा के ही अंश का विस्तार हैं।कृष्ण व राधा एक-दूसरे के सम्मुख हैं, उनका परस्पर नित्य संयोग है। श्री कृष्ण ही राधा है ओर राधा ही कृष्ण हैं उन दोनों का प्रेम ही बंशी है।

इसलिए हम सब उन राधा जी के विस्तार अंश है। इस बात का ज्ञान तुम्हें नहीं होने के कारण तुम श्रीकृष्ण के विरह में दुखी रहती हो। कृष्ण से रोज एक अंश के रूप हम सब का संयोग होता है।

बहनों उद्धव जी उनके मंत्री थे ओर अब वे कृष्ण की भक्ति में उसी लीला स्थली में लता के रूप में रहते हैं। वहा भजन-कीर्तन, कथा होने पर प्रकट होते हैं। गोवर्धन पर्वत के निकट भगवान् की लीला सहचरी गोपियों की विहार स्थली है, वहां की लता, अंकुर, और बेलों के रूप में उद्धव जी निवास करते हैं।

यह सब सुन श्रीकृष्ण की सभी रानियां उनकी उस लीला स्थली में गईं ओर वहां भजन-कीर्तन किए। श्रीकृष्ण के लीला पर गायन किया तो वहा एकदम उद्धव जी प्रकट हुए तो श्रीकृष्ण की सभी रानियां अचैत हो गई तथा होश आने पर उन्हे उद्धव की जगह श्रीकृष्ण नजर आए और सभी रानिया आनन्दित हो गईं। थोड़ी देर बाद कृष्ण फिर अदृश्य हो गए।

लेकिन हर रात वहा दो रूहों की खामोशी के साथ गिरधर की मुरलीयां बजती रहती है। स्कन्द पुराण की यह कथा आज भी आत्मा की अमरता का संदेश देती है तथा मन मे मलिनता न हो तो अहसास के रूप मे आज भी परमात्मा नजर आते हैं अन्यथा तीर्थयात्रा तपस्या, पूजा, दान धर्म सभी शरीर का मल तो धो सकते हैं पर मन की मलिनता नहीं धो सकते।

सौजन्य : भंवरलाल