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शुभ कार्य में सबसे पहले गणपति पूजन ही क्यों?

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शुभ कार्य में सबसे पहले गणपति पूजन ही क्यों?

सबगुरु न्यूज। अच्छी शुरुआत आधा कार्य सम्पन्न कर देती है और ये शुरूआत अच्छी कब होगी जब इसके लिए दिल में उत्साह हो, कार्य के प्रति लग्न और आस्था हो। निष्ठा रखते हुए कार्य को अंजाम देने का मन हो।

प्रकृति ने मानव की आन्तरिक व बाहरी ऊर्जा शक्ति व इसके स्त्रोत को बढ़ाने के लिए स्वयं मानव को बुद्धि प्रदान की। इस बुद्धि के साथ उसके दो अभिन्न साथी मन व आत्मा को साथी बनाया।

मन रिद्धि बनकर लक्ष्य का भेदन करने के लिए निकल पडता है और आत्मा सिद्धि बनकर कार्य को अंजाम देने के लिए मन को प्रकाशित करती है। बुद्धि, मन व आत्मा का प्रकाश समस्त कार्यो का मंगल करते हैं और ये सामूहिक शक्ति ही गणेश है।

विद्या बुद्धि रिद्धि सिद्धि के दाता गणेश जी

ऋषि, मुनियों ने इन तीनों को मजबूत रखने के लिए तथा कार्यो में कोई बाधा नहीं आए इस हेतु मानव को ऊर्जा रूपी इस पिण्ड को सबसे पहले पूजने के ही निर्देश दिए। ऋषियों के ये ही निर्देश धार्मिकता के साथ जोड दिए गए तथा गणपति पूजन सबसे पहले किया गया।

गज का सिर एक मजबूत व विस्तृत बुद्धि का परिचायक है और विशाल शरीर जो सब कुछ पचाने की क्षमता रखता हो तथा मूषक वाहन जो छोटा होते हुए भी विशाल तन को अपने ऊपर बैठा सवारी कराता है, अर्थात भले ही आप अभावों सें ग्रसित हों और कार्य विकट हो तथा विशाल समस्याएं घेरे हुए हो तब भी गज जैसी विस्तृत बुद्धि, सब कुछ समस्या को पचाने जैसा पेट रूपी धैर्य होगया तो हर बाधा खत्म हो जाएगी। कर्म मंगल मूर्ति बनकर आपके कार्य को सफल कर देंगे और गजानन की कर्म पूजा हो जाएगी।

काल चक्र आगे बढता हुआ एक बैशकीमती इतिहास छोड़ जाता है और छोड़ जाता है उन सभ्यता तथा संस्कृति की एक अमर झलक जिनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल यादें शेष रह जाएंगी। लघु परम्परा से चली मान्यताएं जब बड़े क्षेत्र में फैल कर दीर्घ परम्परा बनने लग जाती है तो शनैः शनैः उस परम्परा के अभौतिक मापदंड भी तीव्र गति से बदलते जाते हैं।

कालांतर में जाकर वह अपना मूल रूप खो देती है और त्योहार, परम्परा और उत्सव का स्वरूप बदल जाता है। ग्रामीण संस्कृति में सुपारी पर मोली बांध कर गुड का भोग लगा कर गणेश पूजन कर लेते थे, कहीं पर साफ़ पत्थर के टुकड़े को जल सें शुद्ध कर उस पर तेल सिन्दूर पुष्प, गुड चढा कर गणपति मान लेते थे।

आज गणपति की विस्तृत पूजा भी हो रही है। राजा महाराजाओं ने ऐसे ही पूजा कर गणपति सिद्ध कर लिए तो योगी जनों ने मूलाधार चक्र के माध्यम से गणेश जगा लिया ओर कार्य सिद्ध किए।

सौजन्य : भंवरलाल