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‘दिमाग है क्रियेटर, हो सकारात्मक इस्तेमाल

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tibetan spiritual leader dalai lama says indians  are my mentor
tibetan spiritual leader dalai lama says indians are my mentor

दलाई लामा ने वीरनर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय में छात्रों से किया संवाद
सूरत। दलाई लामा ने दिमाग को क्रियेटर बताते हुए युवाओं को इसके सकारात्मक इस्तेमाल की सलाह दी। वक्त को चलायमान बताते हुए उन्होंने कहा  कि इसे रोका नहीं जा सकता।
वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के कन्वेंशन हॉल में दोपहर एक बजे से शुरू हुए कार्यक्रम में दलाई लामा ने युवाओं से बात करने की दो वजहें बताईं। पहली यह कि बूढ़ा होने के कारण युवाओं से बात कर खुद को युवा महसूस करते हैं। और दूसरी वजह जो महत्वपूर्ण है, युवाओं को शांति का संदेश देना। उन्होंने कहा कि वक्त हमेशा चलता रहता है और उसे ईश्वर ने बनाया है।

बीते हुए समय से सीखा तो जा सकता है, लेकिन उसे बदला नहीं जा सकता। और भविष्य को खुद चुना नहीं जा सकता, वर्तमान में सकारात्मक प्रयासों से भविष्य को बेहतर बनाया जा सकता है। समाज को फ्यूचर ऑफ ह्यूमिनटी की जरूरत है। समय का महत्व समझाते हुए उन्होंने कहा कि जीवन का हर पल महत्वपूर्ण है और भविष्य की दिशा तय करता है।

व्यक्ति के व्यक्तित्व को बनाने में मानव मस्तिष्क और बुद्धि महत्वपूर्ण  कारक हैं। दिमाग ईश्वर तत्व है और जाति-धर्म-रंग भेद से परे यह हर व्यक्ति में समान रहता है। इसे अपने प्रयासों से विस्तार दिया जा सकता है। दिमाग जब नकारात्मक भावनाओं के साथ बुद्धि का इस्तेमाल करने लगता है तो समाज के लिए विनाश का कारण बनता है।

उन्होंने योग्यता के सकारात्मक  इस्तेमाल पर जोर देते हुए कहा कि २१वीं सदी के नौजवान ज्ञान का बेहतर इस्तेमाल कर मानवता की सेवा कर सकते हैं। यही ईश्वर की सच्ची सेवा है। दिमाग का सही रास्ते पर अधिकतम इस्तेमाल की सलाह देते हुए उन्होंने शिक्षा को मानवीय मूल्य  आधारित होने की जरूरत बताई। नागार्जुन समेत भारतीय मनीषियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है।

शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा और बनारस विश्वविद्यालयों का विशेष योगदान रहा है। दो हजार साल पुरानी शिक्षा पद्धति को अपनाने की जरूरत है। छात्रों के साथ हुए परिसंवाद में उनके सवालों का जवाब देते हुए दलाई लामा ने कहा कि शिक्षा की मौजूदा प्रणाली अंग्रेजों की दी हुई है जिसमें कई खामियां हैं। लेकिन आधुनिक शिक्षा इस कमी को पूरी कर रही है। भारतीय समाज का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यहां लोग जाति-धर्म में बंटे हुए हैं और एक-दूसरे का विरोध करते हैं।

यह भटकाव ही समस्याएं पैदा करता है। मानव सृजितसमस्याओं का खात्मा किए बगैर सुखद भविष्य की कल्पना बेमानी है। इससे पहले एसआरके के चेयरमैन गोविंद ढोलकिया ने हिंदी में स्वागत उद्बोधन किया। वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विवि के वीसी डॉ. दक्षेश ठाकर, आईआईएम के प्रोफेसर अब्राहम कोशी व बीजू वेरके ने भी छात्रों को संबोधित किया। सार्वजनिक एज्युकेशन ट्रस्ट के चेयरमैन कश्यप मेहता ने दलाई लामा का औपचारिक परिचय दिया। सुरेश माथुर ने आभार ज्ञापित किया।
 छात्रों से कया परिसंवाद
अपने संबोधन के बाद दलाई लामा ने हॉल में मौजूद छात्रों के साथ परिसंवाद भी किया। छात्रों के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि जीवन में धर्म महत्वपूर्ण है और सभी धर्म मानवता का संदेश देते हैं। जिन लोगों को लगता है कि पूजा-पाठ से उनके पाप नष्ट हो जाएंगे, वे गलत हैं। शिक्षा पद्धति पर उन्होंने कहा कि शिक्षा पद्धति तकनीकी रूप से समृद्ध हो रही है लेकिन मानवीय मूल्यों का हृास हो रहा है। सेक्यूलर कॉमनसेंस शिक्षा में डवलप होना चाहिए। पुनर्जन्म और जीवन पर पश्चिमी और पूरब की सभ्यता में अंतर पर
उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक शिक्षा के साथ पुराने मूल्यों को याद रखने की भी जरूरत है। भविष्य निर्माण और व्यक्तित्व विकास में शिक्षकों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।
भारत के साथ हैं सांस्कृतिक रिश्ते
भारत के साथ तिब्बती समाज के रिश्तों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत के साथ हमारे रिश्ते एक हजार वर्ष से अधिक पुराने हैं। भगवान बुद्ध की शिक्षा पर अपने अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा कि बुद्ध की शिक्षाओं को मैने पहले समझा, उस पर रिसर्च की और विज्ञान सम्मत विवेचना की। उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा। समाज में महिलाओं की स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि नोबल पुरस्कार से सम्मानित विभूतियों के साथ चर्चा के दौरान महिला लामा का जिक्र आया था और मैने सहर्ष माना कि महिला लामा
ज्यादा व्यावहारिक हो सकती हैं। क्षमताएं सबके पास समान हैं और महिलाएं भी नेतृत्व के लिए आगे आ सकती हैं।

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