Home Rajasthan Ajmer तंत्र-मंत्र की दुनिया, जाने इनके पीछे का सच

तंत्र-मंत्र की दुनिया, जाने इनके पीछे का सच

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तंत्र-मंत्र की दुनिया, जाने इनके पीछे का सच
Truth About Tantra and Mantra, An Ancient Technolog
Truth About Tantra and Mantra, An Ancient Technolog
Truth About Tantra and Mantra, An Ancient Technolog

सबगुरु न्यूज। तंत्रों की दुनिया के विज्ञान की सभ्यता और संस्कृति इतनी विकसित थी कि पलक झपकते ही तंत्रों का जानकार अपने स्थान पर बैठे बैठे कई कार्य करवा लेता था। पौराणिक साहित्य व ग्रंथों की सच्चाई मान ली जाए तो प्राचीन काल में दुर्लभ से दुर्लभ कार्य तंत्रों का जानकार कर लेता था।

तंत्रों की दुनिया के विज्ञान की ये सभ्यता और संस्कृति काल के गाल में समा समा गई ओर अपने कुछ अवशेषों के माध्यम से अपने योवन का प्रमाण देतीं हैं। विशेष रूप से अथर्ववेद ओर अग्नि पुराण में विस्तृत व्याख्या दी हुई है और वह संकेत देती हैं कि गोपनीयं परम गोपनीयम। इन विद्याओं को बिना गुरु के निषेध बताया गया है।

जिन तंत्रों को भगवान शिव ने लिखा और भगवान विष्णु ने अनुमोदन किया वे शास्त्र “आगम शास्त्र “के नाम से जाना जाता है। आदि शंकराचार्य ने अपने ग्रंथ ” सौंदर्य लहरी” मे। तंत्रों को यंत्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया टज्ञेर कनक धारा स्त्रोत से सोने की वर्षा करवा दी। गुरू गोरखनाथ ने असम में तंत्रों की सबसे शक्ति शाली पीठ कामाक्षा देवी की स्थापना कर तंत्रों का विस्तार किया।

कई योगी, जती, मुनि, ऋषि व सिद्ध पुरूषों द्वारा डाबर शाबर और कई तरह के मंत्रों को सिद्ध कर दुनिया के लिए कल्याण कारी काम किए जाने के उल्लेख मिलते हैं। वर्तमान में जो ग्रंथ है शेष बचे हैं वे भी जन सामान्य के लिए एक रहस्य ही है।

विश्व स्तर पर लाखों लोग इस ओर लगे हैं लेकिन विश्व स्तर पर कोई बडा कल्याण कारी काम शायद ही कोई कर पाया। अन्यथा विश्व स्तर पर अशांति आंतक वाद, भुखमरी आदि जैसी समस्या खत्म हो जाती। हो सकता है कि व्यक्ति विशेष को ही किसी व्यक्ति विशेष से ही लाभ मिल रहा हो। इस विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।

वैदिक ग्रंथों से लेकर आज तक तंत्रोंं के संबंध में कई ग्रंथ उपलब्ध है जो आम व्यक्तियों के लिए केवल दर्शनीय है तथा वह कई अलग-अलग मान्यता व शक्ति के देवता पर आधारित है।

सात्विक व तामसी सभी के अलग-अलग मिलते हैं। तंत्रों के ग्रंथ जो अपने अपने विश्वासों पर आधारित है। जैसे 52 भैरव, 64 योगिनी, 56 कलवे, 80 मसान कई तरह के वीर माने गए हैं तथा दूरी के हिसाब से इनका इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा वर्णित हैं तंत्र ग्रंथों में।

विज्ञान में इन सब को अंधविश्वास ही माना जाता है। हमारे धार्मिक विश्वास आज भी इन्हीं तंत्रों की मान्यता जुड़े हैं। भले ही वे परिणाम दे या नहीं। विश्व स्तर पर आज भी यंत्र मंत्र तंत्र हमारी धार्मिक आस्था व उपासना से जुड़े हैं। शिक्षित व अशिक्षित सभी वर्गों किसी न किसी रूप में आज भी जुड़े हुए हैं चाहे विज्ञान ने कितनी भी उन्नति क्यो ना कर ली हो।

जहां आस्था व उपासना है वहां तर्क का स्थान नहीं होता है। मार्कण्डेय पुराण में तीन रात्रियों को विशेष रूप से माना गया है। काल रात्रि, महारात्रि और मोह रात्रि। होली की रात को काल रात्रि, शिव रात्रि की रात को महा रात्रि तथा दीपावली की रात को मोह रात्रि के रूप में माना गया है और इन महारात्रियों में रात के समय पूजा पाठ व उपासना का महत्व होता है।

दीपावली की रात को चार भागों में विभाजित कर पूजा उपासना की जाती है। मोह रात्रि, दारुण रात्रि, काल रात्रि तथा महा रात्रि। यह चार प्रहर है। मोह रात्रि में लक्ष्मी जी की पूजा व मंत्र व दूसरे चरण में दारुण रात्रि में भैरवी चक्र साधना व तीसरे चरण काल रात्रि में महा काली व शाबर मंत्र तथा चौथे चरण में चौसठ योगनी व त्रिपुरा सुदंरी के मंत्रों को सिद्ध किया जाता है। दीपावली की रात को अमावस्या होती है अतः तंत्र उपासना में वह सफलता देती है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तेरे शरीर में भी साढ़े तीन करोड़ तंत्र और नाडियां है जिस पर शरीर तंत्र रूपी संस्थान की तरह खड़ा है और वह जमीन पर हर खेल को खेल कर अपने आप में एक श्रेष्ठ तंत्र का ज्ञाता है। हर तंत्र तेरी मन पर ही निर्भर करता है। इसलिए तू अपने तंत्र से अपना श्रेष्ठ निर्माण कर ओर किसी का मोहताज मत बन। यह सब अंधविश्वास भी हो सकते हैं तू सच्चे विश्वास में जी।

सौजन्य : भंवरलाल

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