राजस्थान के कश्मीर में भी एक शहर दो विधान, CM के एक आदेश पर मिल सकती है राहत!

माउंट आबू
माउंट आबू

सिरोही। राजस्थान का कश्मीर कहे जाने वाला माउण्ट आबू 1980 में माउण्ट आबू में वाइल्ड लाइफ सेंच्युरी घोषित होने के बाद से ही नारकीय पीड़ा झेल रहा है। लेकिन, 1992 में दो स्थानीय होटल मालिकों की व्यावसायिक लड़ाई के कारण ये पीड़ा इस कदर बढ़ी की आज तीन दशक बाद भी इससे मुक्ति नहीं मिल पा रही है।

इन होटल मालिकों की व्यावसायिक लड़ाई में यहां पर करीब 1992 से हाईकोर्ट के आदेश पर नए निर्माण पर रोक लगी जो गोदावरन बनाम गोवा सरकार, ईको सेंसेटीव जोन और एनजीटी के विवादों में फंसती हुई राहत की स्थिति में तो पहुंच गई। लेकिन, पिछली वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत सरकार के यहां के लोगों के हितों के प्रति संवेदनशील नहीं होने के कारण ब्यूरोक्रेसी के जाल में इस तरह से फंसाई गई कि मुख्यमंत्री, केबीनेट मिनीस्टरों, विधायकों, न्यायिक अधिकारियों और ब्यूरोक्रेटों को राहत मिलती गई।

लेकिन, स्थानीय नागरिकों के लिए नियम कायदों की अलग-अलग व्याख्या करके इसे अटकाया जाता रहा। यहां पर रहवासी और व्यावसायिक भवन की मरम्मत और नए निर्माण के लिए सरकार में भागीदारी रखने वालों के लिए अलग विधान और स्थानीय लोगों के लिए अलग विधान।

माउंट आबू में नियम विरूद्ध बना दिया गया लिंबडी कोठी का जी प्लस थ्री भवन।

लिम्बड़ी कोठी इसका जीता जागता उदाहरण

चुनाव से पहले भजनलाल सरकार के पंचायतराज मंत्री किरोडीलाल मीणा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी। इसमें उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र का जिन होटलों में इंवेस्टमेंट होने का आरोप लगाते हुए ईडी में रिपोर्ट दर्ज करवाने की बात कही थी उसमें माउण्ट आबू की लिम्बड़ी कोठी भी थी।

माउण्ट आबू में गहलोत सरकार में सीएमओ से लेकर माउण्ट आबू उपखण्ड अधिकारी और नगर पालिका आयुक्त सिर्फ एकसूत्री उद्देश्य से काम कर रहे थे वो था लिम्बडी कोठी का निर्माण। यहां अवैध तरीके से निर्माण करवाने के लिए हजारों लाखों टन निर्माण सामग्री आवंटित की गई। नो कंस्ट्रक्शन जोन में होने के बावजूद इसके नक्शे और इसके भवन के तलों को पूरी तरह बदल दिया गया। लेकिन, स्थानीय निवासियों को एक बोरी सीमेंट और एक बोरी बजरी के लिए तरसाए हुए रखा।

यही नहीं हालात ये थे कि लिम्बड़ी कोठी में अवैध तरीके से जाने वाले हजारों ईंटों से भरे ट्रोले पर मात्र पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाकर उसे लिम्बड़ी कोठी में भेज दिया गया। वहीं माउण्ट आबू के स्थानीय निवासी के अपने टाइल्स, दीवार, नाली टूटफूट के लिए एक बोरी सीमेंट ले जाते हुए पकडऩे पर 25 हजार रुपए तक का जुर्माना भी लगाया और माल भी जब्त कर लिया गया। इस तरह के दोहरे मापदण्ड पिछले तीन दशकों से माउण्ट आबू का आम आदमी झेल रहा है।

माउंट आबू में 27 जुलाई को हुई बैठक। फाइल फोटो

सिर्फ एक कागज के कारण अटकी है राहत

माउण्ट आबू के लोगों को सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और एनजीटी से हर तरह की राहत मिल चुकी है। अब सिर्फ एनजीटी के आदेश के अनुसार रिवाइज्ड मास्टर प्लान की अधिसूचना जारी करनी है। इसे अशोक गहलोत सरकार ने दो साल से जारी नहीं होने दिया। सूत्रों की मानें तो इसके पीछे दो उद्देश्य थे।

एक इस रिवाइज्ड आदेश में लिम्बड़ी कोठी के क्षेत्र को नो कंस्ट्रक्शन जोन से बाहर निकलवाना जिसे की सेंचुरी की सीमा पर होने से मूल जोनल मास्टर प्लान में नो कंस्ट्रक्शन जोन में डाला हुआ था। दूसरा एनजीटी के माध्यम से जिन प्रापर्टियेां को ग्रीन जोन से बाहर नहीं निकाला गया उनके मालिकों को वो प्रापर्टियां बेचकर निकल जाने का मौका देना।
माउण्ट आबू की मॉनीटरिंग कमेटी ने जोनल मास्टर प्लान का एनजीटी के आदेशानुसार रिवाइज करने का प्रस्ताव पारित करके भी राज्य सरकार को भेज दिया था। लेकिन, अशोक गहलोत सरकार ने ये नहीं किया। भजनलाल सरकार जोनल मास्टर प्लान के संशोधित आदेश का नोटिफिकेशन जारी करके सिर्फ 15 दिनों में माउण्ट आबू के लोगों को राहत दे सकती है। बशर्ते की वो यहां के एक शहर दो विधान के तीन दशकों से चल रहे प्रावधान को हटाने को दृढ़ संकल्पित हो।