प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा ने मनमोहन सिंह को चुनावी में दी थी मात

नई दिल्ली। प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा बीते कई दशकों से दिल्ली के सबसे लोकप्रिय व्यक्तियों में से एक रहे और उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए, कई क्षेत्रों में पूरी निष्ठा और लगन से जनता की सेवा की। वह एक प्रसिद्ध शिक्षाविद्, लेखक, वक्ता और खेल प्रशासक भी थे।

मल्होत्रा का राजनीति में लंबा सक्रिय करियर रहा और वे दिल्ली भाजपा के आधारभूत स्तंभों में से एक थे। सन 1958-67 के दौरान दिल्ली नगर निगम के निर्वाचित सदस्य चुने गए और 1967-72 के दौरान महज 35 वर्ष की अपेक्षाकृत कम आयु में मुख्य कार्यकारी पार्षद (प्रोटोकॉल में मुख्यमंत्री) बने। वह जनता पार्टी, दिल्ली के अध्यक्ष (1977) और भाजपा, दिल्ली (1980-84) के अध्यक्ष रहे। वह संसद में दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने के लिए भी कई बार चुने गए।

वह बीते पांच दशकों में दिल्ली से पांच बार सांसद और दो बार विधायक रहे और उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक जीत सन 1999 के आम चुनाव में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हराना था। इसके अलावा सन 2004 के आम चुनाव में मल्होत्रा दिल्ली में अपनी सीट जीतने वाले एकमात्र भाजपा उम्मीदवार थे, जबकि कांग्रेस ने शेष छह सीटें जीती थीं।

प्रो. मल्होत्रा का जन्म 1931 में लाहौर में एक मध्यमवर्गीय पंजाबी परिवार में सबसे बड़े पुत्र के रूप में हुआ। उनके पिता, डॉ. खज़ान चंद मल्होत्रा, एक प्रसिद्ध आयुर्वेद चिकित्सक थे। प्रो. मल्होत्रा का पालन-पोषण बौद्धिक, उदार पारिवारिक वातावरण में हुआ। उनके माता-पिता आर्य समाज की परंपराओं का पालन करते थे। उनकी मां सुशीला देवी, कई आर्य समाज संगठनों की पदाधिकारी थीं और वह उन्हें हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करती थीं, हालांकि उन्हें तब यह अंदाज़ा नहीं था कि यही अभ्यास उनके जीवन का मंत्र बन जाएगा।

उन्होंने डीएवी कॉलेज लाहौर, पंजाब विश्वविद्यालय और हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने हिंदी में एमए और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनकी पीएचडी थीसिस प्रसिद्ध हिंदी कवि सोहन लाल द्विवेदी और उनकी रचनाओं पर आधारित थी। वे एक शिक्षाविद्, पत्रकार, राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता, खेल प्रशासक और लेखक भी रहे और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजी डीएवी कॉलेज में 35 वर्षों से अधिक समय तक हिंदी के प्रोफेसर के रूप में अध्यापन किया।

पुस्तकों के शौकीन प्रोफ़ेसर मल्होत्रा कई समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और जर्नलों के लिए लिखते रहे। संसद में बजट और वित्त, आतंकवाद, दिल्ली से जुड़े मुद्दों सहित विविध विषयों पर दिए गए उनके भाषण एक संकलन में प्रकाशित हुए हैं। इतिहास, पौराणिक कथाओं, वैदिक साहित्य और समसामयिक विषयों में उनकी गहरी रुचि रखने वाले मल्होत्रा भगवद् गीता, बाइबिल, कुरान और गुरु ग्रंथ साहिब जैसे पवित्र ग्रंथों के अध्येता भी थे।

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में एक प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व किया और संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया। उन्होंने विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों के साथ आमने-सामने बैठकें की और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के महत्वपूर्ण मामलों पर भारत का पक्ष प्रस्तुत किया।

प्रोफेसर मल्होत्रा ने 1947 में पाकिस्तानी आक्रमण के समय, जम्मू-कश्मीर में आरएसएस प्रचारक के रूप में कार्य किया। उन्होंने एक छात्र नेता के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई। वे पंजाब विश्वविद्यालय कैंप कॉलेज छात्र संघ के सचिव रहे, फिर दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के सचिव चुने गए। वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य और सचिव थे।

उन्होंने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय दिल्ली जनसंघ के सचिव, दिल्ली प्रदेश भारतीय जनसंघ पार्टी के अध्यक्ष, भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और पार्टी के विभिन्न राज्यों के प्रभारी के रूप में कार्य किया। सन 1953 में, उन्हें सर्वश्री डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, एनसी चटर्जी और अन्य प्रमुख नेताओं के साथ निवारक निरोध अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया। जम्मू और कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए सत्याग्रह के तहत उन्होंने छह महीने जेल में बिताए। सन 1966 में, गौरक्षा अभियान के दौरान, पुलिस की गोलीबारी में उन्हें गोली लगी। इसके बाद उन्हें पंद्रह दिनों तक जेल में रखा गया।

प्रो. मल्होत्रा को 1975 को आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया। उन्हें दिल्ली, अंबाला, चंडीगढ़ और हिसार की जेलों में 19 महीने तक कठोर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। इन अभावों और कष्टों के कारण वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और उन्हें चंडीगढ़ के पीजीआई मेडिकल इंस्टीट्यूट में भर्ती कराना पड़ा। उन्होंने आम जनता, श्रमिकों, व्यापारियों, शिक्षकों, सरकारी कर्मचारियों और वंचित वर्गों के हितों के लिए सैकड़ों मौकों पर सक्रिय विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया।

उनकी पुस्तक लोटस-एन इटरनल कल्चरल सिंबल सांस्कृतिक क्षेत्र में व्यापक रूप से सराही गई है। सबसे बढ़कर, वे अपनी ईमानदारी और स्वच्छ छवि के लिए जाने गए। खेलों के विकास के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय खेल जगत की शीर्ष संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर काम करने का मौका दिया। वे भारतीय तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष, एशियाई तीरंदाजी महासंघ और राष्ट्रमंडल तीरंदाजी फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष रहे।

महान नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी उनके लिए कहा था कि मैं प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा को पांच दशकों से भी अधिक समय से जानता हूं, जब वे 1951 में वीर अर्जुन के संपादन में मेरी सहायता कर रहे थे। वे एक ईमानदार और सच्चे नेता हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया है।