अजमेर। भगवान शिव आदि और अनादि है। शिव की पूजा में किसी भी प्रकार की कोई जात पांत और ऊंच नीच का भेद नहीं है। शिव की आराधना के लिए कठोर तप और जप करने की जरूरत नहीं है। वे केवल जीव के प्रेम और विश्वास से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
ये बात भागवत भूषण कथा वाचक रामस्नेही संप्रदाय के युवा संत उत्तमराम शास्त्री ने गुलाबबाड़ी स्थित तेजाजी की देवली मंदिर परिसर में आयोजित शिव महापुराण कथा के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि भगवान हमेशा उपलब्ध हैं, याद तो करो। भगवान की पूजा अर्चना करने के लिए मंत्र, मूर्ति माला और गुरु आदि सभी मार्ग हैं।
उन्होंने कहा कि भक्ति विश्वास पर टिकी हुई है। पक्के विश्वास से पूजा सिद्ध होती है। इष्ट भले एक हो पर सम्मान सभी का होना चाहिए। जिस माला को जपते हो तो उसी को जीवन भर साथ रखो। मूर्ति भी एक ही होनी चाहिए। मूर्ति भी बदलो मत। निष्ठा एक रखें, एक मंत्र जो गुरु ने दिया हो के जरिए साधना करें। मंत्र का जाप करते रहेंगे तो वह सिद्ध होगा।
एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने से उसका दर्शन करने से भक्ति और मुक्ति मिलती है। इस प्रकार महाराज ने रुद्राक्ष के रुपों और धारण करने के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें बताई।
महाराज ने कहा कि कथा के दौरान कथा और सत्संग में सत्संग ही होना चाहिए। व्यर्थ की बातें होती है तो वह कुसत्संग होता है। साधना के तीन मार्ग हैं। पहले पूजन करें, पूजन नहीं होता है तो सत्संग करे और सत्संग भी ना हो तो साधना करते नाम जाप करें। इससे आपको भक्ति प्राप्ति होगी और आपके मोक्ष का मार्ग खुलेगा। इस दौरान भजन गायकों ने एक से बढ़कर एक भजनों की प्रस्तुति देकर माहौल भक्तिमय कर दिया। मुख्य यजमान ने पूजा अर्चना की और प्रसाद वितरण किया।