अजमेर/नसीराबाद। सावन माह में गांव रसोई या गांव के बाहर रसोई एक पारंपरिक प्रथा है जो गांवों में अच्छी बारिश के लिए की जाती है। इसका मतलब है कि गांव के बाहर एक खास जगह या अपने खेतों पर खाना पकाना और फिर उसे भगवान इंद्र (बारिश के देवता) को अर्पित करना, ताकि अच्छी बारिश हो। यह एक धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम होता है, जिसमें गांव के सभी लोग मिलकर भाग लेते हैं।
इस प्रथा के पीछे मान्यता है कि इंद्रदेव को प्रसन्न करके अच्छी बारिश की कामना की जाती है, ताकि फसलें अच्छी हों और पीने के पानी की कमी न हो। उदाहरण के लिए, राजस्थान के कुछ हिस्सों में गांव के बाहर रसोई का आयोजन किया जाता है, जहां लोग मिलकर खाना पकाते हैं और फिर इंद्रदेव को भोग लगाते हैं, ताकि अच्छी बारिश हो।
इस प्रथा में, आमतौर पर गांव के सभी लोग, खासकर महिलाएं, मिलकर खाना बनाती हैं और फिर उसे एक विशेष स्थान पर ले जाकर इंद्रदेव को अर्पित करती हैं। यह एक सामूहिक कार्यक्रम होता है, जिसमें गांव के सभी लोग एकजुट होकर प्रार्थना करते हैं और अच्छी बारिश की कामना करते हैं।
नसीराबाद के समीपवर्ती गांव बाघसुरी में गांव रसोई
रविवार को नसीराबाद के समीपवर्ती गांव बाघसुरी में गांव रसोई का आयोजन किया गया। अल सुबह ही ग्रामीण घरों पर ताला लगाकर खेतों की ओर निकल गए। बाजार में दुकाने नहीं खुलने से सन्नाटा नजर आया। खेतों में उपलों की आंच पर दाल बाटी चूरमा तैयार कर धरती माता को भोग लगाकर लोगों ने अपने रिश्तेदारो, मित्रों और परीचितों को जिमाया।
इस तरह तय की जाती है गांव रसोई की तारीख
जानकारों का कहना है कि करीब एक सप्ताह पहले गांवाई बालाजी मंदिर में बालाजी को रोट का भोग लगाने की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इसके लिए गांव के हर घर से रोटी आती है। आधी रोटी मंदिर में बालाजी के भोग लगाकर बाकी आधी प्रसाद के रूप में लौटा दी जाती है। बालाजी के लिए भोग में लगी रोटियां गौ माता को खिला दी जाती हैं।
इसके बाद गांव के बुजूर्ग और जानकार गांव बाहर रोटी के लिए ऐसी तारीख का निर्धारण करते है जब अधिकतर लोग फुर्सत में हो। तय तारीख की सूचना टेम्पो से मुनादी कर सबको बता दी जाती है। एक सप्ताह का समय मिलने से सभी अपनी बहन बेटियों, रिश्तेदारों परिचितों को प्रसादी जीमने के लिए आमंत्रित भी कर लेते हैं। गांव बाहर रोटी का आयोजन खेत, खलिहान, बाडे आदि स्थान पर होता है। इसके लिए अलसुबह ही अपने घरों को ताला लगाकर खेतों की तरफ निकल जाते हैं। दिनभर जीमने और जीमाने का सिलसिला चलता है।
अनूठी परंपरा : बाघसुरी गांव के घरों में सन्नाटा, खेतों पर बनीं रसोई