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प्राणों का बोझ ख्वाईशों का मन

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प्राणों का बोझ ख्वाईशों का मन

सबगुरु न्यूज। सृष्टि जगत का इतिहास इस बात का गवाह है कि दुनिया का हर मन अपनी ख्वाईशों का भारी जखीरा ले कर दुनिया के बाजार में निकलता है, इसी कारण वह प्राणों के बोझ को झेलता रहता है। ख्वाईशे भले ही पूरी न हो तब भी मन प्राणों के बोझ को लेकर हर तरफ़ घूमता रहता है। यह सोचकर कि कभी तो ख्वाईशे पूरी होगी। ख्वाईशोका सिलसिला कभी रुक नहीं सकता।

डालियों पर फूल भले ही न हों तो भी भंवरा उसके चारों ओर चक्कर लगाता रहता है, बस इसी आशा में कि कभी तो इन डालियों पर फूल खिलेंगे ओर मैं उसका मधुपान कंरूगा।

यह बात कहते कहते बेताल रूका और जोर से हंसी का ठहाका लगा कर बोला हे राजन तुम हर रात यहां पर आकर मुझे अपने साथ ले जाते हो। आखिर तुम्हारी क्या ख्वाईशे हैं, मुझे कृपा कर बताएं। मैं एक बार में ही तुम्हारे कार्य सिद्ध कर दूंगा। यदि तुम चाहो तो मैं अपने शक्ति बल से स्वर्ग का राजा बना सकता हूं फिर तुम अपने राज्य में ही नहीं हर लोक मे घूम घूम कर राज करते रहना ताकि तुम्हारे राज्य की सीमा सृष्टि मे फैल जाएं।

यह सुनकर राजा बोला हे बेताल मुझे कुछ नहीं चाहिए। मै तो हर मानव के कल्याण के लिए राज करता हूं अन्यथा अब मेरी राजा बने रहने की इच्छा नहीं है।

बैताल बोला हे राजन! अगर सच है तो तुम आज ही राज-पाट छोड़ दो और साधु बन कर मानव कल्याण में लग जाओ। मानव कल्याण के लिए राज करने की आवश्यकता नहीं होती। राज तो व्यवस्थाओं को अंजाम देता हैं तथा राजकोष उसका भुगतान देता है। ये राज कोष तुम्हारा श्रम नहीं बल्कि प्रकृति ओर मानव ने अपनी व्यवस्था चलाने की कीमत राजकोष को चुकाई हैं।

प्रकृति और मानव के कर मूल्यों से जन कल्याण नहीं केवल व्यवस्था ही की जाती है राजन! यही राजकोष तुम्हारे इस श्रम का मूल्य चुकाता है ओर व्यवस्था के लिए तुम्हे हर सुख सुविधा उपलब्ध करवाता है।

राजा तुम और तुम्हारा दरबारी, मंत्री सभी राज्य के सेवक हो ओर सब श्रम का मूल्य पाते हो। जन कल्याण के मूल्यों को तुमने बदल दिया। एक गरीब अपने खाने की रोटी में से एक टुकड़ा जब जीव जन्तुओं को खाने के लिए डालता है यही जन कल्याण है।

राजा बोला मैं एक श्रेष्ठ प्रशासक हूं और चांद सितारों की तरह मेरे राज्य को चमका दूंगा। बैताल बोला हे राजन! तुम्हारे पैदा होने के पहले कई सुनहरी सदियां गुजार दी हैं इस राज्य ने। तुम वर्तमान में जिन सुविधाओं का भोग कर रहे हैं यह तुम्हारी अर्जित की हुई नहीं है। दूसरों के बनाए गढ़ पर कल्याण की हुंकार भर अपने कुनबे की परवरिश ही कर रहे हो।

बैताल की बात से राजा बहुत नाराज हुआ और बोला हे बेताल आखिर तुम मुझसे क्या चाहते हो। बैताल वक्त की नज़ाकत देख कर हंसते हुए बोला हे राजन कोई भी राजा राज नहीं छोड़ना चाहता है और अमरता का वरदान प्राप्त करना चाहत हैं। इसलिए वह येन केन प्रकारेंण राज्य को हासिल करने के लिए ही काम करता है। राजा को लाल पीला होता देख बैताल उड गया ओर राजा उसको देखता ही रह गया।

संत जन कहते हैं कि हे मानव व्यक्ति प्राणों के बोझ को केवल अपनी-अपनी ख्वाईशे पूरा करने के लिए ही जीता है अन्यथा बिना मक़सद के इस बोझ को नहीं झेलता है। अतः हे मानव तू जन कल्याण के लिए कार्य कर अपने श्रम का हिस्सा लगा अन्यथा राज्य का धन लगा कर तो तू एक व्यवस्थापक ही बना रहेगा।

सौजन्य : भंवरलाल